रसोपासना – भाग-18 भरी प्रेम रस रंग

निकुञ्ज “रसालय” है… नही नही, रस का आलय यानि रस का घर नही है निकुञ्ज… अपितु आलय ही रस है… घर ही रस है ।

निकुञ्ज “रस” से ही निर्मित है… ऐसा अद्भुत ऐसा दिव्य है ये निकुञ्ज… यहाँ सब रस है… रस का उत्सव है… रस का ही उत्साह है… रस का ही समुद्र निरन्तर लहराता रहता है ।

साधकों ! डर लगता है मुझे कभी-कभी, सबको ये “रसोपासना” भेजने में… मेरे बाबा ने मुझे कहा… “शरीर के प्रति जिसकी आसक्ति है… गोरी चमड़ी देखकर जो लार टपकावें… उसको मत भेजो ये आज के विचार की ये विशेष “रसोपासना”…पर मन में आता है… क्या पता ये युगल की केलि रसोपासना किसी के “वासना” को “उपासना” में परिवर्तित कर दे… और उसका अन्तःकरण पवित्र होकर निकुञ्ज का अधिकारी बना दे… मेरा तो यही उद्देश्य है ।

बाकी युगल जानें… मेरे उद्देश्य में तो “हिततत्व” ही छुपा है ।

“खड़ी खड्ग की धार”…इस रसोपासना को यह नाम भी दिया है ।

खड़ी तलवार की धार है ये उपासना… कोई खेल नही हैं… कोई मनोरंजन का साधन नही है… आपको पता है – इस उपासना को पदों में लिखा गया… पदों में गाया गया… यहाँ तक की आज भी “महावाणी जी” (जो रसोपासना का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है)…उसके पदों का गायन माइक में भी नही किया जाता…बहुत गुप्त रखा गया है ।

ऐसे रसोपासना को मैं लिख रहा हूँ… लिखते हुये मेरे हाथ काँपते हैं…साधकों ! इसलिये इसे “जतन जतन सौं राखियों” ।

ये अनादिकाल से चल रही “लीला रस” का वर्णन है… जो अभी भी चल रही है… और चलती रहेगी ।

चलिये – गम्भीरता के साथ… युगल नाम का आश्रय लेते हुये पूर्ण पवित्रता से बैठें और ध्यान करें…”उस निकुञ्ज की रस केलि का” ।


सौन्दर्य की देवी ने युगलवर की आरती की…ये प्रातः की श्रृंगार आरती थी… दण्डवत प्रणाम किया सबने युगलवर को ।

दिव्य भव्य सिंहासन है… उसमें दम्पति विराजें हैं…

सौन्दर्य की देवी अंतर्ध्यान होते हुए एक सुन्दर-सा दर्पण दे गयी है युगलवर को… अब तो ये युगल दर्पण देख रहे हैं ।

सखियाँ इस झाँकी का दर्शन कर आनन्दित हो रही हैं ।

सखी ! देखो तो…अत्यंत कमनीय, निर्मल, कोमलांगी स्वरूप श्रीयुगल दम्पति महामोद के साथ कैसे दर्पण में अपने आपको देख रहे हैं… रंगदेवी ने मुग्ध होते हुए ललिता सखी से कहा ।

दोनों एक जैसे ही हैं… ऐसा लगता है मानो प्रेम के एक ही साँचे में दोनों ढले हों… इनकी इस झाँकी का दर्शन करके नेत्र और चित्त कैसे प्रसन्न होते हैं… हे रंगदेवी ! मैं तो यही कहूँगी कि ये युगलवर मेरे हृदय में ऐसे ही निवास करते रहें… जय हो… ये कहते हुए ललिता सखी मन्त्रमुग्ध हो गयीं थीं ।

अरी ! देखो तो… इनके हाथों में दर्पण क्या दे गयी वो सौन्दर्य की देवी… ये तो दर्पण छोड़ ही नही रहे… अपने अपने को देखकर कैसे आनन्दित हो रहे हैं… और दर्पण देखनें में… इन युगल के दोनों कपोल… कैसे जुड़ रहे हैं… कैसे गलवैयाँ दिए अपने आपको ही निहारने में सब कुछ भूल गए हैं… ।

क्या उपमा है इस छवि की ? बताओ तो ?

रंगदेवी से सुदेवी ने पूछा था ।

उपमा ही लज्जित हो जायेगी… क्या उपमा ? रंगदेवी हँसती हुयी बोलीं…उफ़ ! इन युगल को देखकर तो मैं भी सब कुछ भूल गयी ।

इन्दुलेखा सखी ने कहा – नीले वस्त्र प्यारी के और पीले वस्त्र श्याम सुन्दर के… और ऊपर से मुकट और चन्द्रिका की शोभा… बस मन को मोहित कर रही है… हम क्या कहें !

विशाखा सखी ने कहा – ऐसा लग रहा है… मानो – बादल की घटा… बिजली की छटा… और इंद्रधनुष की शोभा, ये तीनों मिलकर एक हो गए हों… क्या दिव्य लग रहे हैं ये ।

सखी ! मेरे पास तो अब कोई शब्द ही नही है…अब कोई कुछ मत बोलो… सब आनन्द से इस रूप छवि का पान करो… अपने नैनों से ।

सब सखियाँ चुप हो गयीं…यहाँ तक कि पक्षी भी मौन हो गए… और सब इस झाँकी का दर्शन करने लगे थे ।


हे प्यारी ! हम दोनों में से नेत्र किसके सुन्दर हैं ?

एकाएक दर्पण देखते हुए श्यामसुन्दर श्रीजी से बोल पड़े थे ।

ये कोई पूछने की बात है… प्यारे ! नेत्र तो मेरे ही सुन्दर हैं !

श्रीराधाजी ने तुरन्त कह दिया ।

फिर श्याम सुन्दर ने बड़ी गम्भीरता से दर्पण देखा… और कुछ देर बाद बोले –

नही प्यारी ! कँटीले, दिव्य और चपल तो मेरे ही नेत्र हैं ।

ना ! ना ! प्रियतम ! झूठ मत बोलो… सच जो है वो कहो… और ध्यान से देखो… तेज पूर्ण, कटीले नयन तो मेरे ही हैं ।

श्री किशोरी जी फिर बोल उठी थीं ।

श्याम सुन्दर दर्पण में फिर अपने नेत्रों को देखने लगे थे… थोड़े बड़े नेत्र करके… कुछ देर में बोले – प्यारी ! बड़े नेत्र तो मेरे ही हैं ।

यानि विशाल नेत्र तो मेरे हैं… नही तो देख लो… श्याम सुन्दर बड़े नटखट पने में बोले ।

अजी ! छोड़ो भी… आपसे बड़े नेत्र तो मेरे हैं… आप झूठ मत बोलो प्यारे ! श्रीजी ने अपनी बात कही ।

ऐसे नही…मैं निर्णय करके बताता हूँ आपको…

इतना कहकर श्याम सुन्दर ने अपनी ऊँगली से नेत्रों को नापना शुरू किया… पहले अपने नेत्र नापे…फिर अपनी प्यारी के ।

रुको ! तुम छलिया हो मैं जानती हूँ… श्रीजी ने भी कह दिया ।

अरे ! मैं आपके सामने ही तो नाप रहा हूँ… इतना कहकर कुछ देर में श्याम सुन्दर बोले… हम दोनों के नेत्र बराबर हैं… बराबर… बस, चुप हो गए इतना कहकर श्यामसुन्दर… श्री जी हँसीं ।

पर भले ही बड़े और छोटे में नेत्र बराबर हों… किन्तु ! सुन्दर नेत्र तो मेरे ही हैं… ये बात कह दी श्याम सुन्दर ने ।

कैसे कैसे ? श्रीजी ने भी हठ पकड़ लिया ।

मेरे लालिमा लिये हुए नयन हैं…आप स्वयं ही देख लो ना ?

श्याम सुन्दर भी आज जिद्द पकड़ लिए थे ।

सब सखियाँ खिलखिलाकर हँस पडीं…

रंगदेवी आगे आईँ… और हँसी को रोकती हुयीं बोलीं…

🙏”जय हो”… अगर आप युगल की आज्ञा हो… तो मैं कुछ कहूँ ?

हाँ हाँ… न्याय अब तुम ही करो रंगदेवी !

ये बात दोनों ने ही एक साथ कही थी ।

रंगदेवी ने बड़े गौर से दोनों के नयनों को देखा… फिर बोलीं…

🙏हे युगल सरकार ! नेत्र तो दोनों के ही बराबर हैं… सुन्दरता में किसी के भी किसी से कम नही हैं…पर…

हाँ हाँ… “पर” क्या रंगदेवी ! बोलो… मेरे नेत्र श्रीजी के नेत्र से सुन्दर हैं ना ? श्याम सुन्दर ने उछलते हुए पूछा ।

अरे ! आप उतावले क्यों हो रहे हो… रंगदेवी ! बता तो रही है ।

श्रीजी ने कहा ।

हाँ सखी ! तुम बोलो… …

रंगदेवी ने कहा… “चंचल नेत्र तो श्याम सुन्दर के हैं…

“सलोने भी श्याम सुन्दर के ही हैं”…श्याम सुन्दर खुश !

कमल के समान भी श्याम सुन्दर के ही नेत्र हैं… रंगदेवी बोलती जा रही हैं… हिरण के समान नेत्र भी श्याम सुन्दर के ही हैं ।

श्रीजी चकित होकर देख रही हैं रंगदेवी को… कि आज ये रंगदेवी श्याम सुन्दर के पक्ष में कैसे चली गयीं ।

मछली के समान बड़े नेत्र भी तो श्याम सुन्दर के ही हैं…

कटीले, हंसिले, मटकीले, गर्वीले, छबीले, छकिले, उनमीले, बरछिले, लजीले… ऐसे नेत्र श्याम सुन्दर के ही हैं… रंगदेवी को सब देख रहे हैं… श्याम सुन्दर बड़े ही प्रसन्न हो गए… वो रंगदेवी को वाह ! वाह ! कहने लगे ।

🙏पर रंगदेवी ने कहा – हे प्यारे ! आपके नेत्र भले ही लाख सुन्दर हों… पर इन श्रीजी के नेत्र के बिना आपके नेत्रों की कोई शोभा नही है ।

🙏हे श्याम सुन्दर ! आपके नेत्रों को विश्राम देने वाले नेत्र तो श्रीजी के नेत्र ही हैं… जब तक आपके ऊपर श्रीजी के नेत्र नही पड़ते आपके नेत्रों की बेचैनी दूर कहाँ होती है…

इसलिये नेत्र भले ही आपके सुन्दर हों… पर आपके नेत्रों को भी सुन्दरता प्रदान करने वाले नेत्र श्रीजी के ही हैं ।

श्याम सुन्दर रंगदेवी की चतुराई पर रीझ उठे थे… श्रीजी… मुस्कुरा रही थीं…

समस्त सखियाँ जय जयकार कर उठीं थीं… .

निकुञ्ज आनन्द के रस में निमग्न हो गया था ।

शेष “रस चर्चा” कल –

🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩

🌷🌻🌷🌻🌷🌻🌷



Nikunj is “Rasalaya”… No, no, the abode of Ras, that is, the house of Ras, is not the park… but the abode is Ras… the house is Ras.

Nikunj is made of “Ras” only… Such wonderful, so divine is this Nikunj… Everything here is Rasa… Rasa is celebrated… Rasa has enthusiasm… The ocean of Rasa keeps on flowing continuously.

Seekers! Sometimes, I am afraid to send this “Rasopasana” to everyone… My Baba told me… “The one who has attachment towards the body… The one who drools seeing fair skin… Do not send this special “Rasopasana” of today’s thought. … But it comes to mind… Who knows, this couple’s Keli Rasopasan can convert someone’s “lust” into “worship”… and make his conscience pure and make him the owner of Nikunj… This is my aim.

Know the rest of the couple… The “interest element” is hidden in my aim.

“The edge of the vertical sword”… this name has also been given to this Rasopasana.

This worship is the edge of a straight sword… It is not a game… It is not a means of entertainment… You know – This worship is written in verses… It is sung in verses… Even today “Mahavani ji” It is an important book)…his verses are not sung even in the mike…it is kept very secret.

I am writing this kind of cooking… My hands are trembling while writing… Sadhaks! That’s why it is called “Jatan Jatan Saun Rakhi”.

This is the description of “Leela Ras” going on from time immemorial… which is still going on… and will continue to go on.

Let’s go – with seriousness… taking shelter of the couple’s name, sit with complete purity and meditate… “of that Nikunj’s Ras Keli”.

The goddess of beauty performed the couple’s aarti… This was the morning makeup aarti… Everyone bowed down to the couple.

Divine is the grand throne… the couple is sitting in it…

The goddess of beauty has given a beautiful mirror to the married couple through intuition… Now this couple is looking at the mirror.

The friends are rejoicing after seeing this tableau.

Friend! Look at…how the couple in the mirror are looking at themselves in the mirror with Mahamod in a very graceful, pure, lustrous form… Rangadevi said to Lalita Sakhi while being mesmerized.

Both are the same… It seems as if both are cast in the same mold of love… How the eyes and the mind are happy after seeing this tableau of theirs… O Rangdevi! I would only say that this couple should continue to reside in my heart like this… Jai Ho… Lalita Sakhi was mesmerized while saying this.

Hey! Look at… what the goddess of beauty gave the mirror in their hands… they are not leaving the mirror at all… how they are rejoicing on seeing each other… and in seeing the mirror… both the cheeks of this couple… how are connecting… how Galvaiyas have forgotten everything in looking at themselves….

What is the metaphor of this image? Tell me then?

Sudevi had asked Rangdevi.

Upma will be ashamed… what upma? Rangdevi said laughing… Oops! Seeing this couple, I also forgot everything.

Indulekha Sakhi said – Blue clothes of beloved and yellow clothes of Shyam Sundar… and above all the crown and beauty of Chandrika… just mesmerizing the mind… what can we say!

Vishakha Sakhi said – It looks like… as if – cloud’s clouds… lightning’s shadow… and the beauty of the rainbow, all these three have become one… How divine they are looking.

Friend! I don’t have any words now… don’t say anything now… everyone enjoy this form and image… with your eyes.

All the friends became silent… even the birds became silent… and everyone started darshan of this tableau.

Oh dear! Whose eyes are beautiful among us?

Suddenly, while looking at the mirror, Shyamsundar spoke to Shreeji.

This is something to ask… Dear! My eyes are beautiful!

Shriradhaji immediately said.

Then Shyam Sundar looked at the mirror very seriously… and after some time said –

No dear! Thorny, divine and agile are my eyes only.

No ! No ! Beloved! Don’t lie… tell the truth… and look carefully… sharp, sharp eyes are mine only.

Shri Kishori ji spoke again.

Shyam Sundar started looking at his eyes again in the mirror… with a little bigger eyes… said in a while – Sweetheart! Big eyes are mine only.

Means I have big eyes… otherwise see… Shyam Sundar spoke in a very mischievous manner.

Aji! Leave it too… I have bigger eyes than you… You don’t lie dear! Shreeji said his words.

Not like that… I will decide and tell you…

Having said this, Shyam Sundar started measuring the eyes with his finger…first his own eyes…then that of his beloved.

Wait ! I know you are deceitful… Shreeji also said this.

Hey ! I am measuring in front of you… After saying this, Shyam Sundar said in some time… We both have equal eyes… Equal… That’s all, Shyam Sundar became silent after saying this… Shri ji laughed.

But even if the eyes are equal in the elder and the younger… but! Beautiful eyes are mine only… Shyam Sundar said this.

how how ? Shreeji also got stubborn.

My eyes are reddened… you can see for yourself, right?

Shyam Sundar was also stubborn today.

All the friends laughed out loud…

Rangdevi came forward… and stopped laughing and said…

🙏”Jai Ho”… If you are the order of the couple… then should I say something?

Yes yes… now you only do justice Rangdevi!

Both of them said this together.

Rangdevi looked at the eyes of both of them very carefully… then said…

🙏 Hey couple government! The eyes are equal to both of them… no one is less than anyone in beauty… but…

Yes yes… “but” what Rangdevi! Tell me… are my eyes more beautiful than Shreeji’s eyes, aren’t they? Shyam Sundar asked jumping up.

Hey ! Why are you getting impatient… Rangdevi! She is telling.

Shreeji said.

Yes friend! You say… …

Rangdevi said… “The playful eyes belong to Shyam Sundar…

“Salons also belong to Shyam Sundar”… Shyam Sundar is happy!

Shyam Sundar’s eyes are like lotus too… Rangadevi continues to speak… Shyam Sundar’s eyes are also like those of a deer.

Shreeji is looking at Rangdevi with astonishment… how did this Rangdevi go in favor of Shyam Sundar today.

Big eyes like fish are also of Shyam Sundar.

Bitter, cheeky, dirty, proud, chabile, cheeky, unmiled, barchile, shy… Such eyes are of Shyam Sundar only… Everyone is looking at Rangdevi… Shyam Sundar became very happy… Wow to Rangdevi! Wow ! Started saying

🙏 But Rangdevi said – O dear! Your eyes may be millions of beautiful… but without the eyes of this Shreeji, your eyes have no beauty.

🙏 Hey Shyam Sundar! The eyes that give rest to your eyes are the eyes of Shreeji only… until the eyes of Shreeji fall on you, where does the restlessness of your eyes go away…

That’s why your eyes may be beautiful… but the ones who give beauty to your eyes are the eyes of Shreeji only.

Shyam Sundar was annoyed at the cleverness of Rangadevi… Shreeji… was smiling…

All the friends stood up cheering….

Nikunj was engrossed in the juice of joy.

The rest of “Juice Discussion” tomorrow –

🚩Jai Shri Radhe Krishna🚩

🌷🌻🌷🌻🌷🌻🌷

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