अब बताओ ! विवशता किसी को अच्छी लगती है ?
पराधीन होना किसे प्रिय लगता है ?… पर ये प्रेम ! ये प्रेम है ही ऐसा कि इसमें विवश हो जाना… किसी के आधीन हो जाना बड़ा प्रिय लगता है…
कल ही एक विद्वान् मिलने आये… वो “श्रीराधाचरितामृतम्” को पढ़कर मुझसे मिलना चाहते थे… और “रसोपासना” को पढ़कर तो कुछ ज्यादा ही भावुक हो रहे थे… उन्होंने ही ये सूत्र मुझे दिया…
“मधुरं वैवश्यमेव प्रेम्णो लक्षणम्”
प्रेम क्या है ? मधुर वैवश्य… मीठी विवशता… उफ़ ! आनन्द आ गया उनकी बातें सुनकर मुझे ।
आन्तर मधुर वेदना… वैसे विवशता मधुर नही होती ..मधुर तो स्वतन्त्रता ही लगती है… पर ये प्रेम है ही ऐसा क्या कीजियेगा ?
मधुर विवशता ही प्रेम तत्व है… प्रेम तत्व ईश्वर को भी छू दे तो वो भी विवश हो जाएँ…
विवशता यानि दुःख… एक अर्थ में… पर इस प्रेम राज्य में… वह विद्वान् इससे आगे कुछ बोल न सके… कभी मुझे प्रणाम कर रहे थे कभी मुझे आशीर्वाद देते हुये कह रहे थे… मेरी आयु भी आपको लग जाए… आप खूब लिखो… जगत का मंगल करो… अश्रु पोंछते हुये वे चले गए ।
पर सूत्र विलक्षण दे गए थे… “.मधुरं वैवश्यमेव प्रेम्णो लक्षणम्” ।
अर्थात् – मधुर विवशता ही प्रेम का लक्षण है ।
साधकों ! मन को शान्त कीजिये… “श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा”… नामोच्चारण कीजिये… आँखें बन्द… युगल वर को अपने हृदय में विराजमान कीजिये… देखिये – श्रीधाम वृन्दावन एक प्रेममय देश है… यहाँ केवल प्रेम देवता का ही राज्य है… युगल किशोर ही यहाँ के नरेश हैं… यहाँ की प्रजायें हैं – सखियाँ, पक्षी, वृक्ष, पुष्प और समस्त श्रीधाम का परिकर ।
युगल नरेश यहाँ नित्य किशोरावस्था के ललित यौवन रूपी सिंहासन में विराजमान रहते हैं… उन पर सौन्दर्य सिन्धु का छत्र हर समय तना रहता है… निकुञ्ज महल ही उनका राज्य प्रासाद है… और अष्ट सखियाँ ही मन्त्री सभासद आदि हैं…
श्रीराधारानी के रूप सुधा का निरन्तर पान ये यहाँ के राजा श्रीश्याम सुन्दर का अद्भुत व्यसन है… राजा, प्रेम देवता के उपासक हैं ।
इसलिये विवश है… प्रेम विवशता यही राजा की सुन्दरता है ।
उफ़ ! चलिये… उसी भाव राज्य में…
प्रातः के 6 बजे हैं… अभी निकुञ्ज में मंगल भोग हुआ है… और मंगला आरती हुयी है ।
दिव्य सिंहासन है… उस सिंहासन पर युगल सरकार विराजमान हैं ।
गलवैयाँ दिए… मुरली धारण किये हैं श्याम सुन्दर… एक कमल पुष्प श्रीकिशोरी के हाथ में है और दूसरा हाथ श्यामसुन्दर के कन्धे में ।
गौर वर्णी श्रीराधा रानी हैं… और श्याम वर्ण श्याम सुन्दर हैं ।
झाँकी बड़ी सुन्दर है… सखियाँ इस झाँकी को निहारती हैं… और मुग्ध हो रही हैं ।
कोई सखी पँखा कर रही है तो कोई चँवर ढुरा रही हैं ।
सखियों ! सच में हमारे बहुत बड़े भाग्य हैं… कि हम इन नयनों से युगलवर के रूप सुधा का पान कर रही हैं… रंगदेवी सखी ने कहा ।
सुदेवी तुरन्त बोलीं – हम तो अपने भाग्य की सराहना करते थक नही रहीं… कि ये दोनों प्रेम के युगल सरकार हमको मिले हैं… और जो नित नवीन प्रेम रस को हमारे हृदय में प्रकट करते रहते हैं ।
सखी ! इनके गौर श्याम अंग की शोभा तो देखो… क्या उपमा दूँ कुछ समझ में ही नही आ रहा… बादल और बिजली की उपमा भी तुच्छ लग रही है… करोड़ों करोड़ काम देव और रति भी इनके आगे कुछ नही हैं… “युगल” जैसे तो ‘युगल” ही हैं… कोई उपमा ही नही ।
ललिता सखी ने कहा ।
इस तरह सब सखियाँ युगल सरकार के यश का गान करती हैं… और आनन्दित हो रही हैं ।
तभी नीली साड़ी पहनी हुयी रंगदेवी सखी आगे आईँ…
हे युगल सरकार ! प्रातः की वेला है… सूर्योदय अभी हुआ नही है… देखो ! ये वनराज श्रीवृन्दावन कितना सुन्दर लग रहा है… हे युगलवर ! आपकी प्रतीक्षा में है ये श्रीधाम… अगर आप की इच्छा हो तो श्री वृन्दावन की शोभा देखने के लिये, वन विहार के लिये आप पधारो… रंगदेवी ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की ।
पर ये श्रीवृन्दावन नरेश श्याम सुन्दर तो अपनी प्यारी के प्रेम में विवश हैं… उनकी ओर देखकर मानो नयनों से ही पूछा… चलें ?
चलो प्यारे !… श्रीजी उठीं… तो श्यामसुन्दर भी मुस्कुराते हुए उठे ।
बस जैसे ही युगलवर वन विहार के लिए चलने को हुए… वृन्दावन तो चहक उठा… पक्षी आनन्दित हो उठे ।
मोरों ने आगे-आगे चलते हुए नाचना शुरू किया… कोयल ने गायन ।
सरोवर के कमल खिल उठे… नाना जाति के पुष्पों से वृक्ष लद गए… लताएँ झुक कर युगल का स्वागत करने लगीं… भ्रमरों ने गुंजार करना शुरू कर दिया… लताओं ने तुरन्त द्वार बना दिए… कुञ्जों में सुन्दर-सुन्दर पुष्प लताओं से गिरकर फ़ैल गए… फुलवारी बन गयी चारों ओर…
पर उसी समय सखियाँ कहीं छुप गयीं… ताकि युगल निश्चिन्त हो वन विहार कर सकें… हाँ कुञ्ज रंध्रों से… सखियाँ झाँक कर दर्शन कर रही हैं… (हम भी करें)
हे प्रिय राधे ! देखो ! ये वन कितना सुन्दर है… मालती, मोगरा, मोरछली, मेहँदी, गुलाब से ये वन कैसा महक रहा है…
हाँ प्रियतम ! इनके सुगन्ध ने तो मेरा मन सहज ही मोह लिया ।
प्यारी ! देखो ! सोनजूही, सूरजमुखी, सुगन्धा, उस तरफ कितने सुन्दर लग रहे हैं ना ?
हाँ हाँ प्रियतम ! मैं देख रही हूँ… आज तो ये वन प्रदेश ज्यादा ही प्रफुल्लित दिखाई दे रहा है… श्री राधारानी ने कहा ।
क्योंकि प्यारी ! आप आयी हो ना ! इसलिये ये सब भी प्रसन्न हैं ।
रसिक शेखर बोले… और मुस्कुराये ।
प्यारे ! ये लता… कितनी सुन्दर है… इसमें फूलों का गुच्छा !
मुझे ये चाहिये ! मचल गयीं श्री किशोरी जी ।
आप तोड़ लो ना ! श्यामसुन्दर ने कहा ।
उचकती हैं श्री जी… कुछ उछलती हैं उस लता को पकड़ने के लिये… पर श्रीराधा जी के हाथों में वो लता आती ही नहीं ।
प्रिय ! देखो ना… ये लता मेरे हाथों में नही आरही…
और आप कुछ करते भी नही हैं… कुछ रोष-सा प्रकट किया श्रीराधारानी ने…
अच्छा ! मैं कुछ करता हूँ… श्याम सुन्दर भी उछले… पर लता हाथ में नही आयी…
मैं सब समझती हूँ आप जानबूझ कर इसे नही पकड़ रहे… ।
कुछ सोचकर बोले श्याम सुन्दर… मेरी प्यारी ! एक उपाय है…
जल्दी बताओ ! क्या उपाय है ? मुझे ये लता के पुष्प चाहियें ।
अपनी मुस्कुराहट रोकते हुए चतुर शिरोमणि श्याम बोले…
मैं आपको गोद में लेकर उठाता हूँ… आप लता को पकड़ कर तोड़ लेना… श्याम सुन्दर ने जैसे ही ये कहा… श्याम सुन्दर की आँखों में श्री जी ने ध्यान से देखा… नयन झुका लिये श्याम ने ।
“मैं समझ रही हूँ”… श्रीजी बोलीं… “मैं विवश हूँ” ..श्यामसुन्दर बोले ।
पर सखियाँ देखेंगी तो ?
श्याम सुन्दर ने इधर-उधर देखा… कहाँ हैं सखियाँ ?
कुछ नही बोलीं श्री राधा जी… तो बड़े आनन्द से उछलते हुए श्री जी को उठा लिया श्याम सुन्दर ने… और बोले… अब आप लता को पकड़ लो… श्री जी ने लता को दोनों हाथों से पकड़ा… पर अब पुष्प तोड़ें कैसे ? क्यों कि लता एक हाथ से पकड़ने पर रुक नही रही थी ।
अच्छा ! अच्छा ! प्यारी ! आप पकड़े रखना… मैं आपको छोड़ रहा हूँ फिर मैं फूल तोड़ लूँगा… श्याम सुन्दर ने कहा ।
पर मैं तो गिर जाऊँगी… श्रीजी चिल्लाईं ।
आप नही गिरोगी… बस, डाली को मत छोड़ना ।
श्याम सुन्दर ने श्रीजी को छोड़ दिया… अब श्रीजी डाली को पकड़ कर लटक गयीं…
श्री जी चिल्लाईं… प्यारे ! मैं गिर जाऊंगी…
पर हँसते हुए श्याम सुन्दर ने आकर फिर श्रीजी को पकड़ लिया…
लता ने स्वयं ही पुष्प गिरा दिए थे… यानि लताएँ भी लीलाओं में प्रिया प्रियतम का साथ दे रही थीं… जय हो ।
तभी सखियाँ हँसती हुयी कुञ्ज से बाहर आगयीं…
प्रिया जु शरमा रही हैं… लाल हँस रहे हैं ।
ये क्या हो रहा था ?
रंगदेवी सखी ने आकर हँसते हुए पूछा ।
हम तो प्रेम विवश हैं… आप सब सखियों को पता ही है ।
श्याम सुन्दर ने हँसते हुए उत्तर दिया ।
🙏सामने यमुना के दर्शन हो रहे हैं… यमुना भी आ गयीं थीं पास में ही ।
शेष “रस चर्चा” कल –
🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩
🌷🌻🌷🌻🌷🌻🌷
tell now ! Does anyone like compulsion?
Who likes to be dependent?… But this love! This love is such that to be compelled in it… to be subservient to someone seems very dear…
Just yesterday a scholar came to meet me… He wanted to meet me after reading “Shriradhacharitamritam”… and after reading “Rasopasana” he was getting very emotional… He only gave this sutra to me…
“Sweetness is necessarily a sign of love”
What is love ? Sweet Vaivashya… sweet compulsion… Oops! I felt happy listening to his words.
Sweet pain inside… by the way, compulsion is not sweet.. freedom seems sweet… but this is love anyway, what will you do like this?
Sweet compulsion is the element of love… If the element of love touches even God, then he too becomes helpless…
Compulsion means sorrow… in a sense… but in this state of love… those scholars could not say anything beyond this… sometimes they were saluting me, sometimes they were blessing me and saying… even my age may seem to you… you write a lot… the world Do good to… He went away wiping his tears.
But the formula was remarkable… “.Madhuram vaivashyameva premno laksanam”
That is, sweet compulsion is the sign of love.
Seekers! Calm the mind… “Shriradha Shriradha Shriradha”… Chant… Close your eyes… Make the couple groom sit in your heart… See – Sridham Vrindavan is a land of love… Only the God of Love reigns here… Couple teenagers are the king here There are… The subjects here are – friends, birds, trees, flowers and the entire family of Shridham.
Couple kings sit here on the throne in the form of fine youth of eternal youth… The canopy of beauty Sindhu stays on them all the time… Nikunj Mahal is their royal palace… and the eight friends are the ministers and councilors etc…
The continuous drinking of Sudha in the form of Shri Radharani is the wonderful addiction of the king Shri Shyam Sundar here… The king is a worshiper of the God of love.
That’s why he is helpless… Love is helpless, this is the beauty of the king.
Oops ! Let’s go… in the same feeling state…
It is 6 o’clock in the morning… Mangal Bhog has just happened in Nikunj… and Mangala Aarti has been performed.
There is a divine throne… the couple government is sitting on that throne.
Gave garlands… Murli is worn by Shyam Sundar… One lotus flower is in the hand of Shri Kishori and the other hand is in the shoulder of Shyam Sundar.
Gaur Varni Shriradha is the queen… and Shyam Varni Shyam is Sundar.
The tableau is very beautiful… The friends look at this tableau… and are getting mesmerized.
Some friend is fanning and some is sweeping the chavar.
Friends! Really we have a great fortune… that we are drinking Sudha in the form of a couple with these eyes… Rangadevi Sakhi said.
Sudevi immediately said – We are not tired of appreciating our luck… that we have got these two loving couple Sarkar… and who keep manifesting new love juice in our heart everyday.
Friend! At least look at the beauty of their black and white body… What simile should I give, I am not able to understand… Even the simile of cloud and lightning seems trivial… Crores of crores of Kamdev and Rati are also nothing in front of them… “couple” like that. Couple” is only… no simile at all.
Lalita Sakhi said.
In this way, all the friends sing the praise of the couple’s government… and are rejoicing.
That’s why Rangadevi Sakhi wearing a blue saree came forward…
Hey couple government! It’s early morning… Sunrise hasn’t happened yet… Look! This Vanraj Shri Vrindavan is looking so beautiful… Hey couple! This Shridham is waiting for you… If you wish, you can come to Van Vihar to see the beauty of Shri Vrindavan… Rangadevi prayed with folded hands.
But this Sri Vrindavan king Shyam Sundar is helpless in the love of his beloved… Looking at her, as if he asked with his eyes… Shall we go?
Come on dear!… Shreeji got up… So Shyamsundar also got up smiling.
Just as the couple was about to leave for Van Vihar… Vrindavan was chirping… the birds were rejoicing.
The peacocks started dancing while moving forward… The cuckoo sang.
The lotus bloomed in the lake… the trees were covered with flowers of various species… the vines bowed down to welcome the couple… the illusionists started humming… the vines immediately made the doors… beautiful flowers fell from the vines and spread in the kunjs. … Flowers have become all around…
But at the same time, the friends hid somewhere… so that the couple can go to the forest without worry… Yes, from the holes of the door… the friends are peeping and seeing… (we should also do it)
O dear Radhe! See ! This forest is so beautiful… How this forest is smelling of Malti, Mogra, Morchhali, Mehendi, Rose…
Yes dear! Their fragrance easily attracted my mind.
Dear ! See ! Sonjuhi, Surajmukhi, Sugandha, they are looking so beautiful on that side, aren’t they?
yes yes dear I am seeing… today this forest region is looking very cheerful… Shri Radharani said.
Because dear! You have come, haven’t you? That’s why all of them are also happy.
Rasik Shekhar spoke… and smiled.
Dear! This creeper… how beautiful… it has a bunch of flowers!
I want this! Shri Kishori ji got agitated.
You break it! Shyamsundar said.
Shri ji jumps… some jump to catch that creeper… but that creeper does not come in the hands of Shriradha ji.
Dear ! Look, this creeper is not coming in my hands.
And you don’t even do anything… Shriradharani expressed some anger…
Good ! I do something… Shyam Sundar also jumped… but Lata did not come in hand…
I understand everything, you are not catching it intentionally….
After thinking something, Shyam Sundar said… My dear! There is a solution…
Tell me quickly ! What is the solution? I want these Lata flowers.
Clever Shiromani Shyam said while stopping his smile…
I will pick you up in my lap… You break the creeper by holding it… As soon as Shyam Sundar said this… Shri ji looked carefully into Shyam Sundar’s eyes… Shyam bowed his eyes.
“I am understanding”… Shreeji said… “I am helpless”… Shyamsundar said.
But will friends see?
Shyam Sundar looked here and there… where are the friends?
Shri Radha ji did not say anything… So Shyam Sundar picked up Shri ji while jumping with great joy… and said… Now you hold the Lata… Shri ji caught the Lata with both hands… But now how to pluck the flowers? Because Lata was not stopping on holding it with one hand.
Good ! Good ! Dear ! You hold on… I am leaving you, then I will pluck the flowers… said Shyam Sundar.
But I will fall… Shreeji shouted.
You will not fall… just don’t leave the branch.
Shyam Sundar left Shreeji… Now Shreeji hanged herself holding the branch…
Shree ji shouted… Dear! i will fall…
But while laughing, Shyam Sundar came and caught Shreeji again…
Lata herself dropped the flowers… Means the creepers were also supporting the beloved in the pastimes… Jai Ho.
That’s why the friends came out laughing…
Priya is blushing… Lal is laughing.
What was happening?
Rangdevi Sakhi came and asked smilingly.
We are bound by love… All of you friends know this.
Shyam Sundar replied smilingly.
Yamuna is visible in front… Yamuna had also come nearby.
The rest of “Juice Discussion” tomorrow –
🚩Jai Shri Radhe Krishna🚩
🌷🌻🌷🌻🌷🌻🌷