महिमा तेरी समज सका न कोई भोले शंकर
कभी तो भोले भंडारी हो कभी तो रूप भयंकर,
भगतो के मन को भाति है भोले छवि तुम्हारी,
माथे चंदा जटा में गंगा और नंदी की सवारी
बाए अंग में गोरा माता बैठी आसन ला कर
कभी तो भोले भंडारी हो कभी तो रूप भयंकर
भोर भयंकर रूप तुम्हारा जब तांडव हो करते
सुर नर मुनि और देवता भी है ऐसे रूप से डरते
परले कारी रूप दिखे जब खोलो तीसरा नेत्र
कभी तो भोले भंडारी हो कभी तो रूप भयंकर
है विनती मेरी ये भोले किरपा मुझपे करना
तेरे चरणों में रेह कर है तेरा नाम सुमीर ना
सुरेश खड़ा है देखो दोनों हाथ जोड़ कर
कभी तो भोले भंडारी हो कभी तो रूप भयंकर
Mahima could understand you, neither any innocent Shankar
Sometimes you are innocent Bhandari, sometimes you are fierce in form,
Bhagto’s mind is like your innocent image,
Ganga and Nandi ride in Mathe Chanda Jata
Gora Mata sitting in the left limb by bringing a seat
Sometimes you are innocent Bhandari, sometimes you are fierce.
When the orgy used to be yours in the morning
Sura male sage and deity are also afraid in such a way
When you open your third eye
Sometimes you are innocent Bhandari, sometimes you are fierce.
It is my request to do this naive sarcasm on me
Residing at your feet, your name is Sumir.
Suresh is standing look with folded hands
Sometimes you are innocent Bhandari, sometimes you are fierce.