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” दिव्य दृष्टि “ गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि केवल मूर्ति में मेरा दर्शन करने वाला नहीं अपितु सारे संसार में प्रत्येक जीव के भीतर और कण-कण में मेरा दर्शन करने वाला ही मेरा भक्त है।

प्रत्येक वस्तु परमात्मा की है, अपनी मानते ही वह अशुद्ध हो जाती है। तुम भी परमात्मा के ही हो, परमात्मा से अलग अपना अस्तित्व स्वीकार करते ही तुम भी अशुद्ध हो जाते हो। प्रकृति में परमात्मा नहीं, अपितु ये प्रकृति ही परमात्मा है। जगत और जगदीश अलग-अलग नहीं, एक ही तत्व हैं। परमात्मा का जो हिस्सा दृश्य हो गया है वह जगत है और जगत का हो हिस्सा अदृश्य रह गया वह जगदीश है। संसार से दूर भागकर कभी भी परमात्मा को नहीं पाया जा सकता है। संसार को समझकर ही भगवान् को पाया जा सकता है। जगत में कहीं दुःख, अशांति, भय नहीं है। यह सब तो तुम्हें अपने मनमाने आचरण, असंयमता और विवेक के अभाव के कारण प्राप्त हो रहा है।



“Divine Vision” Lord Krishna tells Arjuna in the Gita that the one who sees me not only in the idol, but the one who sees me in every living being and every particle in the whole world is my devotee.

Everything belongs to God, as soon as it is believed it becomes impure. You also belong to God, you also become impure as soon as you accept your existence apart from God. There is no God in nature, but this nature itself is God. Jagat and Jagdish are not separate, they are one element. The part of God that has become visible is the world and the part of the world that has remained invisible is Jagdish. God can never be found by running away from the world. God can be found only by understanding the world. There is no sorrow, unrest or fear anywhere in the world. You are getting all this because of your arbitrary conduct, incontinence and lack of conscience.

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