चरैवेतिके उपदेशक
(म0म0 देवर्षि श्रीकलानाथजी शास्त्री)
वेदके व्याख्याकार और ऐतरेय ब्राह्मणके प्रणेता महीदास ऐतरेय वेदकालीन भारतके ऐसे तपस्वी ऋषि हुए हैं, जिन्होंने सब तरहकी विपरीत परिस्थितियोंमें अपनी साधना, अथक श्रम और लगनसे अपना इतिहासमें स्थान बनाया है। वे इतराके पुत्र थे। उनके पिता उनकी माताकी जीवनभर उपेक्षा करते रहे। बचपनसे ही उन्होंने सौतेले भाइयोंको अपने पिताका प्यार पाते देखा। उपेक्षासे खिन्न होकर उनकी माता छोटे-से बालक महीदासको लेकर घरसे निकल गयी। घर-घर और गाँव-गाँव मजदूरी करके उसने अपने पुत्रको पाला। जब वह गुरुकुल गया तो उसने अपने अभिभावकके रूपमें अपनी माताका नाम बताया। उसने कहा- ‘मेरे पिता और मेरी माता दोनोंका नाम है इतरा।’ गुरुकुलके कुलपतिने सहर्ष उसे दाखिला दिया। उसका नाम लिखा गया ‘महीदास ऐतरेय’ इतराका पुत्र ऐतरेय अथक श्रमसे विद्याध्ययनकर महीदास गुरुकुलसे निकलकर भारतके कोने-कोने में घूमने लगे। प्रत्येक प्रदेशके भूगोलका अध्ययनकर वे दूसरे प्रदेशवालोंको उसकी जानकारी देते। लोग सुनने आने लगे।
उन्होंने वेदोंके अमर सन्देशोंको जन- जनतक पहुँचाने हेतु उनकी क्रान्तिकारी व्याख्या की। उनका बनाया हुआ वेदविमर्शरूप ग्रन्थ ऐतरेय ब्राह्मणके नामसे आजतक अमर है। उन्होंने उपनिषद्की भी रचना की। उन्होंने एक जगह पड़े रहनेकी बजाय यायावर रहकर ज्ञानका अर्जन करने और घूम-घूमकर उसको जन- जनतक फैलानेकी सीख दी। ‘चरैवेति, चरैवेति’ उन्होंके शब्द हैं, जो अमर हो गये हैं। प्रान्त – प्रान्तमें उनके शिष्यगण हो गये, सब जगहसे उनको बुलावे आने लगे। उन्होंने चरैवेतिका घण्टाघोष करते हुए अपने सूक्तमें लिखा है, ‘जो सदा चलता रहता है, उसके पैरोंके नीचे जमाना फूल बिछाता है, उसके पैर फूलोंकी तरह हलके रहते हैं, जो बैठा रहता है, उसका भाग्य निष्क्रिय रहता है, जो पड़ा पड़ा सोता रहता है, उसका भाग्य आँख ही मूँद लेता है, इसलिये चलते रहो।’ महीदास ऐतरेयने कर्मठता और पुरुषार्थके मन्त्र फूँक दिये थे देशके गाँव-गाँवमें। ऋषियोंने उन्हें उनके पिताका नाम पूछे बिना वेदोंके अमर उपद्रष्टा ब्राह्मण ग्रन्थकारका सम्मान देते हुए उन्हें महर्षि ऐतरेय ही कहा। इसी नामसे उनके ऐतरेय ब्राह्मण और ऐतरेय उपनिषद् आज भी अमर हैं और उनके साथ ही अमर है, अपने पुत्र महीदासको जीवन-सम्बल देनेवाली अभागी परित्यक्ता, किंतु यश और सौभाग्यसे मंडिता माता ‘इतरा’ का नाम ।
preceptor of Charaiveti
(M.M. Devarshi Shri Kalanathji Shastri)
Mahidas Aitareya, the interpreter of Vedas and pioneer of Aitareya Brahmin, has been such an ascetic sage of Vedic India, who has made his place in history by his sadhana, tireless labor and dedication in all kinds of adverse circumstances. He was the son of Itara. His father kept neglecting his mother throughout his life. Right from his childhood he saw his step brothers getting their father’s love. Distressed by the neglect, his mother left the house with the small child Mahidas. She brought up her son by working as a laborer from house to house and village to village. When he went to the Gurukul, he named his mother as his guardian. He said- ‘The name of both my father and my mother is Itara.’ The Vice-Chancellor of the Gurukul gladly admitted him. His name was written as ‘Mahidas Aitareya’ Aitareya’s son Aitareya left the Gurukul after tireless hard work and started roaming in every corner of India. After studying the geography of each state, he used to inform the people of other states about it. People started coming to listen.
He made a revolutionary interpretation of the Vedas to convey the immortal messages to the masses. The Vedavimarshrup book made by him is immortal till date in the name of Aitareya Brahmin. He also composed the Upanishads. Instead of staying at one place, he learned to earn knowledge by being a wanderer and to spread it to the people by roaming around. ‘Charaiveti, Charaiveti’ are the words of those who have become immortal. His disciples became in every province, he started getting calls from everywhere. He has written in his Sukta while chanting Charaivetika, ‘The one who always walks, the world lays flowers under his feet, his feet remain light like flowers, the one who sits, his fate remains inactive, the one who lies down sleeps. , His fate turns a blind eye, so keep walking.’ Mahidas Aitareya had spread the mantras of hard work and effort in every village of the country. The sages, without asking the name of his father, called him Maharishi Aitareya, giving respect to the Brahmin writer, the immortal guide of the Vedas. By this name, his Aitareya Brahmin and Aitareya Upanishad are immortal even today and immortal with him, the name of Mandita Mata ‘Itra’, the unfortunate abandoner who gave life support to her son Mahidas, but fame and fortune.