बाबा श्रीभास्करानन्दजी अपनी गङ्गातटकी कुटिया में बैठे भगवन्नामका जप कर रहे थे। सहसा आहट पाकर उनकी दृष्टि सामने की ओर गयी। बोले ‘आओ, माधवदास! कैसे आ गये ?’
अभिवादनादिके बाद बैठकर माधवदासने विनम्र भावसे पूछा—’महाराजजी ! क्या कभी जीव ब्रह्म पदको प्राप्त कर सकता है? यदि कर सकता है तो कैसे ?”बाबाजीने कहा- कमरेकी दीवाल टूटनेसे जैसे कमरेका आकाश बाहरके आकाशसे मिलकर एक हो जाता है, वह है तो एक अब भी, परंतु दीवालके कारण अलग मानता है। वैसे ही मायारूपी दीवालके हट जानेपर जीव ब्रह्म हो जाता है। अथवा यों समझो कि एक छोटा घड़ा, जिसमें थोड़ा जल है, नदीमें बहता जा रहा है, घड़ा फूट जाता है तो घड़ेका जल नदीके जलमें मिलकर एक हो जाता है, है तो जल अपनी जातिसेएक ही, पर घड़ेके कारण अलग दीखता है, वैसे ही | मायारूपी घड़ेके फूट जानेपर जीव ब्रह्ममें मिल जाता है।
न समझमें आया हो तो जाओ भीतरसे लोहेकी डिबिया उठा लाओ। आज्ञा पाते ही माधवदास अंदरसे डिबिया ले आये और बाबाजीसे पूछने लगे- ‘ इसमें क्या है ?’
बाबाजी बोले- इसमें पारसकी बटिया है। माधवदासके आश्चर्यका ठिकाना नहीं रहा, उन्होंने पूछा—’महाराज ! मैंने तो सुन रखा है कि पारसके स्पर्शसे लोहा सोना हो जाता है, फिर यह लोहेकी डिबिया लोहेकी ही कैसे रह गयी ?’ ‘समझ जाओगे भैया! जरा इसे खोलो तो’ बाबाजीनेकहा। माधवदासने तुरंत डिबिया खोली, देखा कि कोई वस्तु पतली कागजकी झिल्लीमें लपेटी रखी है।
बाबाजी बोले- ‘भैया! इस कागजकी झिल्लीको निकालकर बटियाको डिबियामें रख दो।’ आज्ञा पाकर माधवदासने ऐसा ही किया और डिबिया सोनेकी हो गयी। बाबा भास्करानन्दजीने कहा – देखो, लोहेकी डिबियामें पारस था, पर कागजकी झिल्लीका व्यवधान बीचमें था। पारसका स्पर्श नहीं हो पाता था । इसीसे लोहा लोहा बना रहा। इसी प्रकार यह पतली-सी माया है जिसने स्वरूपतः एक होनेपर भी ब्रह्मसे जीवको अलग कर रखा है। माया हटते ही जीव ब्रह्म हो जाता है।
Baba Shri Bhaskaranandji was chanting the name of the Lord while sitting in his cottage on the banks of the Ganges. Hearing a sudden sound, his vision went towards the front. Said ‘Come, Madhavdas! How did you come?
Sitting after the greeting, Madhavdas humbly asked – ‘ Maharajji! Can a Jiva ever attain the status of Brahman? If he can, then how?” Babaji said – just as the sky in the room becomes one with the outside sky when the wall of the room is broken, it is still one, but because of the wall it is considered separate. Similarly, when the wall of illusion is removed, the soul becomes Brahman. Or understand that a small pot, in which there is little water, is flowing in the river, if the pot breaks, then the water of the pot mixes with the water of the river and becomes one. Only when the illusionary pot breaks open, the soul merges into Brahman.
If you haven’t understood, then go get the iron box from inside. On getting permission, Madhavdas brought the casket from inside and started asking Babaji – ‘What is in it?’
Babaji said – There is Paraski batiya in it. There was no place for Madhavdas’s surprise, he asked – ‘ Maharaj! I have heard that iron turns into gold by the touch of Paras, then how did this iron casket remain iron only?’ ‘You will understand brother! Just open it,’ said Babaji. Madhavdas immediately opened the box, saw that something was wrapped in a thin paper membrane.
Babaji said – ‘Brother! Take out this paper membrane and put the batiya in the box. After getting permission, Madhavdas did the same and the casket became golden. Baba Bhaskaranandji said – Look, Paras was there in the iron box, but there was a barrier of paper membrane in between. Paras could not be touched. That’s why iron remained iron. Similarly, it is a thin illusion which has separated the soul from Brahman even though it is one in nature. As soon as Maya is removed, the soul becomes Brahman.