एक बारकी बात है। एक आदमी मस्जिदमें जाकर भीख माँग रहा था। उसे देखकर जुनेदने कहा- ‘तुम नीरोग और बलवान् हो, परिश्रम करने योग्य हो, फिर भीख किसलिये माँग रहे हो ?’ उसी रातको उन्होंने स्वप्न देखा कि कपड़ेसे ढके हुए वर्तनसे आवाज आ रही है-‘ले खा, ले खा।’ चकित होकर जुन्नेदने कपड़ा उठाया तो उसमें भिखारीका शव दिखायी दिया। घबराकर उन्होंने कहा-‘मैं आदमीका मांस कैसे खाऊँ?’
उस पात्रसे पुनः आवाज आयी-आदमीका मांस तो तूने आज सबेरे मस्जिदमें खा ही लिया था । ‘ जुनेद सच्चे उपासक थे उन्हें समझते देर नहीं लगी कि आज मस्जिदमें भिक्षुकका अपमान करनेकायह परिणाम है। उन्हें मन-ही-मन पश्चात्ताप होने लगा। वे दो दिनतक भगवान्की उपासनामें लगे रहे। इसके बाद उस भिक्षुकको ढूँढ़नेके लिये निकले। उन्होंने देखा, वह भिक्षुक नदी किनारे हरी-हरी घासोंको धोकर खा रहा है। जुन्नेदको देखते ही भिक्षुक बोल उठा – ‘मस्जिदमें तूने मुझे पीड़ित किया था, उसका प्रायश्चित्त कर लिया ?’
‘हाँ,’ जुन्नेदने कहा, ‘मुझसे बड़ी भूल हुई थी। मैंने प्रायश्चित्त कर लिया है।’
भिक्षुकने सजग करते हुए कहा – ‘ तो ठीक है, अब लौट जा। मेरा प्रायश्चित्त तो वह ईश्वर स्वीकार करता है। सावधान रहना, कहीं फिर प्रायश्चित्त न करना पड़े।’
– शि0 दु0
Once upon a time. A man was begging in the mosque. Seeing him, Junaid said – ‘You are healthy and strong, able to work hard, then why are you begging?’ The same night he dreamed that a voice was coming from a pot covered with a cloth – ‘Take it, take it’. Astonished, when Junned picked up the cloth, he saw the dead body of the beggar in it. Panicked, he said – ‘How can I eat human flesh?’
A voice again came from that vessel – You had already eaten human flesh in the mosque this morning. ‘ Junaid was a true worshiper, it did not take him long to understand that this is the result of insulting the monk in the mosque today. He started repenting in his heart. They were engaged in the worship of God for two days. After this he went out to find that monk. He saw that the monk was eating green grass after washing them on the bank of the river. On seeing Junned, the beggar said – ‘You made me suffer in the mosque, have you made atonement for that?’
‘Yes,’ said Junned, ‘I made a big mistake. I have repented.’
The monk alerted and said – ‘ Then it’s okay, now go back. That God accepts my atonement. Be careful, don’t have to do atonement again.’
– Shi0 Du0