अतिथि सत्कार

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श्रीईश्वरचन्द्र विद्यासागर उस समय खर्मा टाँड़में रहते थे। आवश्यकतावश उन्हें ढूँढ़ता एक व्यक्ति पहुँचा। उससे ज्ञात हुआ कि वह कई दिनसे विद्यासागरजीको ढूँढ़ रहा है और कलकत्ते तथा अन्य कई स्थानोंमें भटकता हुआ आया है। विद्यासागरजीने उससे कहा ‘देखिये, भोजन तैयार है। पहले आप भोजन कर लें, फिर बातें होंगी।’

वह एक साधारण मनुष्य था। गरीबको कौन पूछता है। जहाँ-जहाँ वह गया था, किसीने उसे पानी पीनेतकको नहीं पूछा था । विद्यासागरजी जैसे प्रतिष्ठित व्यक्तिका ऐसा उदार व्यवहार देखकर उसके नेत्रोंसे आँसू टपक पड़े। विद्यासागरजीने पूछा—’आप रोते क्यों हैं? भोजनके लिये आपको मैंने कहा है; इसमें कुछ अनुचित हो तो क्षमा करें। मेरे यहाँ आप भोजन नकर सकें तो स्वयं भोजन बना लें। मैं अभी व्यवस्था कर देता हूँ।’

उस व्यक्तिने कहा- ‘मुझे तो आपकी दयालुताने रुलाया है। इधर मैं कितना भटका हूँ, कई दिनोंसे कुछ मिला नहीं है; किंतु किसीने बैठनेको भी नहीं कहा और आप….।’

परंतु विद्यासागरजी अपनी प्रशंसा सुननेके अभ्यासी नहीं थे। उन्होंने उसे बीचमें ही रोककर कहा – ‘ इसमें हो क्या गया। अपने यहाँ कोई अतिथि आये तो उसका सत्कार करना सभीका कर्तव्य है। आप झटपट चलकर भोजन कर लीजिये ।’

जब वह भोजन कर चुका, तब उससे विद्यासागरजीने पूछा कि वह किस कामसे उनके पास आया है।

– सु0 सिं0

Shri Ishwarchandra Vidyasagar was living in Kharma Tand at that time. Necessarily, a person reached in search of them. It was learned from him that he had been searching for Vidyasagarji for many days and had been wandering in Calcutta and many other places. Vidyasagar told him, ‘Look, the food is ready. First you have food, then things will happen.’
He was a simple man. Who asks the poor. Wherever he went, no one even asked him to drink water. Tears welled up in his eyes seeing such generous behavior of a respected person like Vidyasagarji. Vidyasagarji asked – ‘Why do you cry? I have asked you for food; Sorry if there is anything wrong in this. If you cannot have food at my place, then prepare food yourself. I will make arrangements now.’
That person said- ‘Your kindness has made me cry. Here I am so lost, I have not received anything for many days; But no one even asked to sit and you….
But Vidyasagarji was not used to listening to his own praise. He stopped him in the middle and said – ‘ What happened in this. If a guest comes to our place, it is everyone’s duty to welcome him. You go quickly and have your food.’
When he had finished his meal, Vidyasagar asked him for what purpose he had come to him.
– Su 0 Sin 0

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