तपोबल

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‘माँ, मुझे उतना ही मीठा दूध पिलाओ।’ उपमन्यु घर आकर माँकी गोदमें बैठ गया। उसने अभी थोड़ी देर पहले अपने मामाके लड़केको दूध पीते देखा था, उसे भी थोड़ा-सा दूध मिला था।

‘बेटा! हमलोग गरीब हैं, पेट भरनेके लिये घरमें अन्नका अभाव है तो दूध किस तरह मिल सकता है।’ माताने हठी उपमन्युको समझाया; पर वह किसी तरहमानता ही नहीं था। बालहठ ऐसा होता ही है। माताने दिन काटनेके लिये कुछ अन्न बटोरकर घरमें रखा था। उसने उसे पीसकर तथा पानीमें घोलकर उपमन्युसे कहा कि ‘दूध पी लो । ‘

‘नहीं माँ! यह तो नकली दूध है, असली दूध तो मीठा होता है।’ उपमन्युने ओठ लगाते ही दूध पीना अस्वीकार कर दिया। वह मचल मचलकर रोने लगा।’बेटा! संसारमें हीरा, मोती, माणिक्य सब हैं; पर भाग्यसे ही उनकी प्राप्ति होती है। हमलोग अभागे हैं, इसलिये हमारे लिये असली दूध मिलना कठिन है। भगवान् शिव सर्वसमर्थ हैं, वे भोलानाथ प्रसन्न होनेपर क्षीरसागरतक दे देनेमें संकोच नहीं करते। उनकी शरणमें जानेपर ही मनोकामना पूरी हो सकती है। वे तपसे प्रसन्न होते हैं।’ उपमन्युकी माँने सीख दी। ‘मैं तप करूँगा, माँ! मैं अपने तपोबलसे सर्वेश्वर महेश्वरका आसन हिला दूँगा। वे कृपामय मुझे क्षीरसागर अवश्य देंगे।’ उपमन्यु पलभरके लिये भी घरमें नहीं ठहर सका।

उपमन्युने हिमालयपर घोर तप आरम्भ किया। उसने महादेवकी प्रसन्नताके लिये अन्न-जलतकका त्याग कर दिया। उसकी तपस्यासे समस्त जगत् संतप्त हो उठा। भगवान् विष्णुने देवताओंको साथ लेकर मन्दराचलपर जाकर परम शिवसे कहा कि ‘बालक उपमन्युको तपसे निवृत्तकर जगत्को आश्वस्त करना केवल आपके ही वशकी बात है।’

“यह अत्यन्त कठोर तप तुम्हारे लिये नहीं है, बालक!’ ऐरावतसे उतरकर इन्द्रने अपना परिचय दिया। ‘आपके आगमनसे यह आश्रम पवित्र हो गया !’उपमन्युने इन्द्रका स्वागत किया। शिव चरणमें दृढ़ भक्ति माँगी।

‘शिवकी प्राप्ति कठिन है। मेरा तीनों लोकोंपर अधिकार है; तुम मेरी शरणमें आ जाओ, मैं तुम्हें समस्त ‘भोग प्रदान करूँगा।’ इन्द्रने परीक्षा ली।

‘इन्द्र इस प्रकार शिवभक्तिकी निन्दा नहीं कर सकते। ऐसा लगता है कि तुम उनके वेषमें कोई दैत्य हो । मेरी तपस्यामें विघ्न डालना चाहते हो। तुम शिवनिन्दक हो; मैं तुम्हारा प्राण ले लूँगा, तुमने मेरे आराध्य की निन्दा की है।’ उपमन्यु मारनेके लिये दौड़ पड़ा, पर सहसा ठहर गया।

‘तुमने अपने तपोबलसे मेरी भक्ति प्राप्त की है, मैं प्रसन्न हूँ, वत्स!’ इन्द्ररूपी शिवने अभय दिया । उपमन्यु उनके चरणोंपर नतमस्तक हो गया।

‘मैं तुम्हारी परीक्षा ले रहा था।’ क्षीरसागर प्रकट कर चन्द्रशेखरने भक्तकी कामना पूरी की। उसे पार्वतीकी गोदमें रखकर कहा कि ‘जगज्जननी तुम्हारी | मैं पिता हूँ।’ अम्बा भगवतीने उसे योग-ऐश्वर्य और ब्रह्मविद्या दी। वह निहाल होकर गद्गद कण्ठसे जगत्के माता-पिताका स्तवन करने लगा। शङ्कर गिरिजासमेत अन्तर्धान हो गये- रा0 श्री0

(लिङ्गपुराण अ0 107)

‘माँ, मुझे उतना ही मीठा दूध पिलाओ।’ उपमन्यु घर आकर माँकी गोदमें बैठ गया। उसने अभी थोड़ी देर पहले अपने मामाके लड़केको दूध पीते देखा था, उसे भी थोड़ा-सा दूध मिला था।
‘बेटा! हमलोग गरीब हैं, पेट भरनेके लिये घरमें अन्नका अभाव है तो दूध किस तरह मिल सकता है।’ माताने हठी उपमन्युको समझाया; पर वह किसी तरहमानता ही नहीं था। बालहठ ऐसा होता ही है। माताने दिन काटनेके लिये कुछ अन्न बटोरकर घरमें रखा था। उसने उसे पीसकर तथा पानीमें घोलकर उपमन्युसे कहा कि ‘दूध पी लो । ‘
‘नहीं माँ! यह तो नकली दूध है, असली दूध तो मीठा होता है।’ उपमन्युने ओठ लगाते ही दूध पीना अस्वीकार कर दिया। वह मचल मचलकर रोने लगा।’बेटा! संसारमें हीरा, मोती, माणिक्य सब हैं; पर भाग्यसे ही उनकी प्राप्ति होती है। हमलोग अभागे हैं, इसलिये हमारे लिये असली दूध मिलना कठिन है। भगवान् शिव सर्वसमर्थ हैं, वे भोलानाथ प्रसन्न होनेपर क्षीरसागरतक दे देनेमें संकोच नहीं करते। उनकी शरणमें जानेपर ही मनोकामना पूरी हो सकती है। वे तपसे प्रसन्न होते हैं।’ उपमन्युकी माँने सीख दी। ‘मैं तप करूँगा, माँ! मैं अपने तपोबलसे सर्वेश्वर महेश्वरका आसन हिला दूँगा। वे कृपामय मुझे क्षीरसागर अवश्य देंगे।’ उपमन्यु पलभरके लिये भी घरमें नहीं ठहर सका।
उपमन्युने हिमालयपर घोर तप आरम्भ किया। उसने महादेवकी प्रसन्नताके लिये अन्न-जलतकका त्याग कर दिया। उसकी तपस्यासे समस्त जगत् संतप्त हो उठा। भगवान् विष्णुने देवताओंको साथ लेकर मन्दराचलपर जाकर परम शिवसे कहा कि ‘बालक उपमन्युको तपसे निवृत्तकर जगत्को आश्वस्त करना केवल आपके ही वशकी बात है।’
“यह अत्यन्त कठोर तप तुम्हारे लिये नहीं है, बालक!’ ऐरावतसे उतरकर इन्द्रने अपना परिचय दिया। ‘आपके आगमनसे यह आश्रम पवित्र हो गया !’उपमन्युने इन्द्रका स्वागत किया। शिव चरणमें दृढ़ भक्ति माँगी।
‘शिवकी प्राप्ति कठिन है। मेरा तीनों लोकोंपर अधिकार है; तुम मेरी शरणमें आ जाओ, मैं तुम्हें समस्त ‘भोग प्रदान करूँगा।’ इन्द्रने परीक्षा ली।
‘इन्द्र इस प्रकार शिवभक्तिकी निन्दा नहीं कर सकते। ऐसा लगता है कि तुम उनके वेषमें कोई दैत्य हो । मेरी तपस्यामें विघ्न डालना चाहते हो। तुम शिवनिन्दक हो; मैं तुम्हारा प्राण ले लूँगा, तुमने मेरे आराध्य की निन्दा की है।’ उपमन्यु मारनेके लिये दौड़ पड़ा, पर सहसा ठहर गया।
‘तुमने अपने तपोबलसे मेरी भक्ति प्राप्त की है, मैं प्रसन्न हूँ, वत्स!’ इन्द्ररूपी शिवने अभय दिया । उपमन्यु उनके चरणोंपर नतमस्तक हो गया।
‘मैं तुम्हारी परीक्षा ले रहा था।’ क्षीरसागर प्रकट कर चन्द्रशेखरने भक्तकी कामना पूरी की। उसे पार्वतीकी गोदमें रखकर कहा कि ‘जगज्जननी तुम्हारी | मैं पिता हूँ।’ अम्बा भगवतीने उसे योग-ऐश्वर्य और ब्रह्मविद्या दी। वह निहाल होकर गद्गद कण्ठसे जगत्के माता-पिताका स्तवन करने लगा। शङ्कर गिरिजासमेत अन्तर्धान हो गये- रा0 श्री0
(लिङ्गपुराण अ0 107)

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