एशियाके दमश्क नगरमें मुश्तफा नामका एक धनी और बुद्धिमान् व्यापारी रहता था वह अपने पुत्र सैयदको दूरदर्शी और विचक्षण बनाना चाहता था। सैयद अपने मित्रमें, जो एक आरमनी ( अरमीनियानिवासी) था, बड़ा विश्वास करता था। कई बार उस मित्रने रुपये पैसेके सम्बन्धमें उसे धोखा भी दिया, पर सैयदकी मित्रतामें कोई कमी नहीं आयी।
एक समय मुश्तफा और सैयद दोनोंको व्यापारके सम्बन्धमें बगदाद जाना था। ‘मैं अपनी अपार सम्पत्ति किसके भरोसे छोड़कर बगदाद चलूँ!’ मुश्तफाने सैयदसे पूछा। “पिताजी! मेरे मित्रसे बढ़कर दूसरा ईमानदार आदमी ही कौन मिल सकता है ?’ सैयदने उसी आरमनीको सम्पत्ति सौंपनेकी सम्मति दी । ‘तो फिर इस बक्सको अपने मित्रके यहाँ पहुँचा दो।’ मुश्तफाका आदेश पाते ही बक्स आरमनीके यहाँ
सैयदने पहुँचा दिया।
‘दो महीने बाद दोनों अपार धन कमाकर बगदादसे दमश्क लौट आये मुश्तफाने-बक्स लानेके लियेसैयदको मित्रके घर भेजा।
‘आपने मेरे मित्रका अविश्वास किया; यह अपमान असह्य है। आपने बक्समें कंकड़-पत्थर भरकर उसको मेरे मित्रके पास भेजा था।’ सैयद कुछ ही क्षणोंमें अपने मित्रके घरसे लौट आया; वह क्रोधोन्मत्त था पर मुश्तफाका चित्त शान्त और स्वस्थ था
‘तुम्हारे ईमानदार मित्रको कंकड़-पत्थरका पता चला किस तरह? निस्संदेह उसने तीनों ताले तोड़कर बक्स खोल लिया था। तुम्हारी समझमें अब यह बात आ गयी होगी कि यह अच्छा ही हुआ कि मैंने अशर्फी और मोहरोंके स्थानपर कंकड़-पत्थर ही रख दिये थे।’ मुश्तफाने शैयदकी ओर देखा ।
‘पिताजी! मुझे क्षमा कीजिये। यह मेरी बहुत बड़ी भूल थी कि मैं आपके वचनकी उपेक्षा कर उसका विश्वास किया करता था। आपकी कृपा और दूरदर्शितासे मुझे पता लग गया कि बाहर-बाहर मित्र दीखनेवाले किस तरह गला काट लिया करते हैं। वास्तवमें वह चोर निकला।’ सैयदका मस्तक लज्जासे नत था मुश्तफाके सामने ।
-रा0 श्री0
There lived a rich and intelligent merchant named Mustafa in Damascus city of Asia. He wanted to make his son Syed a visionary and wise. Syed had great faith in his friend, who was an Armenian. Many times that friend also cheated him in relation to money, but there was no decrease in Syed’s friendship.
At one time both Mustafa and Sayyid had to go to Baghdad on business. ‘In whose trust should I leave my immense wealth and go to Baghdad!’ asked Mustafane Syed. “Father! Who could have found a more honest man than my friend?” Syed agreed to hand over the property to the same Armi. ‘Then send this box to your friend’s place.’ As soon as Mushtafa’s order was received, Bux went to Armani.
Syed has delivered.
‘ After two months, both of them returned to Damascus from Baghdad after earning immense money and sent Syed to a friend’s house to bring Mustafane-Baks.
‘You distrusted my friend; This insult is intolerable You filled the box with pebbles and sent it to my friend.’ Syed returned from his friend’s house in a few moments; He was furious but Mushtafa was calm and sane.
‘How did your honest friend know about the pebbles? Undoubtedly he had opened the box by breaking all the three locks. Now you must have understood that it was a good thing that I had put only pebbles in place of Asharfi and Mohor.’ Mustafane looked at Shayed.
‘Father! I’m sorry It was my big mistake that I used to believe in your words by ignoring them. With your kindness and foresight, I came to know how those who appear to be friends from outside, cut their throats. In fact he turned out to be a thief. Syed’s head was bowed down in front of Mustafa.