‘टन्-टन्-टन्’ गिर्जाघरकी घंटी बजते ही तीनों मित्रोंने अचानक आमोद-प्रमोदसे मन फेर लिया। फलैंडरस जनपदमें किसी व्यक्तिकी मृत्युकी सूचना दी घण्टी-नादने और वे राग-रंग भूलकर शरीरकी नश्वरतापर विचार करने लगे।
* भाई हमलोगोंने आजतक रंगरेलियों में अपने अमूल्य जीवनका दुरुपयोग किया। समय बड़ी निर्ममता से बीतता जा रहा है। हमलोगोंको भी किसी-न-किसी दिन इसी तरह मरना पड़ेगा। हमें मृत्युकी खोजमें लग जाना चाहिये। मनुष्यशरीर अत्यन्त दुर्लभ है।’ एक मित्रका प्रस्ताव था और तीनों मृत्युकी खोजमें निकल पड़े वे उस गाँवकी ओर चले जिसमें असंख्य प्राणी महामारी आदिसे कालके गालमें समा रहे थे।
“हम मृत्युकी खोज कर रहे हैं। उसने हमारे अनेक बन्धुबान्धवका नाश किया है। अनेक शिशुओंको पितृहीन कर दिया है। असंख्य युवतियोंको वैधव्यप्रदान किया है।’ उन्होंने एक बूढ़े व्यक्तिसे पूछा जो उन्हें गाँवमें प्रवेश करते ही दीख पड़ा। उसके शरीरपर झुर्रियाँ पड़ गयी थीं, कमर झुकी हुई थी और सिर हिल रहा था।
‘मृत्युकी खोज बहुत ही कठिन है। तुम उसके पीछे पड़कर अपनी जान क्यों दे रहे हो। वह बड़ी स्वार्थी, कठोर और भयंकर है। यदि तुम उसे देखना ही चाहते हो तो मैंने उसको पेड़के नीचे छोड़ दिया है। सावधान! है वह बड़ी विकराल ।’ बूढ़ेने थोड़ी दूरपर स्थित एक जंगली पेड़की ओर संकेत किया। वे दौड़ पड़े।
‘हमलोग कितने भाग्यवान् हैं। देखो न, बूढ़ेने हमें कितना धोखा दिया। इस पेड़के नीचे तो अपार स्वर्ण राशि है जिससे हमलोग कई वर्षोंतक आमोद-प्रमोदसे जीवन बिता सकते हैं।’ सबसे छोटे मित्रने प्रस्ताव किया कि रात होते ही इसे घर ले चलना चाहिये;दिनमें कोई देख लेगा तो प्राण चले जायँगे। तीनोंकी सम्मति से सबसे छोटेको ही भोजनकी सामग्री लानेके लिये बाजार जाना पड़ा।
‘हम दोनों अकेले ही इस धनको आपसमें बाँट लें तो हमारा जीवन विशेषरूपसे सुखमय हो जायगा ।’ दोनोंने राय की और छोटेके आते ही उसे कटारसे मार डालनेका निश्चय किया।
इधर छोटे मित्रके मनमें भी धनका लोभ पैदा हुआ। उसने भोज्य और पेय पदार्थमें विष मिला दियाथा उन दोनोंकी जीवन लीला समाप्त कर देनेके लिये। छोटे मित्रका बाजारसे लौटना था कि धनके लोभसे अंधे होकर दोनोंने उसका प्राणान्त कर डाला। पीठमें कटार भोंककर और भोज्य और पेय पदार्थोंको ग्रहण कर आनन्दसे आमोद मनाने लगे। धीरे-धीरे विषका प्रभाव बढ़ता गया और थोड़ी देरमें उन दोनोंने भी सदाके लिये आँखें मूँद लीं। चले थे तीनों मृत्युका नाश करने और नष्ट हो गये स्वयं ।
‘मृत्युका दर्शन जंगली वृक्षके नीचे होगा।’ – बूढ़ेकी यह बात वातावरणमें परिव्याप्त थी । – रा0 श्री0
‘टन्-टन्-टन्’ गिर्जाघरकी घंटी बजते ही तीनों मित्रोंने अचानक आमोद-प्रमोदसे मन फेर लिया। फलैंडरस जनपदमें किसी व्यक्तिकी मृत्युकी सूचना दी घण्टी-नादने और वे राग-रंग भूलकर शरीरकी नश्वरतापर विचार करने लगे।
* भाई हमलोगोंने आजतक रंगरेलियों में अपने अमूल्य जीवनका दुरुपयोग किया। समय बड़ी निर्ममता से बीतता जा रहा है। हमलोगोंको भी किसी-न-किसी दिन इसी तरह मरना पड़ेगा। हमें मृत्युकी खोजमें लग जाना चाहिये। मनुष्यशरीर अत्यन्त दुर्लभ है।’ एक मित्रका प्रस्ताव था और तीनों मृत्युकी खोजमें निकल पड़े वे उस गाँवकी ओर चले जिसमें असंख्य प्राणी महामारी आदिसे कालके गालमें समा रहे थे।
“हम मृत्युकी खोज कर रहे हैं। उसने हमारे अनेक बन्धुबान्धवका नाश किया है। अनेक शिशुओंको पितृहीन कर दिया है। असंख्य युवतियोंको वैधव्यप्रदान किया है।’ उन्होंने एक बूढ़े व्यक्तिसे पूछा जो उन्हें गाँवमें प्रवेश करते ही दीख पड़ा। उसके शरीरपर झुर्रियाँ पड़ गयी थीं, कमर झुकी हुई थी और सिर हिल रहा था।
‘मृत्युकी खोज बहुत ही कठिन है। तुम उसके पीछे पड़कर अपनी जान क्यों दे रहे हो। वह बड़ी स्वार्थी, कठोर और भयंकर है। यदि तुम उसे देखना ही चाहते हो तो मैंने उसको पेड़के नीचे छोड़ दिया है। सावधान! है वह बड़ी विकराल ।’ बूढ़ेने थोड़ी दूरपर स्थित एक जंगली पेड़की ओर संकेत किया। वे दौड़ पड़े।
‘हमलोग कितने भाग्यवान् हैं। देखो न, बूढ़ेने हमें कितना धोखा दिया। इस पेड़के नीचे तो अपार स्वर्ण राशि है जिससे हमलोग कई वर्षोंतक आमोद-प्रमोदसे जीवन बिता सकते हैं।’ सबसे छोटे मित्रने प्रस्ताव किया कि रात होते ही इसे घर ले चलना चाहिये;दिनमें कोई देख लेगा तो प्राण चले जायँगे। तीनोंकी सम्मति से सबसे छोटेको ही भोजनकी सामग्री लानेके लिये बाजार जाना पड़ा।
‘हम दोनों अकेले ही इस धनको आपसमें बाँट लें तो हमारा जीवन विशेषरूपसे सुखमय हो जायगा ।’ दोनोंने राय की और छोटेके आते ही उसे कटारसे मार डालनेका निश्चय किया।
इधर छोटे मित्रके मनमें भी धनका लोभ पैदा हुआ। उसने भोज्य और पेय पदार्थमें विष मिला दियाथा उन दोनोंकी जीवन लीला समाप्त कर देनेके लिये। छोटे मित्रका बाजारसे लौटना था कि धनके लोभसे अंधे होकर दोनोंने उसका प्राणान्त कर डाला। पीठमें कटार भोंककर और भोज्य और पेय पदार्थोंको ग्रहण कर आनन्दसे आमोद मनाने लगे। धीरे-धीरे विषका प्रभाव बढ़ता गया और थोड़ी देरमें उन दोनोंने भी सदाके लिये आँखें मूँद लीं। चले थे तीनों मृत्युका नाश करने और नष्ट हो गये स्वयं ।
‘मृत्युका दर्शन जंगली वृक्षके नीचे होगा।’ – बूढ़ेकी यह बात वातावरणमें परिव्याप्त थी । – रा0 श्री0