दुश्मन है तो क्या !

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दुश्मन है तो क्या !

पिछले विश्वयुद्धकी बात है। अमेरिकनोंने अत्तू द्वीपपर हमला किया। चीचागोफमें जाकर लड़ाई हुई। बहुत-से अमेरिकी घायल हुए और बहुत-से जापानी भी। डॉक्टर कास स्टिम्सन अपनी टुकड़ीके साथ घायलोंकी सेवामें लगे थे। जहाजपर ही उनका अस्पताल खुला था। रेडक्रॉसकी नावें घायलोंको वहाँ पहुँचा रही थीं।
अमेरिकी डॉक्टर, अमेरिकी अस्पताल, अमेरिकीदवाएँ। चारों ओर अमेरिकी घायल ।
तभी वहाँ एक घायल लाया गया। नाम था
उसका-इटो!
लोगों को लगा, जैसे जहाजमें किसीने ‘तारपीडो ‘मार दिया हो। अर्थात् पनडुब्बीने पेंदीमें छेद कर दिया हो।’
क्यों ?
इसलिये कि इटो अमेरिकी नहीं था, जापानी था।वह मित्र नहीं था, शत्रु था।
चारों ओर मानो तूफान उठ खड़ा हुआ।
और इटोका क्या हाल था ?
खून और मल-मूत्रकी गन्दगीमें वह लिपटा पड़ा था। उसकी टाँग खूनसे, कीचड़से, सड़नसे हरी पड़ गयी थी
इटोका एक साथी और था। लड़ते-लड़ते जब दोनोंका गोला-बारूद खतम हो गया तो दोनोंने बचा हुआ एक-एक हथगोला अपने पेटपर लगा लिया और उसमें लगी आलपीन खींच ली। साथीका हथगोला तो फूट गया। उसकी अति बाहर निकल आयीं। वारूदके कणोंने इटोकी टाँगें चिथड़े-चिथड़े कर दीं।
इटो सोच रहा था कि अमेरिकनोंने उसके शरीरमें संगीनें छेद-छेदकर अभीतक उसे खतम नहीं किया तो इसका कारण यही है कि वे और बुरी तरह सता सताकर उसे मारेंगे। वे उसके कान काटेंगे, दाँत तोड़ेंगे और फिर उसके शरीरकी कुट्टी काटेंगे।
ऑपरेशनकी मेजपर इटो पड़ा था। डॉक्टरोंके सामने सवाल था कि इटोके लिये वे क्या करें? वे सोच रहे थे कि “किसी अमेरिकीने अपने किसी घायल देशवासीकी प्राणरक्षाके लिये स्वेच्छासे, जो रक्तदान दिया है, वह इटोके शरीर में पहुँचानेका उन्हें कोई अधिकार है क्या? इटोके रोगके अपनी जान खतरेमें डालनेका भी उन्हें कोई अधिकार है क्या ? जापानियोंको तो हमें मारना है, न कि बचाना। अभी दो ही दिन पहले तो वे हमारे क्षेत्रमें घुस आये थे और डॉक्टरी टुकड़ीके कई आदमियोंका बर्बरतासे खून कर गये थे। क्यों न हम इटोसे उसका बदला चुकायें ?’
डॉक्टर स्टिम्सनने जब देखा कि और कोई घायल ऑपरेशनके लिये बाकी नहीं है, तो उन्होंने इटोको लानेकी आज्ञा दी।
इटोके गन्दे कपड़े हटाकर साबुनके पानी से उसकेभाव धोये गये। उसे खून चढ़ाया गया, बेहोश करके उसकी मरहम-पट्टी की गयीI
‘इटोकी कल्पनासे परे था यह सब उसकी सड़ी टाँग काट दी गयी। बच्ची टाँग ऐसी बना दी गयी कि उसमेंनकली टाँग ठीक ढंगसे फिट हो जाय।
ऑपरेशनके बाद जब इटोके हाथ खोले गये तो. उसने डॉक्टरको अपनी बाहोंमें भर लिया। सुबक- सुबककर रो पड़ा वह उसके मुँहपर एक ही शब्द था ‘अ’ मे रि का।’
दूसरे घायलोंकी तरह इटोकी भी देखभाल की गयी। चौथे दिन वह घायल साथियोंसे दोस्ती कर रहा था। चाकलेट, सिगरेट और नासपाती आदि फल इतने ज्यादा दिये गये कि वह खा नहीं पा रहा था।
इटोको जब जहाजसे उतारकर बन्दी शिविरमें ले जाने लगे तो वह डॉक्टरके लिये चिल्लाया। डॉक्टर जब उसके स्ट्रेचरके पास पहुँचा तो वह उसके पैर पकड़कर सुबकने लगा। डॉक्टरने किसी तरह समझा-बुझाकर उसे शान्त किया। डॉक्टर से पूछा गया – ‘तुमने जानका खतरा उठाकर भी शत्रुकी इस तरह जान क्यों बचायी ?’
वह बोला-‘दुश्मन है तो क्या वह इन्सान तो है। डॉक्टरके लिये कोई नहीं होता। कष्ट और पीड़ामें पड़े हर आदमीकी सेवा करना डॉक्टरका पहला कर्तव्य है।’

दुश्मन है तो क्या !
पिछले विश्वयुद्धकी बात है। अमेरिकनोंने अत्तू द्वीपपर हमला किया। चीचागोफमें जाकर लड़ाई हुई। बहुत-से अमेरिकी घायल हुए और बहुत-से जापानी भी। डॉक्टर कास स्टिम्सन अपनी टुकड़ीके साथ घायलोंकी सेवामें लगे थे। जहाजपर ही उनका अस्पताल खुला था। रेडक्रॉसकी नावें घायलोंको वहाँ पहुँचा रही थीं।
अमेरिकी डॉक्टर, अमेरिकी अस्पताल, अमेरिकीदवाएँ। चारों ओर अमेरिकी घायल ।
तभी वहाँ एक घायल लाया गया। नाम था
उसका-इटो!
लोगों को लगा, जैसे जहाजमें किसीने ‘तारपीडो ‘मार दिया हो। अर्थात् पनडुब्बीने पेंदीमें छेद कर दिया हो।’
क्यों ?
इसलिये कि इटो अमेरिकी नहीं था, जापानी था।वह मित्र नहीं था, शत्रु था।
चारों ओर मानो तूफान उठ खड़ा हुआ।
और इटोका क्या हाल था ?
खून और मल-मूत्रकी गन्दगीमें वह लिपटा पड़ा था। उसकी टाँग खूनसे, कीचड़से, सड़नसे हरी पड़ गयी थी
इटोका एक साथी और था। लड़ते-लड़ते जब दोनोंका गोला-बारूद खतम हो गया तो दोनोंने बचा हुआ एक-एक हथगोला अपने पेटपर लगा लिया और उसमें लगी आलपीन खींच ली। साथीका हथगोला तो फूट गया। उसकी अति बाहर निकल आयीं। वारूदके कणोंने इटोकी टाँगें चिथड़े-चिथड़े कर दीं।
इटो सोच रहा था कि अमेरिकनोंने उसके शरीरमें संगीनें छेद-छेदकर अभीतक उसे खतम नहीं किया तो इसका कारण यही है कि वे और बुरी तरह सता सताकर उसे मारेंगे। वे उसके कान काटेंगे, दाँत तोड़ेंगे और फिर उसके शरीरकी कुट्टी काटेंगे।
ऑपरेशनकी मेजपर इटो पड़ा था। डॉक्टरोंके सामने सवाल था कि इटोके लिये वे क्या करें? वे सोच रहे थे कि “किसी अमेरिकीने अपने किसी घायल देशवासीकी प्राणरक्षाके लिये स्वेच्छासे, जो रक्तदान दिया है, वह इटोके शरीर में पहुँचानेका उन्हें कोई अधिकार है क्या? इटोके रोगके अपनी जान खतरेमें डालनेका भी उन्हें कोई अधिकार है क्या ? जापानियोंको तो हमें मारना है, न कि बचाना। अभी दो ही दिन पहले तो वे हमारे क्षेत्रमें घुस आये थे और डॉक्टरी टुकड़ीके कई आदमियोंका बर्बरतासे खून कर गये थे। क्यों न हम इटोसे उसका बदला चुकायें ?’
डॉक्टर स्टिम्सनने जब देखा कि और कोई घायल ऑपरेशनके लिये बाकी नहीं है, तो उन्होंने इटोको लानेकी आज्ञा दी।
इटोके गन्दे कपड़े हटाकर साबुनके पानी से उसकेभाव धोये गये। उसे खून चढ़ाया गया, बेहोश करके उसकी मरहम-पट्टी की गयीI
‘इटोकी कल्पनासे परे था यह सब उसकी सड़ी टाँग काट दी गयी। बच्ची टाँग ऐसी बना दी गयी कि उसमेंनकली टाँग ठीक ढंगसे फिट हो जाय।
ऑपरेशनके बाद जब इटोके हाथ खोले गये तो. उसने डॉक्टरको अपनी बाहोंमें भर लिया। सुबक- सुबककर रो पड़ा वह उसके मुँहपर एक ही शब्द था ‘अ’ मे रि का।’
दूसरे घायलोंकी तरह इटोकी भी देखभाल की गयी। चौथे दिन वह घायल साथियोंसे दोस्ती कर रहा था। चाकलेट, सिगरेट और नासपाती आदि फल इतने ज्यादा दिये गये कि वह खा नहीं पा रहा था।
इटोको जब जहाजसे उतारकर बन्दी शिविरमें ले जाने लगे तो वह डॉक्टरके लिये चिल्लाया। डॉक्टर जब उसके स्ट्रेचरके पास पहुँचा तो वह उसके पैर पकड़कर सुबकने लगा। डॉक्टरने किसी तरह समझा-बुझाकर उसे शान्त किया। डॉक्टर से पूछा गया – ‘तुमने जानका खतरा उठाकर भी शत्रुकी इस तरह जान क्यों बचायी ?’
वह बोला-‘दुश्मन है तो क्या वह इन्सान तो है। डॉक्टरके लिये कोई नहीं होता। कष्ट और पीड़ामें पड़े हर आदमीकी सेवा करना डॉक्टरका पहला कर्तव्य है।’

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