दीपक जलाकर देखो तो

dove freedom peace

युद्धके समय अपरिचित देशोंमें मैं एक अनाथ शिशुकी तरह अकेले रह रहा था। फिर भी मैं सदा सुखी और स्वस्थ रहा एवं मैंने नित्य अपनेको सुरक्षित पाया।

कुछ दिनों पूर्व, मानो मेरी श्रद्धाको कसौटीपर कसनेके लिये, ठीक मेरे मुँहपर अचानक एक फोड़ानिकल आया। अपने काममें मुझे सदा भरे समाजके सामने रहना पड़ता था । डरा, घबराया और किंकर्तव्यविमूढ़-सा हो गया। सबने सलाह दी कि डाक्टरको अवश्य दिखाना चाहिये। मेरा कोई परिचित डाक्टर नहीं था। एक डाक्टरने, जो हमारे पुस्तकालय और पुस्तकोंकी दूकानके संरक्षक भी थे, इस बढ़ते हुएसूजनभरे फसादको देखा। उन्होंने दूसरे दिन तड़के इसे चीर देनेका निश्चय कर लिया।

मैंने अपने किंवाड़ बंद कर लिये, अपने रहनेके कमरेमें चला गया और प्रभुको पुकारा। मैंने सच्ची प्रार्थना की। उस प्रार्थनामें मेरे हृदय और आत्माका अभूतपूर्व संयोग था । अपने एकान्त घरमें प्रभुके साथ निश्छल हृदयसे घंटों बातें करते-करते थककर मैं सो गया। या तो मैं स्वप्न देख रहा था, अथवा कोई मुझसे कह रहा था – ‘दीपक जलाकर दर्पणमें देखो तो ?’ सुनने के साथ ही मैंने अद्भुत शान्ति, चेतनता औरसुखका अनुभव किया। एक स्वप्नके व्यापारकी तरह मैं जाग पड़ा। मेरा हाथ ठीक दीपकपर गया और मैंने उसे जला दिया। जब मैंने दर्पणमें देखा तो मेरा चेहरा पहले की तरह चिकना, स्वच्छ और बिलकुल साफ दिखायी दिया। सारा दोष और रोग छूमंतर हो गया था।

फिर तो मैंने अपने प्रार्थना-विटपके इस फलको देखकर भगवान्‌को न जाने कितना धन्यवाद दिया! प्रातःकाल जब डाक्टर साहब आये तब उनको अपनी आँखोंपर विश्वास ही नहीं होता था। मेरे दूसरे मित्रोंकी भी यही दशा थी l

At the time of war, I was living alone like an orphan child in unfamiliar countries. Still I was always happy and healthy and I always found myself safe.
A few days ago, as if to test my faith, a boil suddenly popped up right on my face. In my work, I always had to be in front of a full society. Scared, panicked and became confused. Everyone advised that the doctor must be seen. I didn’t have any familiar doctor. A doctor, who was also the custodian of our library and bookshop, noticed this growing inflammatory disorder. They decided to tear it apart early the next day.
I closed my eyes, went to my living room and called out to the Lord. I prayed sincerely. There was an unprecedented union of my heart and soul in that prayer. Tired of talking with the Lord for hours with a pure heart in my lonely house, I fell asleep. Either I was dreaming, or someone was telling me – ‘Light a lamp and look in the mirror?’ I experienced amazing peace, consciousness and happiness while listening. I woke up like a dream business. My hand went right to the lamp and I lit it. When I looked in the mirror, my face appeared as smooth, clean and crystal clear as before. All the defects and diseases had disappeared.
Then I didn’t know how much I thanked God after seeing this fruit of my prayer. When the doctor came in the morning, he could not believe his eyes. Same was the case with my other friends.

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