कोई राजा वनमें आखेटके लिये गया था। थककर वह एक वृक्षके नीचे रुक गया। वृक्षकी डालपर एक कौआ बैठा था। संयोगवश एक हंस भी उड़ता आया और उसी डालपर बैठ गया। कौएने स्वभाववश बीट कर दी जो राजाके सिरपर गिरी। इससे क्रोधमें आकर राजाने धनुषपर बाण चढ़ाया और कौएको लक्ष्य करके बाण छोड़ दिया। धूर्त कौआ तो उड़ गया; किंतु बाण हंसको लगा और वह लड़खड़ाकर नीचे गिर पड़ा। राजाने आश्चर्यसे कहा- ‘अरे! इस वनमें क्या सफेद कौए होते हैं ?’
मरते हंसने उत्तर दिया—’राजन् ! मैं कौआ नहीं हूँ। मैं तो मान-सरोवरवासी हंस हूँ; किंतु कुछ क्षण कौएके समीप बैठनेका यह दारुण फल मुझे प्राप्त हुआ है।’
A king had gone to the forest for hunting. Tired, he stopped under a tree. A crow was sitting on the branch of the tree. Coincidentally a swan also came flying and sat on the same branch. The crow naturally beat which fell on the king’s head. Enraged by this, the king put an arrow on the bow and aimed at the crow, he released the arrow. The cunning crow has flown away; But the arrow hit Hans and he staggered and fell down. The king said with surprise – ‘ Hey! Are there white crows in this forest?’
Answered laughing while dying – ‘ Rajan! I’m not a crow I am a swan who lives in the lake; But I have got this terrible result of sitting near the crow for a few moments.’