‘हे देव! अमर जीवन- ईश्वरीय जीवन प्राप्त करनेका मुझे उपाय बताइये। जगत्की वस्तुओंमें मुझे शान्ति नहीं दीखती।’ एक धनी युवकने नतमस्तक होकर महात्मा ईसाकी चरणधूलि ली। वे उस समय अपने शिष्योंके साथ गैलिलीमें भ्रमण कर रहे थे। शिष्य धनी युवककी जिज्ञासासे विस्मित थे।
“वत्स! तुमने मुझे ‘देव’ सम्बोधनसे स्मरण किया है। देव- परमदेव तो केवल परमात्मा ही हैं; मैं तो उनके कृपाराज्यका एक साधारण-सा सेवक हूँ। मेरे विचारसे अभी तुम्हें आचार-विचार और संयम तथा नैतिक बल-प्राप्तिकी ओर विशेष ध्यान रखना चाहिये; परमात्मा प्रसन्न होंगे।” उन्होंने युवकपर स्नेह दृष्टि डाली। समस्त वातावरण उनकी पवित्र उपस्थितिसे धन्य हो गया।
‘मैंने इनका दृढ़ अभ्यास किया, पर अमर जीवनकी प्राप्तिका प्रकाश मुझे नहीं दीख पड़ा। मैंने बचपनसे ही इनकी ओर ध्यान दिया था।’ युवकने उद्विग्रता प्रकट की। ईसा उसकी सदाचारपरक वृत्ति और सत्कथनसे बहुत प्रसन्न थे।
‘बस, तुममें केवल एक बातकी कमी है। जाओ, अपनी सारी वस्तुएँ बेच दो और सम्पत्ति गरीबोंको दे दो। विश्वास रखो, तुम्हारे लिये स्वर्गका ऐश्वर्य सुरक्षितहै, मेरे साथ चलो।’ महात्मा ईसाने कृपावृष्टि की। धनी युवकके मुखपर उदासी छा गयी। बिना कुछ कहे ही वह चल दिया। उसके पास महती सम्पत्ति थी और उसे छोड़ना उसके लिये सम्भव नहीं था । शिष्योंको उसकी दशापर बड़ा आश्चर्य हुआ । महात्मा ईसा शान्त थे ।
‘धनी (धनाभिमानी) व्यक्तिके लिये ईश्वरीय राज्यमें प्रवेश बहुत ही कठिन है। यह सम्भव है कि ऊँट सूईकी नोकमेंसे निकल आये; पर धनी व्यक्ति, जो पूर्णरूपसे धन और सांसारिक वस्तुओंमें ही आसक्त है, ईश्वरीय राज्यमें प्रवेश नहीं कर सकता । परमात्माके प्रेममें धनाभिमानी और सांसारिक विषय-वासनाओंमें लिप्त जीवन अत्यन्त बाधक है। सांसारिक मनुष्यके हृदयमें कभी कृपामय ईश्वरके पवित्र प्रेमका उदय ही नहीं हो सकता।’ महात्मा ईसाने शिष्योंको सदुपदेश दिया।
‘ईश्वरीय प्रेम-प्राप्तिका उपाय क्या है?’ शिष्योंका प्रश्न था ।
‘परमात्माकी कृपासे ही यह सम्भव है। उनकी कृपा और निष्काम भक्तिसे ही लोग संसार-सागरसे तर सकते हैं।’ ईसाने समाधान किया।
-रा0 श्री0
‘Hey, God! Tell me the way to get immortal life – divine life. I do not see peace in the things of the world.’ A rich young man bowed down and took the dust of the feet of Mahatma Jesus. At that time he was traveling in Galilee with his disciples. The disciples were amazed by the curiosity of the rich youth.
“Vats! You have remembered me with the address ‘Dev’. Dev-Paramdev is only the Supreme Soul; I am an ordinary servant of His gracious kingdom. I think right now you need to pay special attention to ethics and restraint and moral strength. Should be kept; God will be pleased.” He looked lovingly at the young man. The whole atmosphere was blessed by his holy presence.
‘I practiced them diligently, but I did not see the light of the attainment of immortal life. I had paid attention to him since childhood. The young man expressed anxiety. Jesus was very pleased with his virtuous attitude and truthful words.
‘Well, you only lack one thing. Go, sell all your things and give the wealth to the poor. Have faith, the glory of heaven is safe for you, come with me.’ Mahatma Isa showered his blessings. Sadness covered the face of the rich young man. He left without saying anything. He had huge wealth and it was not possible for him to leave it. The disciples were very surprised at his condition. Mahatma Isa was calm.
‘It is very difficult for a rich (wealthy) person to enter the divine kingdom. It is possible that a camel may come out of the tip of a needle; But a rich person, who is completely attached to money and worldly things, cannot enter the divine kingdom. A life full of pride in the love of God and indulged in worldly objects and desires is a great hindrance. The pure love of the merciful God can never arise in the heart of a worldly man.’ Mahatma Jesus gave good advice to the disciples.
‘What is the way to attain divine love?’ It was a question of the disciples.
This is possible only by the grace of God. Only by His grace and selfless devotion can people cross the world-ocean. Jesus solved.
-Ra0 Mr.0