भगवान्की भक्तिमें तल्लीन नामदेवका घरसे बिलकुल ही ध्यान जाता रहा। उनकी पत्नी राजाईको पुत्र भी हो चुका था। घर दाने-दानेके लिये मुँहताज हो गया। पास-पड़ोसके लोग व्यंग्य कसने लगे। माता गोणाई भी नामदेवको उनकी करनीपर कठोर वचन कहा करतीं
एक दिन इन्हीं सबसे अत्यन्त अनुतप्त हो नामदेव घरसे निकल पड़े और पंढरिनाथके द्वारपर आकर सजल नेत्रोंसे उनकी प्रार्थना करने लगे- ‘नाथ! क्यों आपने मुझे संसारके इस कठोर बन्धनमें बाँधा । कहाँ हो? आओ, शीघ्र सहारा दो।’ भगवान्ने प्रकट होकर नामदेवको आश्वासन दिया।
इधर नामदेव के घरसे चले जानेपर उनकी माता गोणाई किसी तरह पेटकी ज्वाला शान्त करनेके निमित्त इधर-उधरसे कुछ माँगनेको निकल पड़ी। इसी बीच भगवान् केशव सेठका रूप धारण कर नामदेवके घरका पता पूछते-पूछते वहाँ आ पहुँचे। पास-पड़ोसकी स्त्रियाँ हँसी उड़ाती राजाईके पास दौड़ी आयीं और कहने लगीं- ‘पाहुने आये हैं, आव-भगत करो न।’
राजाई बड़े संकटमें पड़ गयी। वह उनसे कहने लगी- ‘घरमें एक दाना अन्न नहीं और ये अतिथि आये हैं। क्या करूँ? कह दूँ, वे नहीं हैं, उनके आनेपर पधारियेगा।’
अतिथि दरवाजेके बाहरसे सारी बातें सुन रहा था। उसने राजाईको पुकारकर कहा-‘नामदेव मेरा बचपनका साथी है। मुझे पता चला कि इन दिनों वह बड़ी ।विपत्तिमें है। इसलिये मैं अशर्फियोंकी थैलियाँ लाया हूँ। इन्हें ले लीजिये। बस इतना ही काम है।’
राजाई बाहर आयी और उससे थैलियाँ ले लीं। अतिथि जाने लगा तो राजाईने कहा ‘जरा ठहरिये, नहा-धोकर भोजन कीजिये और फिर जाइये।’ अतिथिने कहा—’नहीं, नामदेवके बिना मैं ठहर नहीं सकता।’ और वह चला गया।
राजाईने भीतर जाकर अशर्फियोंकी थैलियाँ उँडेलीं, सोनेका ढेर देख वह आनन्द-विभोर हो उठी। तत्काल कुछ अशर्फियाँ ले दूकानदारके पास पहुँची और बहुत सा सामान खरीदकर घर ले गयी। फिर जल्दीसे विविध पकवान बनाने में जुट गयी।
इधर माता गोणाई कुछ सामान माँगकर भगवान् विट्ठलके मन्दिर पहुँचीं।
नामदेवको लेकर घर आयीं। राजाईको प्रसन्नमुखसे विविध पकवान बनाते देख उनके आश्चर्यका ठिकाना न रहा। राजाईने माताके चरण छुये और पतिको प्रणाम कर उनके मित्र केशव सेठका सारा वृत्तान्त कह सुनाया।
नामदेवको रहस्य समझते देर न लगी। उनकी आँखोंसे अश्रुधाराएँ बहने लगीं। अपने लिये भगवान्को यह कष्ट देख उन्होंने प्रभुसे बार-बार क्षमा माँगी। उनका हृदय द्रवित हो उठा।
इसी उपलक्ष्य में नामदेवने गाँवके सब ब्राह्मणोंको निमन्त्रित किया और भरपेट भोजन कराकर सारा धन उन्हें लुटा दिया।- गो0 न0 बै0 (भक्तिविजय, अध्याय 4)
Engrossed in the devotion of God, Namdev’s attention kept on going completely away from home. His wife Rajai had also had a son. The house became in need of food. Neighbors started making sarcasm. Mata Gonai also used to say harsh words to Namdev on his actions.
One day Namdev came out of the house being very unhappy with all these and came to Pandharinath’s door and started praying to him with beautiful eyes – ‘ Nath! Why did you bind me in this harsh bondage of the world. Where are you? Come, give quick support.’ The Lord appeared and assured Namdev.
On leaving Namdev’s house here, his mother Gonai went out to beg for something from here and there in order to somehow calm the fire in her stomach. Meanwhile, Lord Keshav assumed the form of Seth and reached there inquiring the address of Namdev’s house. The women of the neighborhood came running to the king laughing and said- ‘Guests have come, don’t do hospitality.’
The kingdom was in great trouble. She started saying to them- ‘There is not a grain of food in the house and these guests have come. What to do? Let me tell you, they are not there, you will come when they come.’
The guest was listening to everything from outside the door. He called out to Rajai and said – ‘Namdev is my childhood friend. I came to know that these days she is in great trouble. That’s why I have brought bags of Ashrafis. Take them. That’s all there is to work.
Rajai came out and took the bags from him. When the guest started to leave, the king said, ‘Stay for a while, take a bath and eat and then go.’ The guest said – ‘No, I cannot stay without Namdev.’ And he went.
The queen went inside and poured out the bags of Ashrafis, seeing the pile of gold, she was filled with joy. Immediately reached the shopkeeper with some ashrifias and bought many things and took them home. Then quickly got involved in making various dishes.
Here Mata Gonai reached the temple of Lord Vitthal asking for some things.
Came home with Namdev. His astonishment knew no bounds to see the king happily preparing various dishes. The queen touched the feet of the mother and bowed down to her husband and told the whole story of her friend Keshav Seth.
It didn’t take long for Namdev to understand the mystery. Tears started flowing from his eyes. Seeing this suffering of God for himself, he repeatedly apologized to God. His heart melted.
On this occasion, Namdev invited all the brahmins of the village and after giving them a lot of food, looted all the money. – Go Na Bai (Bhakti Vijay, Chapter 4)