ग्रीसमें किलेन्थिस नामक एक युवक एथेंसके तत्त्ववेत्ता जीनोकी पाठशालामें पढ़ता था। किलेन्थिस बहुत ही गरीब था। उसके बदनपर पूरा कपड़ा नहीं था। पर पाठशालामें प्रतिदिन जो फीस देनी पड़ती थी, उसे किलेन्थिस रोज नियमसे दे देता था। पढ़ने में वह इतना तेज था कि दूसरे सब विद्यार्थी उससे ईर्षा करते। कुछ लोगोंने यह संदेह किया कि ‘किलेन्थिस जो दैनिक फीसके पैसे देता है, सो जरूर कहींसे चुराकर लाता होगा; क्योंकि उसके पास तो फटे चिथड़ेके सिवा और कुछ है ही नहीं।’ और उन्होंने आखिर उसे चोर बताकर पकड़वा दिया। मामला अदालतमें गया। किलेन्थिसने निर्भयताके साथ हाकिमसे कहा कि ‘मैं बिलकुल निर्दोष हूँ, मुझपर चोरीका दोष सर्वथा मिथ्य लगाया गया है। मैं अपने इस बयानके समर्थनमें दो गवाहियाँ पेश करना चाहता हूँ।’ गवाह बुलाये गये। पहला गवाह था एक माली।
उसने कहा कि ‘यह युवक प्रतिदिन मेरे बगीचेमें आकर |कुएँसे पानी खींचता है और इसके लिये इसे कुछ पैसे मजदूरीके दिये जाते हैं।’ दूसरी गवाहीमें एक बुढ़िया माईने कहा कि ‘मैं बूढ़ी हूँ। मेरे घरमें कोई पीसनेवाला नहीं है। यह युवक प्रतिदिन मेरे घरपर आटा पीस जाता है और बदले में अपनी मजदूरीके पैसे ले जाता है।’
इस प्रकार शारीरिक परिश्रम करके किलेन्थिस कुछ आने प्रतिदिन कमाता और उसीसे अपना निर्वाह करता तथा पाठशालाकी फीस भी भरता। किलेन्थिसकी इस नेक कमाईकी बात सुनकर हाकिम बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे इतनी सहायता देनी चाही कि जिससे उसको पढ़नेके लिये मजदूरी करनी न पड़े; परंतु उसने सहायता लेना स्वीकार नहीं किया और कहा कि ‘मैं स्वयं परिश्रम करके ही पढ़ना चाहता हूँ। किन्हींसे दान लेनेकी मुझे आवश्यकता नहीं है।’
उसके गुरु जीनो महाशयने भी उस स्वावलम्बी युवककी बातका समर्थन किया और उसके सहायता न लेनेपर प्रसन्नता प्रकट की!
In Greece, a young man named Kylanthis studied in the school of the philosopher Zeno of Athens. Kilanthis was very poor. He did not have full clothes on his body. But the fees that had to be paid daily in the school, were regularly paid by Kylanthis. He was so fast in studies that all the other students used to envy him. Some doubted that ‘Kilanthis, who pays the daily fee, must have stolen it from somewhere; Because he has nothing but torn rags.’ And finally they caught him by calling him a thief. The matter went to court. Kilanthis fearlessly told the princes that ‘I am completely innocent, I have been accused of theft completely falsely. I want to present two testimonies in support of this statement of mine.’ Witnesses were called. The first witness was a gardener.
He said that ‘this young man comes to my garden every day to draw water from the well and for this he is given some money as labour.’ In the second testimony, an old woman said that ‘I am old. There is no grinder in my house. This young man grinds flour at my house every day and takes his wages in return.’
In this way, by doing manual labour, Kilanthis used to earn a few annas every day and with that he used to live and also pay the fees of the school. The rulers were very pleased to hear about this noble earning of Kilanthis and they wanted to give him so much help that he would not have to work for his studies; But he did not accept to take help and said that ‘I want to study by working hard on my own. I don’t need to take donations from anyone.’
His mentor Jino Mahashay also supported the talk of that self-supporting young man and expressed happiness over his not taking help!