पशुओं के प्रति भी दयावान् एक महापुरुष

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पशुओं के प्रति भी दयावान् एक महापुरुष

प्रातः कालका समय है। दिनके कोई सात बजे हैं। लोग सुबहकी सैरको जा रहे हैं। एक युवक भी विचारोंमें डूबा हुआ मस्त चालसे टहलता चला जा रहा है। उसका ध्यान सड़कके एक किनारेकी ओर जाता है। यह क्या है? उफ! कैसा करुण दृश्य है यह!
एक बीमार कुत्ता है। उसके कानके पास एक घाव है। शायद बेचारा किसीकी निर्मम लकड़ीकी मारका शिकार हुआ है ? रक्त वह रहा है। मक्खियाँ भिनभिना रही हैं। दुर्गन्धि उड़ रही है। वह पीड़ासे व्याकुल होकर कानको बार-बार फड़फड़ाता है, मक्खियाँ कुछ देरके लिये इधर-उधर उड़ती हैं, पर फिर बैठकर घावको पुनः गन्दा करने और खून चूसने लगती हैं।
युवक एक क्षण उस कुत्तेकी पीड़ाका अनुमान करता रहा! ओफ! कितना दर्दनाक दृश्य है! यह कुत्ता न बोल सकता है, न हकीम डॉक्टरसे मरहम-पट्टी करा सकता है। इसका दुःख देखनेवाला है ही कौन ? युवकके मनमें भगवान् जगे ।
वह सैरसे लौट पड़ा। अब उसके कदम समीपके वैद्यके औषधालयकी ओर तेजीसे बढ़ रहे थे।
‘वैद्यजी। एक बीमारके लिये मरहम-पट्टी करानेकी जरूरत है! रोगीकी दशा चिन्ताजनक है!’ वह कातर स्वरमें बोला।
आदमीकी आशा लगाये हुए वैद्यने उत्सुकतापूर्वक पूछा- ‘कहिये, क्या बात है ? घरपर कौन बीमार है ?’
युवक बोला-‘घरका तो कोई बीमार नहीं, पर जो बीमार है, उसे भी मैं परिवारके सदस्यसे कम नहीं मानता।’
वैद्यजीने पूछा- ‘आखिर कौन है ?’
युवकने करुणाजनक स्वरमें कहा-‘एक अनाथ कुत्तेके कानके पास घावमें कीड़े पड़ गये हैं। वह पीड़ासे बुरी तरह बेचैन है। एक क्षण भी चैनसे नहीं बैठ सकता। बेचैनीसे बार-बार पागल-जैसा हो कान फटफटा रहा है। मैं उसकी चिन्ताजनक हालतसे बड़ा दुखी और चिन्तित हूँ आप दया करके शीघ्र ही कोई दवा दे दीजिये।’
ओफ ! तो बस इतनी-सी बातके लिये आप परेशानहैं— वैद्यजी बोले, ‘एक नाचीज कुत्तेके लिये तूफान मचाये हैं! मैं तो आपकी व्याकुल मुख-मुद्रासे घबरा उठा था।’ उन्होंने एक दवा दे दी। फिर हँसकर बोले’मेरे दोस्त, परोपकारमें अपनेको सुरक्षित रखना । जानवर आखिर जानवर ही है। पीड़ाकी अवस्थामें कुत्ता लगभग आधा पागल-बेचैन रहता है हम तो मनुष्य मरीजको मुश्किलसे दवाइयाँ लगाते हैं। बीमार और घायल दवा लगाना कोई आसान काम नहीं है।’
वैद्य कहे जा रहे थे। धुनके पक्के उस युवकने इधर कोई ध्यान नहीं दिया। वह दौड़ा-दौड़ा कुत्तेके पास आया। घायल कुत्ता अब और भी अधिक बेचैन था। मक्खियोंने काट-काटकर उसे बुरी तरह परेशान कर रखा था। रास्तेसे और भी लोग आ-जा रहे थे। वे उसे रास्ता चलते घृणापूर्वक देखते और नाक-भौं सिकोड़कर तिरस्कारकी नजरें डालकर जल्दीसे आगे बढ़ जाते । युवकने न बदबूसे घृणाकर नाक दबायी, न उसके काटने से भयभीत ही हुआ। उसने साहसपूर्वक एक बाँसमें कपड़ा लपेटकर उसे दवामें भिगोकर घावपर धीरेसे स्पर्श किया। कुत्तेके घावपर तेज दवाने कुछ तेजी दिखायी, तो वह | तिलमिलाया। काटनेकी भी कोशिश की, किंतु साहसी युवक सेवामें डटा रहा, उसने उसकी कोई परवा नहीं की। वह अपने परोपकारके काममें तल्लीन रहा।
बीमार कुत्तेको कुछ शान्ति, कुछ लाभका अनुभव हुआ। दवाईके असरसे घावमें ठण्डक पहुँची और उसकी गन्धसे मक्खियाँ भी उड़ गयीं। उसे आराम मिला।
अब वह शान्तिपूर्वक लेटा था और युवक उसके पास आकर अच्छी तरह दवाई लगा रहा था। कुत्ता पूँछ | हिला-हिलाकर अपनी मूक कृतज्ञता प्रकट कर रहा था।
जहाँ और लोगोंने घायल और तड़पते कुत्तेकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया, वहाँ इस युवकका हृदय करुणासे द्रवित हो उठा था। क्या आप जानते हैं कि इस आदमीका क्या नाम था ? यह थे ‘महामना पण्डित मदनमोहन मालवीय’, जिन्होंने भारतमें हिंदूधर्म, भारतीय संस्कृति और विद्याके क्षेत्रों में युगान्तर किया। डॉ0 श्रीरामचरणडी महेन्द्र’]

पशुओं के प्रति भी दयावान् एक महापुरुष
प्रातः कालका समय है। दिनके कोई सात बजे हैं। लोग सुबहकी सैरको जा रहे हैं। एक युवक भी विचारोंमें डूबा हुआ मस्त चालसे टहलता चला जा रहा है। उसका ध्यान सड़कके एक किनारेकी ओर जाता है। यह क्या है? उफ! कैसा करुण दृश्य है यह!
एक बीमार कुत्ता है। उसके कानके पास एक घाव है। शायद बेचारा किसीकी निर्मम लकड़ीकी मारका शिकार हुआ है ? रक्त वह रहा है। मक्खियाँ भिनभिना रही हैं। दुर्गन्धि उड़ रही है। वह पीड़ासे व्याकुल होकर कानको बार-बार फड़फड़ाता है, मक्खियाँ कुछ देरके लिये इधर-उधर उड़ती हैं, पर फिर बैठकर घावको पुनः गन्दा करने और खून चूसने लगती हैं।
युवक एक क्षण उस कुत्तेकी पीड़ाका अनुमान करता रहा! ओफ! कितना दर्दनाक दृश्य है! यह कुत्ता न बोल सकता है, न हकीम डॉक्टरसे मरहम-पट्टी करा सकता है। इसका दुःख देखनेवाला है ही कौन ? युवकके मनमें भगवान् जगे ।
वह सैरसे लौट पड़ा। अब उसके कदम समीपके वैद्यके औषधालयकी ओर तेजीसे बढ़ रहे थे।
‘वैद्यजी। एक बीमारके लिये मरहम-पट्टी करानेकी जरूरत है! रोगीकी दशा चिन्ताजनक है!’ वह कातर स्वरमें बोला।
आदमीकी आशा लगाये हुए वैद्यने उत्सुकतापूर्वक पूछा- ‘कहिये, क्या बात है ? घरपर कौन बीमार है ?’
युवक बोला-‘घरका तो कोई बीमार नहीं, पर जो बीमार है, उसे भी मैं परिवारके सदस्यसे कम नहीं मानता।’
वैद्यजीने पूछा- ‘आखिर कौन है ?’
युवकने करुणाजनक स्वरमें कहा-‘एक अनाथ कुत्तेके कानके पास घावमें कीड़े पड़ गये हैं। वह पीड़ासे बुरी तरह बेचैन है। एक क्षण भी चैनसे नहीं बैठ सकता। बेचैनीसे बार-बार पागल-जैसा हो कान फटफटा रहा है। मैं उसकी चिन्ताजनक हालतसे बड़ा दुखी और चिन्तित हूँ आप दया करके शीघ्र ही कोई दवा दे दीजिये।’
ओफ ! तो बस इतनी-सी बातके लिये आप परेशानहैं— वैद्यजी बोले, ‘एक नाचीज कुत्तेके लिये तूफान मचाये हैं! मैं तो आपकी व्याकुल मुख-मुद्रासे घबरा उठा था।’ उन्होंने एक दवा दे दी। फिर हँसकर बोले’मेरे दोस्त, परोपकारमें अपनेको सुरक्षित रखना । जानवर आखिर जानवर ही है। पीड़ाकी अवस्थामें कुत्ता लगभग आधा पागल-बेचैन रहता है हम तो मनुष्य मरीजको मुश्किलसे दवाइयाँ लगाते हैं। बीमार और घायल दवा लगाना कोई आसान काम नहीं है।’
वैद्य कहे जा रहे थे। धुनके पक्के उस युवकने इधर कोई ध्यान नहीं दिया। वह दौड़ा-दौड़ा कुत्तेके पास आया। घायल कुत्ता अब और भी अधिक बेचैन था। मक्खियोंने काट-काटकर उसे बुरी तरह परेशान कर रखा था। रास्तेसे और भी लोग आ-जा रहे थे। वे उसे रास्ता चलते घृणापूर्वक देखते और नाक-भौं सिकोड़कर तिरस्कारकी नजरें डालकर जल्दीसे आगे बढ़ जाते । युवकने न बदबूसे घृणाकर नाक दबायी, न उसके काटने से भयभीत ही हुआ। उसने साहसपूर्वक एक बाँसमें कपड़ा लपेटकर उसे दवामें भिगोकर घावपर धीरेसे स्पर्श किया। कुत्तेके घावपर तेज दवाने कुछ तेजी दिखायी, तो वह | तिलमिलाया। काटनेकी भी कोशिश की, किंतु साहसी युवक सेवामें डटा रहा, उसने उसकी कोई परवा नहीं की। वह अपने परोपकारके काममें तल्लीन रहा।
बीमार कुत्तेको कुछ शान्ति, कुछ लाभका अनुभव हुआ। दवाईके असरसे घावमें ठण्डक पहुँची और उसकी गन्धसे मक्खियाँ भी उड़ गयीं। उसे आराम मिला।
अब वह शान्तिपूर्वक लेटा था और युवक उसके पास आकर अच्छी तरह दवाई लगा रहा था। कुत्ता पूँछ | हिला-हिलाकर अपनी मूक कृतज्ञता प्रकट कर रहा था।
जहाँ और लोगोंने घायल और तड़पते कुत्तेकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया, वहाँ इस युवकका हृदय करुणासे द्रवित हो उठा था। क्या आप जानते हैं कि इस आदमीका क्या नाम था ? यह थे ‘महामना पण्डित मदनमोहन मालवीय’, जिन्होंने भारतमें हिंदूधर्म, भारतीय संस्कृति और विद्याके क्षेत्रों में युगान्तर किया। डॉ0 श्रीरामचरणडी महेन्द्र’]

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