एक बार भक्त चतुर्भुजदासजी अपने गुरुके साथ | ; कहीं तीर्थयात्रा करने जा रहे थे। पर उनका मन जानेका नहीं था; क्योंकि वहाँके भगवान्में उनका मन बहुत रम रहा था।
किंतु जब जाना पड़ा, तब वे बहुत व्याकुल हो गये और एक पेड़पर चढ़कर मन्दिरको देखने लगे। देखते देखते इतने मस्त हो गये कि पेड़से गिर पड़े। उसी समय भगवान् वहाँ आ गये और उन्होंने अपने हाथोंमें थाम लिया। उस समय भगवान्के विरहमें जो पद उन्होंने गाया, वह इस प्रकार है। कहते हैं श्रीनाथजीने उसी समय उन्हें यह वरदान दिया कि जो कोई इस पदको भावसे प्रतिदिन गायेगा, उसे वे साक्षात् दर्शन देनेको बाध्य होंगे। पद इस प्रकार है:
श्रीगोबरधनबासी साँवरे लाल, तुम बिन रह्यौ न जाय ।
ब्रजराज लड़ते लाड़ले हो, तुम बिन रह्यौ न जाय ॥
बैंक चितै मुसुकाय कैं लाल, सुंदर बदन दिखाय ।
लोचन तलफैं मीन ज्यौं लाल, पल-छिन कलप बिहाय ॥
समक स्वर बंधान सों लाल, मोहन बेनु बजाय ।
सुरत सुहाई बाँधि के लाल, मधुरं मधुरं गाय ॥
रसिक रसीली बोलनी लाल, गिरि चढ़ गयाँ बुलाय।
गाँग बुलाई धूमरी, नैक ऊँची टेर सुनाय ॥
दृष्टि परे जा दिवस तें लाल, तब तें रुचै न आन ।
रजनी नींद न आवई, मोहि बिसरयौ भोजन-पान ॥
दरसन कौं नयना तपैं लाल, बचन सुनन कौं कान ।
मिलिबे कौं हियरा तपै, मेरे जिय के जीवन प्रान ॥
पूरन ससि मुख देखि कै लाल, चित चौंट्यो वहि ओर ।
रूप सुधा रस पान कैं लाल, सादर कुमुद – चकोर ॥
मन अभिलाषा है रही लाल, लगै न नयन निमेषl
इकटक देखूँ भावँतौ प्यारौ, नागर नटवर भेष ॥
लोक लाज कुल बेद की लाल, छाँड्यौ सकल बिबेक ।
कमल कली रबि ज्यों बढ़े लाल, छिन छिन प्रीति बिसेष ll
कोटिक मनमथ वारने लाल, देखत डगमग चाल ।
जुवती जन-मन फंदना लाल, अंबुज नयन बिसाल ॥
कुंज-भवन कीड़ा करौ लाल, सुखनिधि मदनगुपाल ।
हम श्रीवृंदाबन मालती, तुम भोगी भ्रमर भुवाल ॥
यह रट लागी लाड़िले लाल, जैसैं चातक मोर।
प्रेम नीर बरषा करौ लाल, नवघन नंदकिसोर ॥
जुग जुग अविचल राखिये लाल, यह सुख सैल निवास ।
श्रीगोवर्धनधर रूप पै, बलि जाय चतुर्भुजदास ॥
भगवान् की कृपासे उनके गुरुजीके मनमें भी आ गया कि उनको न ले जायँ; बस, उनको वहींसे वापस लौटा दिया।
Once devotee Chaturbhujdasji with his Guru. , Were going on a pilgrimage somewhere. But he did not want to go; Because his mind was very happy in the God there.
But when he had to go, he became very distraught and climbed a tree and started looking at the temple. On seeing this, he became so engrossed that he fell from the tree. At the same time Bhagavan came there and held it in his hands. At that time the verse he sang in the separation of God is as follows. It is said that Shrinathji gave him a boon at the same time that he would be bound to give darshan to whoever sings this verse daily with devotion. The post is as follows:
Shri Gobardhanbasi Sawre Lal, I can’t go without you.
Brajraj, you are a fighting darling, don’t go without you.
Bank Chitai Musukay’s red, beautiful body is shown.
Lochan Talfain Meen Jyoon Lal, Pal-Chhin Kalp Bihay ॥
Samak Swar Bandhan So Lal, Mohan Benu instead.
Surat Suhai Bandhi’s Lal, Madhuram Madhuram Cow ॥
Rasik Rasili Bolni Lal, went up the hill and called.
The song called Dhumri, heard the high pitch of the neck.
When the vision goes beyond the red, then there is no interest in it.
Rajni did not sleep, Mohi forgot food and drink.
Darshan kaun nayana tapin lal, bachan sunan kaun ear.
Milibe kaun hiera tapai, my life’s life.
Puran Sasi mukh dekhi kai red, chit chauntyo wahi aur.
Roop Sudha Ras Paan Kain Lal, Regards Kumud – Chakor ॥
My heart is longing for red, I can’t see my eyes.
Let’s see together, my dear, Nagar Natwar’s disguise.
Lok Laj Kul Bed ki Lal, Chhandyu Sakal Bibek.
As the lotus bud grows red, the love becomes special.
Kotik Manmath Varne Lal, seeing the wavering gait.
Juvati Jan-Mann Fandana Lal, Ambuj Nayan Bisal ॥
Kunj-Bhavan Keeda Karau Lal, Sukhnidhi Madangupal.
We are Sri Vrindaban Malati, you are the sufferer of Bhramar Bhuwal.
This rut lagi ladile lal, jaisa chatak peacock.
Prem neer barsha karau lal, Navghan Nandkisor ॥
Keep it steady for a long time, Lal, this happiness sails residence.
May Chaturbhujdas be sacrificed in the form of Shri Govardhandhar.
By the grace of God, even his teacher thought not to take him; Just returned them from there.