सतीशिरोमणि राजमती – जिसका घरेलू प्यारका नाम राजुल था, यादववंशकी एक उज्ज्वल कन्या – रत्न थी । यदुकुलभूषण समुद्रविजयके तेजस्वी पुत्र नेमिकुमारके साथ राजुलका पाणि-ग्रहण निश्चित हुआ था। यह संयोग रत्न और स्वर्णके संयोग जैसा था।
यथासमय नेमिकुमारकी वरयात्रा सज-धजके साथ द्वारकासे मथुरा पहुँची। विधिका विधान विचित्र होता है। कन्याके पिताने बहुत-से पशु-पक्षी इसलिये एकत्रित किये थे कि वर- यात्रियोंको अभिलषित मांस भोजन दिया जा सके। एक बाड़ेमें बंद और करुणापूर्ण विलापकरते पशु-पक्षियोंको देख, नेमिकुमारका कोमल मानस दयाकी पुकारसे भर गया । दयाशील एवं करुणाप्रवण नेमकुमारने अपना रथ लौटानेका सारथिको आदेश दिया और संयम – साधनाके लिये श्रमण बन गया।
`राजुलका सुषुप्त मानस इस घटना-चक्रसे सजग हो गया । उच्च संस्कृतिसे संस्कृत जीवन अपनी दिशा बदलनेमें विलम्ब नहीं करता पतिकी जीवन-दिशा ही पत्नीकी जीवन-दिशा होती है सुकुमारी राजुल भी भोगसे निकल, कठोर योग-साधनामें सध गयी । एक बार सती राजुल भगवान् नेमिनाथके दर्शनकोरैवतगिरिपर चली। मार्गमें वर्षा हो जानेसे आर्द्रवसना | होकर समीपस्थ पर्वत–गुफामें जा पहुँची वस्त्र सुखाने। संयोगवश उसी गुफामें भगवान् नेमिनाथका अनुज भ्राता | रथनेमि श्रमण भी ध्यानस्थ खड़ा था ।
राजुलका जातरूप देखकर विचलित हो उठा। योगको भूलकर भोगके कर्दममें फँसनेको तैयार हो गया। मानसमें सुषुप्त वासनाकी नागिन फुफकार उठी । राजुल स्थितिकी नाजुकताको समझकर सतेज वाणीमें बोली- ‘सावधान रथनेमि ! अपनेको सँभालके रख। जिस भोग-वमनका परित्याग कर श्रमणत्व संधारण किया, क्या उस वमनको फिर आस्वादित करेगा ? पशु जिस गर्हित कर्मको करता है, उस अपकर्मको तू मानव होकर और फिर श्रमण होकर भी करनेकोतैयार हुआ है- धिक्कार है तुझे। जिस किसी भी नारीके रूपमें विमुग्ध होकर यदि तू संयमकी सीमासे निकला, तो तेरी स्थिति वही होगी, जो सरोवरकी सतहपर स्थित वातप्रेरित शैवालकी होती है। अतः अपनेको सँभालकर रख । ‘
मत्तगजराज जैसे अंकुशसे सन्मार्गपर आ जाता है, वैसे रथनेमि भी राजुलके सुभाषित अंकुशसे श्रमणत्व पूजित पथपर लौट आया।
राजुलका जीवन एक संस्कृत जीवन था। जनमानसके विस्मृत और विलुप्त सद्भावोंके प्रबोधके लिये एक अनुपम संजीवन शक्ति है राजुलका गौरवमय नारी जीवन। युग-युगतक राजुलका जीवन-दीप भूले चूके गुमराहीको धर्मका सच्चा रास्ता बताता रहेगा।
Satishiromani Rajmati – whose domestic love name was Rajul, was a bright girl – Ratna of the Yadav dynasty. Rajul’s water eclipse was fixed with Nemikumar, Tejaswi son of Yadukulbhushan Samudravijaya. This combination was like a combination of gems and gold.
Nemikumar’s procession reached Mathura from Dwarka in due course of time. The rule of law is strange. The bride’s father had collected many animals and birds so that the desired meat food could be given to the bridegroom. Nemikumar’s tender heart was filled with cries of mercy, seeing animals and birds confined in an enclosure and lamenting with compassion. Compassionate and compassionate, Nemkumar ordered the charioteer to return his chariot and became a shraman to practice self-control.
Rajul’s dormant mind became aware of this cycle of events. Due to high culture, Sanskrit life does not delay in changing its direction. Husband’s life-direction is the wife’s life-direction. Once Sati Rajul went to Raivatgiri to visit Lord Neminath. Dampness due to rain on the way. After reaching the nearest mountain-cave to dry the clothes. Coincidentally, in the same cave, younger brother of Lord Neminath. Rathnemi Shraman was also standing in meditation.
Rajulka got distracted after seeing his appearance. Forgetting yoga, he got ready to get entangled in the activities of enjoyment. The serpent of hidden lust hissed in the mind. Realizing the delicateness of the Rajul situation, Satej said in her voice – ‘Be careful Rathnemi! Take care of yourself. Will he relish that vomit after renouncing the indulgence and maintaining his servitude? You are ready to do the dirty work that an animal does, being a human and then even being a shraman – shame on you. If you go beyond the limit of self-restraint by being infatuated with the form of any woman, then your condition will be the same as that of a wind-induced algae on the surface of a lake. So take care of yourself. ,
Just as Mattagajraj comes back on the right path with the help of a curb, similarly Rathnemi also returned to the path worshiped by Shramanatva with the well-spoken curb of Rajul.
Rajul’s life was a Sanskrit life. Rajul’s glorious female life is a unique life force for the enlightenment of the forgotten and extinct harmony of the people. Rajul’s life-lamp will continue to show the true path of religion to the misguided for ages.