(10) जरूरतमन्दोंकी सेवा
एक हकीम गुरु गोविन्दसिंहजीके दर्शन करने आनन्दपुर गया। जब वह उनसे मिलकर वापस लौटने लगा तो गुरुजीने आशीष देते हुए कहा- ‘जाओ, तुम दीन-दुखियोंकी सेवा करो।’
हकीम अपने घर लौट आया। हकीम इबादतमें तल्लीन था कि गुरु गोविन्दसिंहजी उसके घर आ पहुँचे। वह उनकी खातिरमें तैयार होता, इससे पहले घरके बाहर किसीने आवाज लगायी- ‘हकीम साहब! मेरे पड़ोसीकी तबीयत बहुत खराब है। उसे बचा लीजिये।’ यह सुनकर हकीम थोड़ा असमंजसमें पड़ा कि बीमारकी सेवा की जाय या गुरुका सत्कार। उसने
बीमारका इलाज करना उचित समझा। इलाजके पश्चात् हकीम जब घर आया तो गुरुजी घरमें बैठे मिले। वह गुरुजीसे क्षमा माँगने लगा। गुरुजीने गले लगाकर कहा ‘मैं तुम्हारे सेवाभावसे बहुत खुश हुआ।’
(10) Service to the needy
A doctor went to Anandpur to see Guru Gobind Singhji. When he started returning after meeting him, Guruji blessed him and said- ‘Go, you serve the poor.’
Hakim returned to his home. Hakim was engrossed in worship when Guru Govind Singhji reached his house. Before he would get ready for his sake, someone outside the house called out – ‘Hakeem Sahib! My neighbor’s health is very bad. Save him.’ Hearing this, the doctor was a little confused whether to serve the sick or to honor the teacher. He
It was considered appropriate to treat the sick. When the doctor came home after treatment, he found Guruji sitting at home. He started apologizing to Guruji. Guruji hugged and said, ‘I am very happy with your service.’