फिर भी दोनों ढेरियाँ बराबर
दो भाई थे, नरेन्द्र और सुरेन्द्र। दोनों खेतीका काम करते थे। नरेन्द्र कुवारा था और उसके बहुतसे मित्र थे, जो प्रायः उसके घर आते। उनके आने-जानेसे काम प्रभावित होता। जलपान आदिमें खर्च भी खूब होता।
धीरे-धीरे सुरेन्द्रकी पत्नीको यह बात खलने लगी। उसने देवरके खिलाफ पतिके कान भरने शुरू कर दिये। धीरे-धीरे छोटी-छोटी बातोंमें क्लेश होने लगा। दोनों भाइयोंने विचार किया कि ज्यादा बैर भाव हो, उससे पहले ही उन्हें अलग हो जाना चाहिये। सब चीजोंका बँटवारा हो गया। फसल कटी। उसका भी बँटवारा हुआ। सुरेन्द्रने कहा “तुम्हें स्वयं भोजन बनाना पड़ता है। मित्र आते-जाते हैं। कुछ खराब भी होगा, कुछ मित्रोंको खिलानेके लिये चाहिये। तुम पाँच बोरी गेहूँ अधिक ले लो।’ नरेन्द्र बोला- ‘नहीं भैया! आप घर-गृहस्थीवाले हैं। अतः आपको मैं अपने हिस्सेसे गेहूँकी पाँच बोरियाँ दूँगा।’ दोनों इस प्रकार काफी देरतक बहस करते रहे। अन्तमें फैसला हुआ कि दोनों डेरियाँ जैसी थीं, वैसी ही रहेंगी। रात हुई। भाइयोंने विश्राम करनेके लिये अपने-अपने कमरोंकी राह पकड़ी। सुरेन्द्रको नींद नहीं आ रही थी। उसे बेचैनी महसूस हो रही थी। उसका मन बार-बार कचोट रहा था कि नरेन्द्रके साथ ठीक नहीं हुआ। उसे अधिक गेहूँ मिलना चाहिये। आधी रातको वह धीरेसे उठा। खलिहान में पहुँचा। वह अपनी ढेरीमेंसे पाँच बोरी गेहूँ उठाकर नरेन्द्रकी देरीमें रख आया जब वापस आया, तो मनमें सन्तोषका भाव था। उधर नरेन्द्रकी स्थिति भी वैसी ही थी। वह भी बार-बार करवट बदल रहा था सोच रहा था कि भैयाको पाँच बोरी अधिक गेहूँ मिलना चाहिये था। भैयाने अपनी इतनी सारी आवश्यकताओंको दबाकर उसे अपने बराबर गेहूँ दिया है। उन्हें तो तकलीफ हो जायगी नहीं, नहीं, मैं ऐसा होने नहीं दूंगा। वह चुपचाप उठा। खलिहान में पहुँचकर उसने अपनी ढेरीसे पाँच बोरी गेहूं निकाले और सुरेन्द्रको ढेरीमें डाल दिये। फिर चैनकी साँस लेकर सो गया। सुबह दोनों भाई खलिहानमें गये, तो देखकर हैरान थे; क्योंकि दोनोंकी ढेरियाँ एक समान थीं। दोनों समझ गये कि ऐसा क्यों हुआ है। दोनों प्रेमसे गले लग गये।
दूसरेका हित सोचना ही प्यार है।
yet both stacks are equal
There were two brothers, Narendra and Surendra. Both used to work in agriculture. Narendra was a bachelor and had many friends, who often used to come to his house. His coming and going would affect the work. There would have been a lot of expenditure on refreshments etc.
Slowly Surendra’s wife started feeling this thing. She started filling her husband’s ears against brother-in-law. Gradually, small things started causing trouble. Both the brothers thought that before there is more enmity, they should separate. Everything got divided. The crop was cut. That too was divided. Surendra said, “You have to prepare the food yourself. Friends come and go. Some will be bad, some will be needed to feed the friends. You take five more bags of wheat.” Narendra said – ‘No brother! You are a householder. So I will give you five sacks of wheat from my share.’ Both continued to argue like this for a long time. At last it was decided that both the dairies would remain as they were. Night came. The brothers went to their respective rooms to rest. Surendra could not sleep. He was feeling restless. His mind was constantly nagging that things were not right with Narendra. He should get more wheat. He got up slowly in the middle of the night. Reached the threshing floor. He picked up five sacks of wheat from his heap and kept them for Narendra’s delay. When he came back, he felt a sense of satisfaction. On the other hand, Narendra’s condition was also the same. He was also changing sides again and again, thinking that brother should have got five more bags of wheat. Brother has suppressed so many of his needs and given him wheat equal to his own. He will be in trouble. No, no, I will not allow this to happen. He got up quietly. Reaching the threshing floor, he took out five sacks of wheat from his heap and put Surendra in the heap. Then he slept peacefully. In the morning, when both the brothers went to the threshing floor, they were surprised to see; The piles were identical. Both understood why this happened. Both hugged with love. Got engaged.
Thinking about the welfare of others is love.