बलिप्रथा अधर्म है
ढाई सौ वर्ष पूर्व कुरुक्षेत्रमें जनमे योगिराज वनखण्डी महाराज परम विरक्त एवं सेवाभावी सन्त थे। उन्होंने दस वर्षकी आयुमें ही उदासीन सम्प्रदायके सिद्ध सन्त स्वामी मेलारामजी से दीक्षा लेकर समस्त जीवन धर्म एवं समाजके लिये समर्पित करनेका संकल्प लिया। एक बार पटियालाके राजा कर्मसिंह सन्त वनखण्डीको अपने राजमहलमें ले गये। जब उन्होंने उनसे रातको महलमें ही निवास करनेका आग्रह किया, तो वनखण्डी महाराजने कहा ‘साधुको किसी भी गृहस्थके घर नहीं ठहरना चाहिये।’ राजाके हठको देखकर वे रुक गये और आधी रातको चुपचाप महलसे निकलकर वनमें जा पहुँचे।
सन्त वनखण्डी महाराज एक बार तीर्थयात्रा करते हुए असमके कामाख्या देवीके मन्दिरमें दर्शनके लिये पहुँचे। उन्हें पता चला कि कुछ अन्धविश्वासी लोग देवीको प्रसन्न करनेके नामपर निरीह पशु-पक्षियोंको बलि देते हैं। कभी-कभी कुछ दबंग एवं धनी लोग व्यक्तिगत हित साधनेके लिये नरबलि -जैसा पापकर्म करनेसे भी बाज नहीं आते। वनखण्डी महाराजने निर्भीकतापूर्वक सभीके समक्ष कहा-‘सभी प्राणिजन देवी माँकी सन्तान हैं। माँ करुणामयी होती है, वह किसीकी बलिसे खुश कैसे हो सकती है ?’ उसी दिनसे सभीने संकल्प लिया कि नरबलि जैसा घोर पापकर्म कभी नहीं होगा।
वनखण्डीजी सिन्ध-सक्खर पहुँचे। वहाँ उन्होंने सिन्धुनदीके तटपर उदासीन सम्प्रदायके साधुबेला तीर्थकी स्थापना की। यह तीर्थ उनकी कीर्तिका साकार स्मारक है।
sacrifice is unrighteous
Born 250 years ago in Kurukshetra, Yogiraj Vankhandi Maharaj was the most disinterested and service-oriented saint. At the age of ten, he took initiation from Swami Melaramji, a proven saint of Udasin sect and took a resolution to dedicate his entire life to religion and society. Once King Karm Singh of Patiala took Saint Vankhandi to his palace. When he urged them to stay in the palace for the night, Vankhandi Maharaj said ‘A monk should not stay at any householder’s house.’ Seeing the obstinacy of the king, they stopped and quietly left the palace at midnight and reached the forest.
Saint Vankhandi Maharaj once, while on a pilgrimage, reached the temple of Kamakhya Devi in Assam for darshan. He came to know that some superstitious people sacrifice innocent animals and birds in the name of pleasing the Goddess. Sometimes some domineering and rich people don’t desist from doing sinful acts like human sacrifice for personal gain. Vankhandi Maharaj boldly said in front of everyone – ‘All living beings are the children of the Mother Goddess. Mother is compassionate, how can she be happy at someone’s sacrifice?’ From that day everyone took a pledge that heinous sin like human sacrifice would never happen.
Vankhandiji reached Sindh-Sakkhar. There he established the Sadhubela Tirtha of the Udasin sect on the banks of the Indus river. This pilgrimage is a real memorial of his fame.