गांधीजीने जब दक्षिण अफ्रीकामें आश्रम खोला था, तब अपना सर्वस्व वहाँके आश्रम अर्थात् देशवासियोंको दे दिया। गोकी नामकी इनकी बहिन थीं जिनका निर्वाह करना कठिन था। गांधीजीके पास अपनी कोई सम्पत्ति थी नहीं। बड़ी कठिनतासे डॉ0 प्राणजीवन मेहतासे कहकर दस रुपये मासिककी व्यवस्था करवायी । थोड़े ही दिनोंके बाद गोकी बहिनकी लड़की भी विधवा हो गयी। गोकीने गांधीजीको लिखा- ‘अबखर्च बढ़ गया है। हमें पड़ोसियोंका अनाज पीसकर काम चलाना पड़ता है। कोई उपाय ढूँढ़ो।’
जवाबमें गांधीजीने लिखा- ‘आटा पीसना बड़ा अच्छा है। तुम दोनोंका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। हम भी आश्रममें आटा पीसते हैं। जब जी चाहे आश्रममें रहने तथा जन-सेवा करनेका तुम दोनोंका पूरा अधिकार है। पर मैं घरपर कुछ नहीं भेज सकता, न इसके लिये अपने मित्रोंसे ही कह सकता हूँ।’ – जा0 श0
When Gandhiji opened an ashram in South Africa, he gave his everything to the ashram there, that is, to the countrymen. He had a sister named Goki, who was difficult to maintain. Gandhiji did not have any property of his own. With great difficulty, by asking Dr. Pranjeevan Mehta, arranged for ten rupees monthly. After a few days, Goki’s sister’s daughter also became a widow. Gokin wrote to Gandhiji- ‘Now the expenditure has increased. We have to make ends meet by grinding the grains of our neighbors. Find some solution.’
In response, Gandhiji wrote- ‘Grinding flour is very good. Both of you will have good health. We also grind flour in the ashram. You both have every right to stay in the ashram whenever you want and do public service. But I cannot send anything home, nor can I ask my friends for this.’ – Ja0 Sh0