पंजाब केसरी महाराज रणजीतसिंह कहीं जा रहे थे। अकस्मात् एक ढेला आकर उनको लगा। महाराजको बड़ी तकलीफ हुई। साथी दौड़े और एक बुढ़ियाको लाकर उनके सामने उपस्थित किया।
बुढ़िया भयके मारे काँप रही थी। उसने हाथ जोड़कर कहा – ‘सरकार मेरा बच्चा तीन दिनोंसे भूखा था, खानेको कुछ नहीं मिला। मैंने पके बेलको देखकर ढेला मारा था। ढेला लग जाता तो बेल टूट पड़ता और उसे खिलाकर मैं बच्चे प्राण बचा सकती, पर मेरे अभाग्यसे आप बीचमें आ गये। ढेला आपको लग गया। मैं निर्दोष हूँ,सरकार ! मैंने ढेला आपको नहीं मारा था। क्षमा कीजिये।’ बुढ़ियाकी बात सुनकर महाराज रणजीतसिंहजीने अपने आदमियोंसे कहा – ‘बुढ़ियाको एक हजार रुपये |और खानेका सामान देकर आदरपूर्वक घर भेज दो।’ लोगोंने कहा – ‘सरकार ! यह क्या करते हैं । इसने आपको ढेला मारा, इसे तो कठोर दण्ड मिलना चाहिये। ‘ रणजीतसिंह बोले- ‘ भाई ! जब बिना प्राणोंका तथा बिना बुद्धिका वृक्ष ढेला मारनेपर सुन्दर फल देता है, तब मैं प्राण तथा बुद्धिवाला होकर इसे दण्ड कैसे दे सकता हूँ।’
Punjab Kesari Maharaj Ranjit Singh was going somewhere. Suddenly a lump came and hit him. Maharaj was in great trouble. The companions ran and brought an old woman and presented them in front of them.
The old woman was trembling with fear. He said with folded hands – ‘Sarkar, my child was hungry for three days, he did not get anything to eat. Seeing the ripe vines, I hit the heap. If a lump had hit the vine, it would have broken and I could have saved the child’s life by feeding it, but unfortunately you came in between. You got the lump. I am innocent, sir! I didn’t hit you. beg to differ.’ After listening to the old woman, Maharaj Ranjit Singhji said to his men – ‘Give the old woman one thousand rupees and eatables and send her home respectfully.’ People said – ‘Government! What do they do? He hit you hard, he should be punished severely. ‘ Ranjit Singh said – ‘ Brother! When a tree without life and without intelligence gives beautiful fruit when hit with a lump, then how can I punish it with life and intelligence.’