एक साधक था। उसने घोर तपस्या की और जलके ऊपर चलनेमें समर्थ हो गया। अब वह प्रसन्नतासे खिल उठा और दौड़ा हुआ अपने गुरुके पास गया। गुरुजीने पूछा ‘क्यों आज बड़े प्रसन्न दीखते हो ? क्या बात है ?’ साधक बोला, ‘महाराज! मुझे जलपर चलनेकी सिद्धि प्राप्त हो गयी।’ गुरुने कहा- ‘चौदहवर्षोंतक क्या तुम इसीके लिये मरते रहे? यह तो तुम्हारी एक पैसेकी भी सिद्धि नहीं हुई; क्योंकि यह काम तो तुम मल्लाहको एक पैसा देकर भी कर सकते थे । तपस्या तो भगवत्प्राप्तिके लिये होती है। ऐश्वर्यादिकी प्राप्तिके लिये तपस्या करनेसे तो अच्छा है कि वह कोई व्यापार ही कर ले।’ शिष्य लजा गया।
There was a seeker. He did severe penance and was able to walk on water. Now he blossomed with happiness and ran to his teacher. Guruji asked, ‘Why do you look very happy today? Whats up ?’ The seeker said, ‘ Maharaj! I got the achievement of walking on water. The Guru said- ‘Did you keep dying for this for fourteen years? This has not been achieved even for a penny of yours; Because you could have done this work even by paying a penny to the boatman. Tapasya is for the attainment of God. It is better to do some business than to do penance for the attainment of wealth. The disciple was ashamed.