एक साधु नगरसे बाहर कुटियामें रहते थे। परंतु भिक्षा माँगने तो उन्हें नगरमें आना ही पड़ता था । मार्गमें एक वेश्याका घर पड़ता था । वेश्या उन्हें अपनी ओर आकर्षित करनेका प्रयत्न करके हार चुकी थी । इससे प्रायः वह प्रतिदिन उनसे पूछती – ‘तुम पुरुष हो या स्त्री ?’
साधु उत्तर दे देते – ‘एक दिन इसका उत्तर दूँगा।’ वेश्याने इसका कुछ और अर्थ समझ लिया था। वह प्रतिदिन उनके नगरमें आनेका मार्ग देखती रहती थी। सदा उसे यही उत्तर मिलता था। सहसा एक दिन एक व्यक्तिने आकर समाचार दिया वेश्याको-‘महात्माजी तुम्हें कुटियापर बुला रहे हैं।’
वेश्या वहाँ पहुँची। साधु बीमार थे, भूमिपर पड़े थे और अब उनके जीवनके कुछ क्षण ही शेष थे।उन्होंने वेश्यासे कहा-‘मैंने तुम्हें तुम्हारे प्रश्नका उत्तर देनेका वचन दिया था, वह उत्तर आज दे रहा हूँ-मैं पुरुष हूँ।’
वेश्या बोली- ‘यह उत्तर तो आप कभी दे सकते थे।’ साधुने कहा- ‘केवल पुरुषका शरीर मिलनेसे कोई पुरुष नहीं हो जाता। जो संसारके भोगों में आसक्त है, वह मायाके परतन्त्र है। परतन्त्र जीव मायाकी कठपुतली है तो स्त्री ही है। पुरुष एक ही है मायाका स्वामी । उससे एकात्मता प्राप्त करनेपर ही पुरुषत्व प्राप्त होता है। जीवन जबतक है, कोई नहीं कह सकता कि कब माया उसे नचा लेगी। परंतु अब मैं जा रहा हूँ। अब मैं कह सकता हूँ कि माया मेरा कुछ नहीं कर सकी। अब मैं समझता हूँ कि मैं पुरुष हूँ।’-सु0 सिं0
A monk used to live in a cottage outside the city. But he had to come to the city to beg. There used to be a prostitute’s house on the way. The prostitute had lost trying to attract him. Because of this, she used to ask him every day – ‘Are you a man or a woman?’
The sage would have replied – ‘One day I will answer this.’ The prostitute had understood some other meaning of this. She used to see the way to come to his city every day. He always got the same answer. Suddenly one day a person came and informed the prostitutes – ‘Mahatmaji is calling you to the cottage.’
The prostitute reached there. The monk was ill, lying on the ground and now he had only a few moments left to live. He said to the prostitute – ‘I promised you the answer to your question, I am giving that answer today – I am a man.’
The prostitute said – ‘You could have given this answer sometime.’ The monk said- ‘One does not become a man just by getting the body of a man. The one who is attached to the pleasures of the world, he is dependent on Maya. Dependent creature is a puppet of Maya, so she is a woman. Only one Purush is the master of Maya. Masculinity is attained only by attaining oneness with him. As long as there is life, no one can say when Maya will make it dance. But now I am leaving. Now I can say that Maya could not do anything to me. Now I understand that I am a man.’-Su Sin 0