मातृसेवा – मुक्तिकी सीढ़ी
एक उत्साही नवयुवक रामकृष्ण परमहंसकी सेवामें पहुँचा। वह परमहंसके चरणोंमें झुक गया, उसने पूर्ण भक्तिभावसे उनसे प्रार्थना की- ‘महात्मन्! मुझे अपना शिष्य बना लीजिये और गुरुमन्त्रकी दीक्षा दीजिये।’
युवककी बातपर परमहंस मुसकराये और फिर उन्होंने उससे पूछा- ‘हे नवयुवक! तुम्हारे परिवारमें तुम्हारे अलावा और कौन-कौन है ? क्या तुम अकेले ही हो ?’
इसपर युवकने उत्तर दिया- ‘महाराज ! घरमें मेरे अलावा सिर्फ मेरी बूढ़ी माँ है।’
युवकके उत्तरपर परमहंसको पहले तो थोड़ा-सा क्रोध आया, लेकिन फिर उन्होंने युवकसे पूछा—’तुम गुरुमन्त्र लेकर साधु क्यों बनना चाहते हो?”
इसपर युवक बोला-‘मैं इस मोहमाया और ऊँच नीचसे भरे संसारको छोड़कर मुक्ति पाना चाहता हूँ।’
इसपर रामकृष्ण परमहंसने उस युवकको सीख दी, ‘अपनी बूढ़ी माँको असहाय छोड़कर तुम्हें मुक्ति नहीं मिलेगी, तुम्हारी सच्ची मुक्ति तो इसीमें है कि तुम पूरी शक्तिसे अपनी बूढ़ी और असहाय माँकी सेवा करो। यही तुम्हारी मुक्तिकी सीढ़ी है।’
Mother Service – The Ladder of Liberation
An enthusiastic young man reached the service of Ramakrishna Paramhansa. He bowed down at the feet of Paramhansa, he prayed to him with full devotion – ‘ Mahatman! Make me your disciple and give me the initiation of Guru Mantra.’
Paramhans smiled at the words of the young man and then he asked him- ‘O young man! Who else is there in your family besides you? Are you alone?’
On this the young man replied – ‘ Maharaj! Apart from me, there is only my old mother in the house.
At first Paramhansa got a little angry at the young man’s answer, but then he asked the young man – ‘Why do you want to become a monk by taking Guru Mantra?’
On this the young man said – ‘I want to get rid of this illusion and world full of high and low.’
On this, Ramakrishna Paramhansa taught the young man, ‘You will not get salvation by leaving your old mother helpless, your true salvation lies in serving your old and helpless mother with all your might. This is the ladder to your salvation.’