[महाभारत]
आदत खराब नहीं करनी चाहिये
प्राचीन समयमें एक सेठ-सेठानी थे, सुखी-सम्पन्न थे, पर अकेले ही थे। उन्होंने एक गाय पाल रखी थी, उसकी देखभाल करना, चारा खिलाना और पानी पिलाना इन सबका दायित्वनिर्वाह उनका रामू नामका एक सेवक सच्चे मन और निष्ठासे किया करता था। समयपर गायकी सभी सेवाएँ होतीं और उसका दूध निकाला जाता। सुबह शाम दोनों समय उस गायका दूध निकालकर वह कर्मिष्ठ सेवक रामू अपने सेठजीके घर दे जाता। एक बार सेठजीको तीर्थयात्रा करनेकी इच्छा हुई। सेठ-सेठानीने यात्रापर चलनेकी तैयारी की और चलते समय सेठजीने अपने सेवक रामूको समझाया – भाया! हमारे पीछेसे गायका अच्छी तरहसे ध्यान रखना, चारेका पूरा प्रबन्ध है ही, दूध निकालकर अपने घर ले जाना, हमें यात्रासे वापसीमें एक महीना लग ही सकता है, चिन्ता नहीं करना, खर्चे और अपनी मजदूरी मेहनतानाके बतौर ये कुछ रुपये रख लो और पीछेसे घरका भी ध्यान रखना।
सेठ-सेठानी तीर्थयात्रापर चले गये। सेठजीके कहे अनुसार उनका वह सेवक राम उनके घर और गायकी अच्छी तरह देखभाल करता और गायका दूध निकालकर अपने घर ले जाता, लेकिन दूधको अपने घरके आँगनमें फैला देता और गली-मुहल्लेके कुत्ते-पिल्ले वहाँ आकर दूधको चाट-चाटकर पीते। रामूकी भोली-भाली पत्नीने अपने पतिके दूध फैलानेपर उसी दिन उसे टोका-दूधको फैलानेसे क्या लाभ? हमारे इन दोनों छोटे-छोटे बच्चोंको दूध पीनेको मिल जाय, इससे अच्छी बात क्या हो सकती है? आपको सेठजी कहकर गये हैं कि ‘दूध घर ले जाना।’ रामूने पूरा उत्तर नहीं दिया- नहीं-नहीं, इन बच्चोंको दूध पिलाकर । पत्नीने पतिकी अधूरी बात पूरी की ‘आदत खराब नहीं करनी।’ उसे अपने पतिकी बात समझमें 4 तो नहीं आयी, पर उसने कोई तर्क-वितर्क नहीं किया। अपना-अपना प्रारब्ध है, समझकर चुप रही। गृहशान्ति बनी रही। रामूका दूध निकालकर सेठजीके कहनेसे दूधको घर लाना और अपनी समझसे दूधको घरके आँगनमें डाल देना उसकी दैनिक क्रिया बन गयी। गली-मुहल्लेके कुत्ते,
पिल्ले उस दूधको चट कर जाते ।
लगभग एक महीना बीता। सेठ-सेठानी तीर्थयात्रासे वापस आये। रामूने गायका दूध निकाला और सेठजीके घरपर दूध रख दिया। रामू अपने घर आया, आज तो दूध ही नहीं था, आँगनमें क्या फैलाता ? लेकिन गली मुहल्ले के कुत्ते-पिल्ले रोजानाकी तरह समयपर उसके घरके आँगनमें इकट्ठे हुए, दूध न पाकर ‘भौं-भौं’ कर भौंकने लगे, रोने लगे। रामूकी पत्नीने भौंकने-रोनेका दारुण दृश्य देखा और पूछनेकी मुद्रामें पतिके मुखको ओर देखने लगी। पतिने कहा- देवि! तुमने इन्हें देख लिया, मैंने अपने बच्चोंको वह दूध इसीलिये नहीं पीने दिया, नहीं तो आज ये अपने बच्चे इसी रोते, बिलखते। बात आज रामूकी पत्नीकी समझमें आयी अपने हक मेहनतका खायें- पीयें, स्वाभिमानसे जीयें और अपने सामर्थ्य तथा मर्यादामें रहें।
[ श्रीजगदीशप्रसादजी गुप्ता ]
[महाभारत]
आदत खराब नहीं करनी चाहिये
प्राचीन समयमें एक सेठ-सेठानी थे, सुखी-सम्पन्न थे, पर अकेले ही थे। उन्होंने एक गाय पाल रखी थी, उसकी देखभाल करना, चारा खिलाना और पानी पिलाना इन सबका दायित्वनिर्वाह उनका रामू नामका एक सेवक सच्चे मन और निष्ठासे किया करता था। समयपर गायकी सभी सेवाएँ होतीं और उसका दूध निकाला जाता। सुबह शाम दोनों समय उस गायका दूध निकालकर वह कर्मिष्ठ सेवक रामू अपने सेठजीके घर दे जाता। एक बार सेठजीको तीर्थयात्रा करनेकी इच्छा हुई। सेठ-सेठानीने यात्रापर चलनेकी तैयारी की और चलते समय सेठजीने अपने सेवक रामूको समझाया – भाया! हमारे पीछेसे गायका अच्छी तरहसे ध्यान रखना, चारेका पूरा प्रबन्ध है ही, दूध निकालकर अपने घर ले जाना, हमें यात्रासे वापसीमें एक महीना लग ही सकता है, चिन्ता नहीं करना, खर्चे और अपनी मजदूरी मेहनतानाके बतौर ये कुछ रुपये रख लो और पीछेसे घरका भी ध्यान रखना।
सेठ-सेठानी तीर्थयात्रापर चले गये। सेठजीके कहे अनुसार उनका वह सेवक राम उनके घर और गायकी अच्छी तरह देखभाल करता और गायका दूध निकालकर अपने घर ले जाता, लेकिन दूधको अपने घरके आँगनमें फैला देता और गली-मुहल्लेके कुत्ते-पिल्ले वहाँ आकर दूधको चाट-चाटकर पीते। रामूकी भोली-भाली पत्नीने अपने पतिके दूध फैलानेपर उसी दिन उसे टोका-दूधको फैलानेसे क्या लाभ? हमारे इन दोनों छोटे-छोटे बच्चोंको दूध पीनेको मिल जाय, इससे अच्छी बात क्या हो सकती है? आपको सेठजी कहकर गये हैं कि ‘दूध घर ले जाना।’ रामूने पूरा उत्तर नहीं दिया- नहीं-नहीं, इन बच्चोंको दूध पिलाकर । पत्नीने पतिकी अधूरी बात पूरी की ‘आदत खराब नहीं करनी।’ उसे अपने पतिकी बात समझमें 4 तो नहीं आयी, पर उसने कोई तर्क-वितर्क नहीं किया। अपना-अपना प्रारब्ध है, समझकर चुप रही। गृहशान्ति बनी रही। रामूका दूध निकालकर सेठजीके कहनेसे दूधको घर लाना और अपनी समझसे दूधको घरके आँगनमें डाल देना उसकी दैनिक क्रिया बन गयी। गली-मुहल्लेके कुत्ते,
पिल्ले उस दूधको चट कर जाते ।
लगभग एक महीना बीता। सेठ-सेठानी तीर्थयात्रासे वापस आये। रामूने गायका दूध निकाला और सेठजीके घरपर दूध रख दिया। रामू अपने घर आया, आज तो दूध ही नहीं था, आँगनमें क्या फैलाता ? लेकिन गली मुहल्ले के कुत्ते-पिल्ले रोजानाकी तरह समयपर उसके घरके आँगनमें इकट्ठे हुए, दूध न पाकर ‘भौं-भौं’ कर भौंकने लगे, रोने लगे। रामूकी पत्नीने भौंकने-रोनेका दारुण दृश्य देखा और पूछनेकी मुद्रामें पतिके मुखको ओर देखने लगी। पतिने कहा- देवि! तुमने इन्हें देख लिया, मैंने अपने बच्चोंको वह दूध इसीलिये नहीं पीने दिया, नहीं तो आज ये अपने बच्चे इसी रोते, बिलखते। बात आज रामूकी पत्नीकी समझमें आयी अपने हक मेहनतका खायें- पीयें, स्वाभिमानसे जीयें और अपने सामर्थ्य तथा मर्यादामें रहें।
[ श्रीजगदीशप्रसादजी गुप्ता ]