आध्यात्मिक पंचतन्त्र

religion buddha plant

आध्यात्मिक पंचतन्त्र

मिस्त्रीकी डली
एक चींटी नमकके पर्वतपर रहती थी, दूसरी चींटी मिस्रीके पर्वतपर। एक दिन नमकवाली चींटी, मिस्रीवाली चींटीसे पूछने लगी कि तू इतनी हृष्ट-पुष्ट कैसे रहती है, तो उसने मिस्त्रीका स्वाद और गुण बताकर कहा कि बस मैं वही खाकर पुष्ट हूँ। तब नमकके पर्वतवाली चींटीने कहा कि ‘मुझे भी वह पर्वत बता दे।’ तो मिस्त्रीवाली चींटी नमकवाली चींटीको मिस्त्रीके पर्वतपर ले गयी। (मिस्रीकी एक छोटी-सी भी डली चींटीके लिये तो पर्वतकी तरह ही है, इसलिये उसे पर्वत कहा गया है) मिस्त्रीके पर्वतपर वह नमकवाली चींटी चारों तरफ घूमकर बोली कि यहाँ तो नमक ही-नमक है। मिस्त्रीका स्वाद जो तुमने कहा, मुझे तो कहीं भी नहीं मिला। मिस्त्रीवाली चींटीने फिर गौरसे देखा तो यह पता लगा कि नमकके पर्वतवाली चींटीके मुँहमें अभीतक नमकका एक छोटा-सा कण था। तब मिस्त्रीके पर्वतकी चींटीने कहा-बहन! तेरे मुखमें नमककी डली है, उसे तो फेंक, तब मिस्रीका स्वाद मिले। नमकवाली चींटीने अपने मुँहसे वह नमकका कण फेंक दिया तो फिर उसे भी मिस्रीका स्वाद मिलने लग गया। मिस्री मिलते ही वह भी मिस्री खाने लगी और नमकका पर्वत सदाके लिये छोड़ दिया। कुछ दिनोंमें नमकके पर्वतवाली चींटी भी मिस्रीके पर्वतवाली चींटीके समान ही हृष्ट-पुष्ट हो गयी।
भावार्थ – तो हे चित्त, इस कहानीसे तू इस प्रकार शिक्षा ले कि हमारे भीतरका अन्तःकरण ही मिस्रीका पर्वत है; क्योंकि उसके भीतर आत्माकी मिठास भरी है। अभीतक तू संसारके विषयभोगरूपी नमकके पर्वतपर ही तू घूमता रहा। जैसे-तैसे कुछ समय सत्संगमें (मिस्रीके पर्वतपर) भी ले गया, तो भी तेरा ध्यान विषयोंमें ही था अर्थात् जैसे नमकके पर्वतवाली चींटी जब मिस्रीके पर्वत पर पहुँची, तो वहाँ भी नमककी डली मुँहमें दबाकर ही गयी। जबतक विषयोंको हम ध्यानसे हटा नहीं देंगे, तबतक सत्संग भी कुछ पल्ले पड़नेवाला नहीं, इसलिये मनको संसारके विषयोंकी ओर भागनेसे रोकना होगा और अध्यात्मकी ओर उसे मोड़ना होगा ।

Spiritual Panchatantra

nugget
One ant lived on the mountain of salt, the other ant on the mountain of Egypt. One day the salty ant started asking the Egyptian ant that how do you stay so healthy, then she told the taste and qualities of Egyptian and said that I am healthy only after eating that. Then the ant from the salt mountain said, ‘Tell me that mountain too.’ So the mason ant took the ant with salt to the mason’s mountain. (Even a small nugget of Egyptian is like a mountain for an ant, that is why it is called a mountain) That salt ant went around on the Egyptian mountain and said that there is only salt here. The taste of Egypt that you said, I could not find it anywhere. When the mason ant looked closely again, it was found that the salt mountain ant still had a small particle of salt in its mouth. Then the ant of the mason’s mountain said – Sister! You have a lump of salt in your mouth, throw it away, then you will get the taste of Egypt. The salt ant threw that salt particle in its mouth, then it also started getting the taste of Egypt. As soon as she got Egyptian, she also started eating Egyptian and left the mountain of salt forever. In a few days, the salt mountain ant also became as healthy as the Egyptian mountain ant.
Meaning – So O mind, learn from this story in such a way that our inner self is the mountain of Egypt; Because the sweetness of the soul is filled within it. Till now you kept roaming on the mountain of salt in the form of worldly pleasures. Somehow took some time in satsang (on the Egyptian mountain), even then your attention was only on the subjects, i.e. when the ant from the salt mountain reached the Egyptian mountain, it also went there with the nugget of salt in its mouth. Until and unless we remove the subjects from our attention, even the satsang is not going to be of any use, so the mind has to be stopped from running towards the worldly subjects and diverted towards spirituality.

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *