रोमका एक चित्रकार ऐसे व्यक्तिका चित्र बनाना चाहता था जिसके मुखसे भोलेपन, सरलता और दीनताके भाव स्पष्ट प्रकट होते हों। वर्षोंके परिश्रमके पश्चात् उसे एक ऐसा बालक मिला। चित्रकारने बालकको बैठाकर उसका चित्र बनाया। उस चित्रकी इतनी प्रतियाँ बिकीं कि चित्रकार मालामाल हो गया।दस-पंद्रह वर्ष पीछे चित्रकारके मनमें एक दुष्टताके भाव प्रकट करनेवाले चित्रको बनानेकी इच्छा हुई। वह ऐसे व्यक्तिका चित्र बनाना चाहता था जिसके मुखसे धूर्तता, क्रूरता और स्वार्थलिप्सा फूटी पड़ती हो । स्पष्ट था कि ऐसे व्यक्ति उसे कारागारमें ही मिल सकते वह कारागारमें पहुँचा और उसे एक कैदी मिल भी गया।’मैं तुम्हारा चित्र बनाना चाहता हूँ।’ चित्रकारने बताया। ‘मेरा चित्र! क्यों ?’ कैदी कुछ डर गया। चित्रकारने अपना पहला चित्र दिखलाया और उसने अपना विचार सूचित किया। पहले चित्रको देखकर कैदी फूट-फूटकर रोने लगा। उसने बताया’यह चित्र मेरा ही है।’ ‘तुम इस दशामें कैसे पहुँच गये ?’ आश्चर्यसे चित्रकारने पूछा। ‘कुसङ्गमें पड़कर।’ कैदीके पश्चात्तापके अश्रु रुकते ही नहीं थे।
A painter from Rome wanted to paint a portrait of such a person whose face clearly reveals the feelings of innocence, simplicity and humility. After years of hard work, he got such a child. The painter made the child sit and made a picture of him. So many copies of that picture were sold that the painter became rich. Ten-fifteen years later, the painter had a desire to make a painting that showed the feelings of wickedness. He wanted to paint a picture of such a person whose mouth oozes cunningness, cruelty and selfishness. It was clear that such a person could be found only in the prison. He went to the prison and found a prisoner. ‘I want to paint your portrait.’ The painter told. ‘My picture! Why ?’ The prisoner got scared. The painter showed his first drawing and communicated his idea. Seeing the first picture, the prisoner started crying bitterly. He said, ‘This picture is mine.’ ‘How did you come to this condition?’ Surprised the painter asked. ‘Being in bad company.’ The tears of repentance of the prisoner did not stop.