किसी वस्तुको रखने या हटा देनेके सम्बन्धमें बहुत सोच-समझकर निर्णय करनेसे बड़े से बड़ा लाभ होते देखा गया है। बहुत पहलेकी बात है। एक व्यक्तिने अपने
अंगूरके बगीचे में एक अंजीरका पेड़ लगा रखा था।बहुत दिनोंसे उसमें फल नहीं लगे थे।
“यह पेड़ निरर्थक सिद्ध हुआ । इसने इतनी जमीन व्यर्थ घेर रखी है। तीन साल हो गये, पर इस ठूंठमें एक फल भी नहीं लगा। इसे काट डालो।’ बगीचेकेमालिकने मालीको आदेश दिया।
‘ मालिक ! एक सालका और मौका दीजिये। मैं इसके चारों ओर थाला बनाऊँगा । पानी और खाद दूँगा । हो सकता है कि हमारी एक सालकी प्रतीक्षा फलवती हो जाय और इस ठूंठमें नये प्राण लहरा उठें।’ मालीने मालिकसे प्रार्थना की। उसे विश्वास दिलाया कि यदिइसमें फल नहीं लगेंगे तो काट डालूँगा । ‘तुम ठीक कहते हो, माली ! प्रतीक्षासे भी सफलता मिलती है।’ मालिकने आदेश बदल दिया। उसे फलकी आशा थी और सचमुच अगली साल फल लग गये।
– रा0 श्री0
Taking a very careful decision regarding keeping or removing something has been seen to be of great benefit. It is from a long time ago. a person in his
A fig tree was planted in the vineyard. It had not borne fruit for many days.
“This tree has proved useless. It has occupied so much land in vain. Three years have passed, but this stump has not yielded even a single fruit. Cut it down.” The owner of the garden ordered the gardener.
‘ master ! Give one more chance. I will make a plate around it. Will give water and fertilizer. May be our one year’s wait will bear fruit and new life will rise in this stump.’ The gardener prayed to the owner. Assured him that if it does not bear fruit, he will cut it. ‘You are right, gardener! Waiting also brings success. The owner changed the order. He had hope of fruit and it really bore fruit the next year.