रानी अहल्याबाई
वह रानी थी अहल्याबाई। उस
अहल्याबाईने बहुत-से यज्ञ-याग आदि करके एक पुत्र प्राप्त किया। पुत्र नन्हा था। रानी अहल्याबाईके पति पानीपतकी तीसरी लड़ाईमें बलिदान हो गये। वह पतिके साथ सती होना चाहती थी। परंतु सब लोगोंने कहा ‘आपने इतने यज्ञ याग आदि करके एक पुत्र प्राप्त किया है। इस पुत्रकी रक्षाके लिये आप शरीरको मत त्यागो।’ उसने स्वीकार कर लिया। पुत्रकी संरक्षिका बन गयी। बड़ी धर्मपरायणा थी। नीतिपरायणा थी। धर्मानुसार राज्य चलाती थी। पुत्र जवान हो गया। राजतिलकके योग्य हो गया। तब अचानक एक विचित्र घटना घटी। रानीके दरबारमें शिकायत पहुँची। हे धर्मात्मा रानी! आपका जवान बेटा कुछ ऐसा पाप कर चुका है, जिस पापके लिये प्रजाजनमें कोई वैसा पाप-चरित्रहीनताका पाप, यौनाचारका पाप, यौन उच्छृंखलताका पाप करे तो आप उसे प्राणदण्ड दे देतीं। रानीने कहा- ‘अच्छा!’ रानीने जाँच-पड़ताल की। देखा, आरोप सही है। रानीने आदेश दिया ‘जाओ, मेरे इकलौते जवान बेटेको, जिसका राजतिलक कुछ ही दिनमें होनेवाला है, पकड़ लाओ और हाथीके पाँवके नीचे कुचलवा दो।’
सारी प्रजा से उठी, मन्त्रिगण रो उठे। रानी पुत्र कहा- ‘नहीं। न्यायमें अपना पराया कोई नहीं है। सारी प्रजाएँ मेरी संतान है। सब प्रजाजन मेरे हैं। जो न्याय प्रजाके लिये है, वही न्याय इसके लिये भी है।’ सब प्रजाजनोंके रोते हुए भी उसने अपने बेटेको हाथीके पाँवके नीचे कुचलवा दिया। एक आँसू नहीं बहाया। प्रजा रो रही थी। और, जब उसका प्राणान्त हो गया। शरीर शान्त हो गया। तब रानीने कहा—’अच्छा प्रजाजनो! जो मेरा रानीके नाते कर्तव्य था, वह मैंने किया है। अब मुझे मौका कर्तव्य पूरा करना है।’ उन्होंने रानीका लिबास उतारा। और सफेद साड़ी पहनकर रानीने जो विलाप किया, उससे दसों दिशाएँ रो उठीं। बड़ा कारुणिक दृश्य हुआ। उसने कहा- ‘मुझे रानीका कर्तव्य भी निभाना है, मौका कर्तव्य भी निभाना है।’ अपने हाथों ले जाकर उसका अग्नि संस्कार किया। उसकी छोटी सौ समाधि नर्मदानदीके किनारे मध्यप्रदेशके महेश्वर स्थानपर आज भी है। यह रानी थी अहल्याबाई, जिसने गीताके सिद्धान्तके अनुसार अपने-पराये में कोई भेद नहीं किया। न्यायमें सब समान हैं।
Rani Ahalyabai
That queen was Ahalyabai. that
Ahalyabai got a son by doing many sacrifices etc. The son was young. Rani Ahalyabai’s husband died in the third battle of Panipat. She wanted to commit sati with her husband. But everyone said, ‘You have got a son by doing so many sacrifices etc. Don’t give up your body to protect this son.’ He accepted. Became the guardian of the son. She was very pious. She was ethical. Ruled the state according to religion. The son has become young. Became eligible for the coronation. Then suddenly a strange incident happened. The complaint reached the queen’s court. Oh pious queen! Your young son has committed such a sin, for which any of the people would have committed such a sin-the sin of characterlessness, the sin of promiscuity, the sin of sexual promiscuity, you would have given him the death penalty. The queen said – ‘Good!’ The queen inquired. See, the allegation is true. The queen ordered ‘Go, catch my only young son, whose coronation is going to happen in a few days, and get him crushed under the elephant’s feet.’
All the people got up, the ministers started crying. The queen’s son said – ‘No. No one is alien to us in justice. All the people are my children. All the subjects are mine. The justice which is for the subjects, the same justice is for him also. He got his son crushed under the elephant’s feet despite the cries of all the subjects. Didn’t shed a tear. People were crying. And, when he passed away. The body became calm. Then the queen said – ‘Good people! I have done what was my duty as a queen. Now I have to fulfill my duty. He took off the queen’s dress. And the ten directions wept because of the queen’s lamentation wearing a white sari. It was a very sad scene. She said- ‘I have to perform the duty of the queen as well as the duty of the occasion.’ Taking it in his hands, cremated it. His small hundred mausoleum is still there at Maheshwar place in Madhya Pradesh on the banks of river Narmada. This queen was Ahalya Bai, who did not make any distinction between herself and others according to the principle of Gita. All are equal in justice.