विपन्न विधवाकी मदद
श्री ईश्वरचन्द्र विद्यासागर वस्तुतः विद्याके सागर थे। उनके जीवनकी एक अनुकरणीय घटना है। उन्हें पता चला कि मोहल्लेमें किसी व्यक्तिकी मृत्यु हो गयी है, जो ईमानदार था, सच्चा था, किसीको कष्ट नहीं देता था, किसीके आगे हाथ नहीं फैलाया था। उसके घरमें पत्नी एवं दो छोटे-छोटे बच्चे रह गये हैं। आज अन्तिम क्रियाके लिये भी पैसा नहीं था। किसीने जाकर ईश्वरचन्द्र विद्यासागरको बतलाया। वे सोचने लगे-कैसे जाऊँ? किसीकी भलाई करना पड़े और झूठ बोलूँगा तो भगवान् माफ कर देंगे। यह झूठ एक हजार सचके बराबर बन जायगा। यह सोचकर वे उस परिवारमें गये। हाथ जोड़कर बोले ‘माफ करना।’ परिवारने पूछा तो कहा, ‘बड़ी भूल हो गयी। जबतक वे जिन्दा रहे, मैं उनका कर्जा नहीं दे पाया। आज वे नहीं हैं। मेरे मनका लालच टूट गया। अब मैं पैसे लेकर आ गया हूँ। मुझे माफ कर दो बहन! थोड़ी-सी राशि लेकर आया हूँ, बाकी समय-समयपर चुका दूँगा।’
उस महिलाके पास पैसे रखकर चले गये। पैसोंको जब महिलाने हाथमें लिया तो उसे लगा कि भगवान ही मेरे घर आकर मेरी सहायता कर गये। बाहर खड़े विद्यासागर मन ही मन कहने लगे- ‘प्रभु! आपने मेरी पूजाके फूल स्वीकार कर लिये।’ ऐसा कह वह आकाशकी ओर देखने लगे। आपकी बड़ी कृपा हुई । वे दो-तीन वर्षतक इसी तरह सहायता करते रहे।
महिलासे किसी व्यक्तिने पूछा- ‘परिवारका खर्च कैसे चलता है?’ महिला बोली- पता नहीं, पतिदेवने किसीसे लेन-देन किया था। किसीको पैसे दिये थे। वह आदमी आता है, पैसा चुका जाता है। कहता है कि थोड़ा-सा उधार बाकी है। महिला बोली ‘समझमें नहीं आता। पतिदेवने ऐसी बात हमसे कभी नहीं कही कि कोई लेन-देन था। देनेवाला आता है, चुपचाप दे जाता है। एक मिनट ठहरता है, हाथ जोड़ता है एवं चला जाता है। उसके बाद कभी हमारा हाल नहीं पूछता।’ ‘कैसी शकल है?’ ‘ऐसी ?’ ‘कहीं उसका नाम ईश्वरचन्द्र विद्यासागर तो नहीं ?’ महिला बोली- ‘ऐसा ही नाम है।’ वह व्यक्ति बोला ‘उसकी रिश्तेदारी हर परिवारमें है, हर गरीबके साथ लेन-देन है, किसीको दुखी देखता है, उससे लेन देन करने लग जाता है।’ [ श्रीमती संगीताजी पटेल ]
poor widow help
Shri Ishwarchandra Vidyasagar was literally an ocean of knowledge. There is an exemplary incident in his life. They came to know that some person has died in the locality, who was honest, truthful, did not harm anyone, did not spread his hand in front of anyone. He is survived by his wife and two small children. Today there was no money even for the last rites. Someone went and told Ishwarchandra Vidyasagar. They started thinking – how to go? If I have to do good to someone and tell a lie, then God will forgive. This lie will become equal to a thousand truths. Thinking this, he went to that family. With folded hands, he said ‘I’m sorry.’ When the family asked, he said, ‘It was a big mistake. As long as he was alive, I could not repay his loan. Today they are not. Greed broke my mind. Now I have come with the money. I’m sorry sister! I have brought a small amount, I will pay the rest from time to time.’
Leaving the money with that woman, he left. When the woman took the money in her hand, she felt that God himself had come to my house and helped me. Vidyasagar standing outside started saying in his heart – ‘Lord! You accepted the flowers of my worship. Saying this he started looking at the sky. You have been greatly blessed. He continued to help like this for two-three years.
Someone asked the woman- ‘How does the family’s expenses go?’ The woman said – Don’t know, the husband had made a transaction with someone. Gave money to someone. The man comes, the money is paid. He says that there is a little debt left. The woman said, ‘I don’t understand. Husband never told us that there was any transaction. The giver comes, gives quietly. Stops for a minute, folds hands and leaves. After that never asks about our condition. ‘How’s your face?’ ‘Such ?’ ‘Isn’t his name Ishwarchandra Vidyasagar?’ The woman said – ‘Such is the name.’ The person said, ‘He has kinship in every family, he deals with every poor, sees someone sad, starts dealing with him.’ [Mrs Sangeetaji Patel]