वृद्धका अनुभव
एक राजाने अपने राज्यमें यह कानून लागू कर रखा था कि सत्तर वर्षकी आयु पूरी हो जानेपर प्रत्येक बुजुर्ग माता-पिताको जंगलमें छोड़ दिया जाय। जो परिवार ऐसा नहीं करेगा, उसे मृत्यु दण्ड दिया जायगा। एक बार एक लड़का अपनी बुजुर्ग माताको जंगलमें छोड़ने जा रहा था। अपने कन्धेपर माताको बैठाकर झाड़ोंके बीच जंगलमें चल रहा था। माता झाड़ोंसे सूखी लकड़ी तोड़-तोड़कर जमीनमें डालती जा रही थी। लड़केने पूछा- ‘माँ! ऐसा क्यों कर रही हो?’ माँने स्नेहपूर्वक उत्तर दिया- ‘तू घोर जंगलमें लौटते समय रास्ता न भटक जाय और आसानीसे घर पहुँच इसलिये ऐसा कर रही हूँ।’ इस बातसे लड़का अत्यन्त प्रभावित हुआ। माँके साथ ऐसा व्यवहार करनेपर भी माँ पुत्रके प्रति इतना प्रेम रखती है। वह माँको लेकर वापस घर आया। जमीनमें गड्ढा खोदकर गुफा बनाकर उसमें माँको रख दिया, ताकि किसीको भी पता नहीं चल सके। प्रतिदिन वह गुफामें जाकर माँकी सेवा करता, भोजन कराता और जरूरतकी सभी वस्तुएँ उपलब्ध कराता रहता था।
एक बार दूसरे देशने उनके देशपर आक्रमण कर दिया। आक्रमण करनेवाले देशके राजाने कहा- ‘दो बातोंका सही उत्तर दे दिया जाय तो उस देशके लोगोंको सजा नहीं दी जायगी और आक्रमण करनेवाला राजा लोगोंको मुक्त कर देगा तथा राज्यका अस्तित्व यथावत् बहाल कर दिया जायगा।’ आक्रमणकारी राजाने दो समस्याएँ रखीं- ‘एक शीशेकी हाँडीमें कद्दू भर दो।’
उक्त लड़केने गुफामें जाकर माँसे पूछा, तो माँने बतलाया कि ‘हाँडीमें पानी भर दो और उसमें कद्दूके बीज डाल दो।’ लड़केने ऐसा ही किया। थोड़े ही दिनों में शीशेकी हाँडीमें कद्दू तैयार हो गया। यह देखकर राजा (जिसके राज्यपर आक्रमण हुआ था) बड़ा प्रसन्न हुआ।
दूसरी समस्या यह थी ‘एक समान दो गायें खड़ी कर दी गयीं और पूछा कि ‘बताओ इनमें कौन माता है, कौन बेटी है ?’ दोनों गायें भूखी थीं। वह लड़का फिर गुफामें अपनी मौके पास इस समस्याका समाधान पूछने गया। माँने समाधान बताया कि दोनों गायोंको एक साथ घास डालो – माँ बेटीको पहले घास खाते हुए देखेगी तभी स्वयं खायेगी। अर्थात् बेटीके पहले माँ घास नहीं खायेगी। पता चल जायगा कि कौन-सी गाय माँ है, और कौन गाय बेटी।’
लड़केने ऐसा ही किया। माँ-बेटीका सही पता लग गया। राजा अत्यन्त प्रसन्न हुआ। उसने लड़केसे पूछा- ‘तूने कैसे पता लगाया ?’ लड़केने राजासे कहा कि यदि आप मुझे अभयदान दें तो मैं यह बात आपको बता सकता हूँ।’ राजाने उसे अभयदान देनेका वचन दिया। लड़केने बताया कि ‘मैंने अपनी माँको जंगलमें छोड़नेके बजाय जमीनमें गुफा बनाकर रखा था। उसीसे इन दोनों समस्याओंका समाधान कराया।’
राजाको बड़ा पश्चात्ताप हुआ और उसे यह महसूस हुआ कि बुजुर्ग लोग कितने महत्त्वके होते हैं। तुरंत राजाने अपना कानून बदला और आदेश जारी किया कि सभी लोग जंगलमें छोड़े हुए वृद्ध लोगोंको घर वापस ले आयें, अब कोई भी व्यक्ति अपने वृद्ध जंगलमें नहीं छोड़ेगा और उनकी सब प्रकारसे सेवा करेगा।
इस प्रकार एक बुजुर्गके अनुभवसे राजाका राज्य बच गया और सारी प्रजा सुखी हो गयी। घर परिवार, समाज और राष्ट्रके लिये बुजुर्गोंका अनुभव बड़े कामका होता है। वे हमारे लिये भार नहीं बल्कि पतवार हैं, जो हमारी जीवन-नैयाको संकटमें भी सुगमतासे पार लगा सकते हैं।
वृद्धका अनुभव
एक राजाने अपने राज्यमें यह कानून लागू कर रखा था कि सत्तर वर्षकी आयु पूरी हो जानेपर प्रत्येक बुजुर्ग माता-पिताको जंगलमें छोड़ दिया जाय। जो परिवार ऐसा नहीं करेगा, उसे मृत्यु दण्ड दिया जायगा। एक बार एक लड़का अपनी बुजुर्ग माताको जंगलमें छोड़ने जा रहा था। अपने कन्धेपर माताको बैठाकर झाड़ोंके बीच जंगलमें चल रहा था। माता झाड़ोंसे सूखी लकड़ी तोड़-तोड़कर जमीनमें डालती जा रही थी। लड़केने पूछा- ‘माँ! ऐसा क्यों कर रही हो?’ माँने स्नेहपूर्वक उत्तर दिया- ‘तू घोर जंगलमें लौटते समय रास्ता न भटक जाय और आसानीसे घर पहुँच इसलिये ऐसा कर रही हूँ।’ इस बातसे लड़का अत्यन्त प्रभावित हुआ। माँके साथ ऐसा व्यवहार करनेपर भी माँ पुत्रके प्रति इतना प्रेम रखती है। वह माँको लेकर वापस घर आया। जमीनमें गड्ढा खोदकर गुफा बनाकर उसमें माँको रख दिया, ताकि किसीको भी पता नहीं चल सके। प्रतिदिन वह गुफामें जाकर माँकी सेवा करता, भोजन कराता और जरूरतकी सभी वस्तुएँ उपलब्ध कराता रहता था।
एक बार दूसरे देशने उनके देशपर आक्रमण कर दिया। आक्रमण करनेवाले देशके राजाने कहा- ‘दो बातोंका सही उत्तर दे दिया जाय तो उस देशके लोगोंको सजा नहीं दी जायगी और आक्रमण करनेवाला राजा लोगोंको मुक्त कर देगा तथा राज्यका अस्तित्व यथावत् बहाल कर दिया जायगा।’ आक्रमणकारी राजाने दो समस्याएँ रखीं- ‘एक शीशेकी हाँडीमें कद्दू भर दो।’
उक्त लड़केने गुफामें जाकर माँसे पूछा, तो माँने बतलाया कि ‘हाँडीमें पानी भर दो और उसमें कद्दूके बीज डाल दो।’ लड़केने ऐसा ही किया। थोड़े ही दिनों में शीशेकी हाँडीमें कद्दू तैयार हो गया। यह देखकर राजा (जिसके राज्यपर आक्रमण हुआ था) बड़ा प्रसन्न हुआ।
दूसरी समस्या यह थी ‘एक समान दो गायें खड़ी कर दी गयीं और पूछा कि ‘बताओ इनमें कौन माता है, कौन बेटी है ?’ दोनों गायें भूखी थीं। वह लड़का फिर गुफामें अपनी मौके पास इस समस्याका समाधान पूछने गया। माँने समाधान बताया कि दोनों गायोंको एक साथ घास डालो – माँ बेटीको पहले घास खाते हुए देखेगी तभी स्वयं खायेगी। अर्थात् बेटीके पहले माँ घास नहीं खायेगी। पता चल जायगा कि कौन-सी गाय माँ है, और कौन गाय बेटी।’
लड़केने ऐसा ही किया। माँ-बेटीका सही पता लग गया। राजा अत्यन्त प्रसन्न हुआ। उसने लड़केसे पूछा- ‘तूने कैसे पता लगाया ?’ लड़केने राजासे कहा कि यदि आप मुझे अभयदान दें तो मैं यह बात आपको बता सकता हूँ।’ राजाने उसे अभयदान देनेका वचन दिया। लड़केने बताया कि ‘मैंने अपनी माँको जंगलमें छोड़नेके बजाय जमीनमें गुफा बनाकर रखा था। उसीसे इन दोनों समस्याओंका समाधान कराया।’
राजाको बड़ा पश्चात्ताप हुआ और उसे यह महसूस हुआ कि बुजुर्ग लोग कितने महत्त्वके होते हैं। तुरंत राजाने अपना कानून बदला और आदेश जारी किया कि सभी लोग जंगलमें छोड़े हुए वृद्ध लोगोंको घर वापस ले आयें, अब कोई भी व्यक्ति अपने वृद्ध जंगलमें नहीं छोड़ेगा और उनकी सब प्रकारसे सेवा करेगा।
इस प्रकार एक बुजुर्गके अनुभवसे राजाका राज्य बच गया और सारी प्रजा सुखी हो गयी। घर परिवार, समाज और राष्ट्रके लिये बुजुर्गोंका अनुभव बड़े कामका होता है। वे हमारे लिये भार नहीं बल्कि पतवार हैं, जो हमारी जीवन-नैयाको संकटमें भी सुगमतासे पार लगा सकते हैं।