प्राचीन कालमें एक परम शिवभक्त राजा था। एक दिन उसे कल्पना सूझी कि आगामी सोमवारको अपने इष्टदेव शंकरका हौद दूधसे लबालब भर दिया जाय । हौद काफी गहरा और चौड़ा था। उसने प्रधानसे मन्त्रणा की। प्रधानने लगे हाथ डुग्गी पिटवा दी- ‘सोमवारकोसारे ग्वाले शहरका पूरा दूध लेकर मन्दिर चले आयें। हौद भरना है, राजाकी आज्ञा है । जो इसका उल्लङ्घन करेगा, वह कठोर दण्डका भागी होगा।’
सारे ग्वाले घबरा उठे। उस दिन किसीने घूँटभर भी दूध अपने बच्चोंको नहीं पिलाया। कुछने तोबछड़ोंको गायको मुँह लगाते ही छुड़ा लिया।
दूध आया और हौदमें छोड़ा गया। हौद थोड़ा खाली ही रह गया। राजा बड़ी चिन्तामें पड़ गया। इसी बीच एक बूढ़ी आयी । भक्ति भावसे उसने लुटियाभर दूध चढ़ाकर भगवान्से कहा कि ‘शहरभरके दूधके आगे मेरी लुटियाकी क्या बिसात! फिर भी भगवन्! बुढ़ियाकी श्रद्धाभरी ये दो बूँदें स्वीकार करो।’
दूध चढ़ाकर बुढ़िया बाहर निकल आयी। सभीने देखा – भगवान्का हौद एकाएक भर गया । उन्होंने राजासे जाकर कहा। राजाके आश्चर्यका ठिकाना न रहा।
दूसरे सोमवारको राजाने फिर वैसा ही आदेश दिया और गाँवभरका दूध महादेवके हौदमें छोड़ा गया, फिर भी हौद खाली ही रहा। पहलेकी तरह बुढ़िया आयी और उसकी लुटियाका दूध छोड़ते ही हौद भर गया । राजसेवकोंने राजाको जाकर वृत्तान्त सुनाया।
राजाका आश्चर्य उत्तरोत्तर बढ़ता गया। अबकी बार उसने स्वयं उपस्थित होकर रहस्यका पता लगानेका निश्चय किया।
तीसरा सोमवार आया और पुनः गाँवभरका दूध राजाने अपने सामने हौदमें डलवाया। हौद खाली हीरहा। इसी बीच बूढ़ी आयी और उसके लुटिया उड़ेलते ही हौद भर गया। बुढ़िया पूजा करके निकल गयी। राजा भी उसके पीछे हो लिया। कुछ दूर जानेके | बाद उसने बुढ़ियाका हाथ पकड़ा। वह काँपने लगी। राजाने अभय दिया और इसके रहस्यकी जिज्ञासा करते | हुए कहा—’बताओ क्या बात है, तुमने कौन-सा जादू कर दिया जो हौद एकाएक भर गया ?’
बुढ़िया ने कहा- ‘बेटा! जादू-वादू कुछ नहीं। घरके बाल-बच्चों, ग्वालबालों-सभीको पिलाकर बचे दूधमेंसे एक लुटिया लेकर मैं आती हूँ। सभीको तृप्त करके शेष दूध भगवान्को चढ़ाते ही वे प्रसन्न हो जाते, भावसे उसे ग्रहण करते हैं और हौद भर जाता है। किंतु तुम राजबलसे गाँवके सारे बाल-बच्चों, ग्वालबालों, रुग्ण-बूढ़ोंका पेट काटकर, उन्हें तड़पता रखकर सारा दूध अपने कब्जे में करते और उसे भगवान्को चढ़ाते हो तो उनकी आहसे भगवान् उसे ग्रहण नहीं करते। उतनेसे उनका पेट नहीं भरता। इसीलिये हौद खाली रह जाता है।’
राजाको अपनी भूल समझमें आयी। वह बुढ़ियाको प्रणाम करके लौट गया और ऐसी हरकतोंसे विरत हो गया।- प्राचीन कथाएँ
प्राचीन कालमें एक परम शिवभक्त राजा था। एक दिन उसे कल्पना सूझी कि आगामी सोमवारको अपने इष्टदेव शंकरका हौद दूधसे लबालब भर दिया जाय । हौद काफी गहरा और चौड़ा था। उसने प्रधानसे मन्त्रणा की। प्रधानने लगे हाथ डुग्गी पिटवा दी- ‘सोमवारकोसारे ग्वाले शहरका पूरा दूध लेकर मन्दिर चले आयें। हौद भरना है, राजाकी आज्ञा है । जो इसका उल्लङ्घन करेगा, वह कठोर दण्डका भागी होगा।’
सारे ग्वाले घबरा उठे। उस दिन किसीने घूँटभर भी दूध अपने बच्चोंको नहीं पिलाया। कुछने तोबछड़ोंको गायको मुँह लगाते ही छुड़ा लिया।
दूध आया और हौदमें छोड़ा गया। हौद थोड़ा खाली ही रह गया। राजा बड़ी चिन्तामें पड़ गया। इसी बीच एक बूढ़ी आयी । भक्ति भावसे उसने लुटियाभर दूध चढ़ाकर भगवान्से कहा कि ‘शहरभरके दूधके आगे मेरी लुटियाकी क्या बिसात! फिर भी भगवन्! बुढ़ियाकी श्रद्धाभरी ये दो बूँदें स्वीकार करो।’
दूध चढ़ाकर बुढ़िया बाहर निकल आयी। सभीने देखा – भगवान्का हौद एकाएक भर गया । उन्होंने राजासे जाकर कहा। राजाके आश्चर्यका ठिकाना न रहा।
दूसरे सोमवारको राजाने फिर वैसा ही आदेश दिया और गाँवभरका दूध महादेवके हौदमें छोड़ा गया, फिर भी हौद खाली ही रहा। पहलेकी तरह बुढ़िया आयी और उसकी लुटियाका दूध छोड़ते ही हौद भर गया । राजसेवकोंने राजाको जाकर वृत्तान्त सुनाया।
राजाका आश्चर्य उत्तरोत्तर बढ़ता गया। अबकी बार उसने स्वयं उपस्थित होकर रहस्यका पता लगानेका निश्चय किया।
तीसरा सोमवार आया और पुनः गाँवभरका दूध राजाने अपने सामने हौदमें डलवाया। हौद खाली हीरहा। इसी बीच बूढ़ी आयी और उसके लुटिया उड़ेलते ही हौद भर गया। बुढ़िया पूजा करके निकल गयी। राजा भी उसके पीछे हो लिया। कुछ दूर जानेके | बाद उसने बुढ़ियाका हाथ पकड़ा। वह काँपने लगी। राजाने अभय दिया और इसके रहस्यकी जिज्ञासा करते | हुए कहा—’बताओ क्या बात है, तुमने कौन-सा जादू कर दिया जो हौद एकाएक भर गया ?’
बुढ़िया ने कहा- ‘बेटा! जादू-वादू कुछ नहीं। घरके बाल-बच्चों, ग्वालबालों-सभीको पिलाकर बचे दूधमेंसे एक लुटिया लेकर मैं आती हूँ। सभीको तृप्त करके शेष दूध भगवान्को चढ़ाते ही वे प्रसन्न हो जाते, भावसे उसे ग्रहण करते हैं और हौद भर जाता है। किंतु तुम राजबलसे गाँवके सारे बाल-बच्चों, ग्वालबालों, रुग्ण-बूढ़ोंका पेट काटकर, उन्हें तड़पता रखकर सारा दूध अपने कब्जे में करते और उसे भगवान्को चढ़ाते हो तो उनकी आहसे भगवान् उसे ग्रहण नहीं करते। उतनेसे उनका पेट नहीं भरता। इसीलिये हौद खाली रह जाता है।’
राजाको अपनी भूल समझमें आयी। वह बुढ़ियाको प्रणाम करके लौट गया और ऐसी हरकतोंसे विरत हो गया।- प्राचीन कथाएँ