मानस के तीन (3) भाइयों

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1- बालि का भाई सुग्रीव…
2-रावण का भाई विभीषण…
3- राम का भाई भरत..

ये जीव की तीन दशाओं की तरह भी है….
विषयी,साधक, और सिद्ध-

सुग्रीव विषयी जीव है ,उसे केवल अपने स्वार्थ और सुख की चिन्ता है,वह अपने पुरूषार्थ से कुछ हासिल नही कर पाता ।निजी स्वार्थ के लिऐ अपने भाई को मरवाने मे उसे संकोच नही होता ।राम कृपा से सुख सम्पत्ति पाने के बाद राम काज भी भूल जाता है।संसार के विषयी लोग आज भी यही करते है।

मानस का दूसरा भाई विभीषण, साधक की तरह जीता है।सुबह उठता है तो,राम नाम तेहि सुमिरन कीन्हा।से दिन की शुरूआत करता है,साधु और विप्र को आदर देता है । घर को ही मन्दिर बनाकर पूजा पाठ करता है।अपने भाई रावण के हित की बात ही करता है,सत्मार्ग पर ले जाने का असफल प्रयास करता है ।राज्य पाने हेतु आतुर नही है,किन्तु साधकता का फल ,रामकृपा से पा जाता है।

तीसरा भाई,भरत जो सिद्ध है ,केवल और केवल
अपने भाई राम का ही सुख चाहता है।

जेहि बिधि प्रभु प्रसन्न मन होई,
करूना सागर कीजिये सोई ।

का भाव रखने मे ही खुश है।उसकी अपनी कोई सुख की कामना नही है।पिता से मिला राज्यसुख भोगने की ् आकांक्षा नही है। इसलिऐ राम जी भी ऐसै भाई को केवल प्यार नही करते बल्कि जपते है,इसलिऐ गोस्वामी जी कहते है,भरत सरिस को राम सनेही,जग जप राम राम जप जेही ।|| जय श्री राम जय हनुमान ||

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