प्रभु संकीर्तन 10

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हरि ॐ तत् सत् जय सच्चिदानंद

शब्द से अमूल्य अर्थ है।
अर्थ से अमूल्य भावार्थ है।
भावार्थ से अमूल्य गूढ़अर्थ,
गूढ़ अर्थ से अमूल्य लक्ष्य
लक्ष्य से लक्षाई
ठीक इसी तरह एक एक
कर्म बंधन नहीं
कर्म करने में आपका अपना भाव कैसा है।
भाव से भगवान रिझ जाते हैं। हमारे दिल में परमात्मा को जानने के लिए
भाव प्रबल होना चाहिए भाव जाग्रत होना ही अमूलय है। जिस दिन तुम्हारे भीतर भाव पैदा हो जाएगा तुम दूसरे ही दुनिया में होगे अगर तुम्हारे मन में संसार का भाव‌ है,तो तुम संसार में ही रह जाओगे
और अगर तुम्हारे मन में ईश्वर की ओर का भाव है तो
तुम एक दूसरे ही जगत आनंद धाम में प्रवेश कर जाओगे
इसलिए
जाकी रही भावना जैसी
ता देखी प्रभु मूर्त वैसी
ता देखी है
भाव सहित खोजहि जेहिं प्राणी
पाव भक्ति मणि सब सुख खानी

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