*अटूट विश्वास *

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मेरी बेटी की शादी थी और मैं कुछ दिनों की छुट्टी ले कर शादी के तमाम इंतजाम को देख रहा था !

उस दिन सफर से लौट कर मैं घर आया तो पत्नी ने आ कर एक लिफाफा मुझे पकड़ा दिया !

लिफाफा अनजाना था लेकिन प्रेषक का नाम देख कर मुझे एक आश्चर्यमिश्रित जिज्ञासा हुई !

‘अमर विश्वास’ एक ऐसा नाम जिसे मिले मुझे वर्षों बीत गए थे !

मैं ने लिफाफा खोला तो उस में 1 लाख डालर का चेक और एक चिट्ठी थी. इतनी बड़ी राशि वह भी मेरे नाम पर !

मैं ने जल्दी से चिट्ठी खोली और एक सांस में ही सारा पत्र पढ़ डाला । पत्र किसी परी कथा की तरह मुझे अचंभित कर गया. लिखा था –

आदरणीय सर, मैं एक छोटी सी भेंट आप को दे रहा हूँ मुझे नहीं लगता कि आप के एहसानों का कर्ज मैं कभी उतार पाऊंगा !

ये उपहार मेरी अनदेखी बहन के लिए है. घर पर सभी को मेरा प्रणाम !

आप का, अमर !

मेरी आंखों में वर्षों पुराने दिन सहसा किसी चलचित्र की तरह तैर गए !

एक दिन मैं चंडीगढ़ में टहलते हुए एक किताबों की दुकान पर अपनी मनपसंद पत्रिकाएं उलटपलट रहा था !

कि मेरी नजर बाहर पुस्तकों के एक छोटे से ढेर के पास खड़े एक लड़के पर पड़ी !

वह पुस्तक की दुकान में घुसते हर संभ्रांत व्यक्ति से कुछ अनुनयविनय करता और कोई प्रतिक्रिया न मिलने पर वापस अपनी जगह पर जा कर खड़ा हो जाता !

मैं काफी देर तक मूकदर्शक की तरह यह नजारा देखता रहा !

पहली नजर में यह फुटपाथ पर दुकान लगाने वालों द्वारा की जाने वाली सामान्य सी व्यवस्था लगी, लेकिन उस लड़के के चेहरे की निराशा सामान्य नहीं थी !

वह हर बार नई आशा के साथ अपनी कोशिश करता, फिर वही निराशा !

मैं काफी देर तक उसे देखने के बाद अपनी उत्सुकता दबा नहीं पाया और उस लड़के के पास जा कर खड़ा हो गया !

वह लड़का कुछ सामान्य सी विज्ञान की पुस्तकें बेच रहा था !

मुझे देख कर उस में फिर उम्मीद का संचार हुआ और बड़ी ऊर्जा के साथ उस ने मुझे पुस्तकें दिखानी शुरू कीं !

मैं ने उस लड़के को ध्यान से देखा. साफसुथरा, चेहरे पर आत्मविश्वास लेकिन पहनावा बहुत ही साधारण !

ठंड का मौसम था और वह केवल एक हलका सा स्वेटर पहने हुए था !

पुस्तकें मेरे किसी काम की नहीं थीं फिर भी मैं ने जैसे किसी सम्मोहन से बंध कर उस से पूछा – ‘बच्चे, ये सारी पुस्तकें कितने की हैं ?’

‘आप कितना दे सकते हैं, सर ?’

अरे, कुछ तुम ने सोचा तो होगा !
‘आप जो दे देंगे,’ – लड़का थोड़ा निराश हो कर बोला !

‘तुम्हें कितना चाहिए ?’

उस लड़के ने अब यह समझना शुरू कर दिया कि मैं अपना समय उस के साथ गुजार रहा हूँ !

‘5 हजार रुपए,’ वह लड़का कुछ कड़वाहट में बोला !

‘इन पुस्तकों का कोई 500 भी दे दे तो बहुत है,’ – मैं उसे दुखी नहीं करना चाहता था फिर भी अनायास मुंह से निकल गया !

अब उस लड़के का चेहरा देखने लायक था. जैसे ढेर सारी निराशा किसी ने उस के चेहरे पर उड़ेल दी हो !

मुझे अब अपने कहे पर पछतावा हुआ. मैं ने अपना एक हाथ उस के कंधे पर रखा !

और उस से सांत्वना भरे शब्दों में फिर पूछा – ‘देखो बेटे, मुझे तुम पुस्तक बेचने वाले तो नहीं लगते, क्या बात है. साफसाफ बताओ कि क्या जरूरत है ?’

वह लड़का तब जैसे फूट पड़ा. शायद काफी समय निराशा का उतारचढ़ाव अब उस के बरदाश्त के बाहर था !

‘सर, मैं 10+2 कर चुका हूं. मेरे पिता एक छोटे से रेस्तरां में काम करते हैं !

मेरा मेडिकल में चयन हो चुका है. अब उस में प्रवेश के लिए मुझे पैसे की जरूरत है !

कुछ तो मेरे पिताजी देने के लिए तैयार हैं, कुछ का इंतजाम वह अभी नहीं कर सकते,’ लड़के ने एक ही सांस में बड़ी अच्छी अंगरेजी में कहा !

‘तुम्हारा नाम क्या है ?’ मैं ने मंत्रमुग्ध हो कर पूछा !
.
‘अमर विश्वास !’

‘तुम विश्वास हो और दिल छोटा करते हो. कितना पैसा चाहिए ?’

‘5 हजार,’ – अब की बार उस के स्वर में दीनता थी !

‘अगर मैं तुम्हें यह रकम दे दूं तो क्या मुझे वापस कर पाओगे ? इन पुस्तकों की इतनी कीमत तो है नहीं,’ इस बार मैं ने थोड़ा हंस कर पूछा !

‘सर, आप ने ही तो कहा कि मैं विश्वास हूं. आप मुझ पर विश्वास कर सकते हैं !

मैं पिछले 4 दिन से यहां आता हूं, आप पहले आदमी हैं जिस ने इतना पूछा !

अगर पैसे का इंतजाम नहीं हो पाया तो मैं भी आप को किसी होटल में कपप्लेटें धोता हुआ मिलूंगा,’ – उस के स्वर में अपने भविष्य के डूबने की आशंका थी !

उस के स्वर में जाने क्या बात थी जो मेरे जेहन में उस के लिए सहयोग की भावना तैरने लगी !

मस्तिष्क उसे एक जालसाज से ज्यादा कुछ मानने को तैयार नहीं था, जबकि दिल में उस की बात को स्वीकार करने का स्वर उठने लगा था !

आखिर में दिल जीत गया. मैं ने अपने पर्स से 5 हजार रुपए निकाले, जिन को मैं शेयर मार्किट में निवेश करने की सोच रहा था, उसे पकड़ा दिए !

वैसे इतने रुपए तो मेरे लिए भी माने रखते थे, लेकिन न जाने किस मोह ने मुझ से वह पैसे निकलवा लिए !

‘देखो बेटे ! मैं नहीं जानता कि तुम्हारी बातों में, तुम्हारी इच्छाशक्ति में कितना दम है, लेकिन मेरा दिल कहता है कि तुम्हारी मदद करनी चाहिए, इसीलिए कर रहा हूँ !

तुम से 4-5 साल छोटी मेरी बेटी भी है मिनी. सोचूंगा उस के लिए ही कोई खिलौना खरीद लिया,’ – मैं ने पैसे अमर की तरफ बढ़ाते हुए कहा !

अमर हतप्रभ था. शायद उसे यकीन नहीं आ रहा था. उस की आंखों में आंसू तैर आए !

उस ने मेरे पैर छुए तो आंखों से निकली दो बूंदें मेरे पैरों को चूम गईं !

‘ये पुस्तकें मैं आप की गाड़ी में रख दूं ?’

‘कोई जरूरत नहीं. इन्हें तुम अपने पास रखो. यह मेरा कार्ड है, जब भी कोई जरूरत हो तो मुझे बताना !

वह मूर्ति बन कर खड़ा रहा और मैं ने उस का कंधा थपथपाया, कार स्टार्ट कर आगे बढ़ा दी !

कार को चलाते हुए वह घटना मेरे दिमाग में घूम रही थी और मैं अपने खेले जुए के बारे में सोच रहा था, जिस में अनिश्चितता ही ज्यादा थी !

कोई दूसरा सुनेगा तो मुझे एक भावुक मूर्ख से ज्यादा कुछ नहीं समझेगा. अत: मैं ने यह घटना किसी को न बताने का फैसला किया !

दिन गुजरते गए. अमर ने अपने मेडिकल में दाखिले की सूचना मुझे एक पत्र के माध्यम से दी !

मुझे अपनी मूर्खता में कुछ मानवता नजर आई. एक अनजान सी शक्ति में या कहें दिल में अंदर बैठे मानव ने मुझे प्रेरित किया कि मैं हजार 2 हजार रुपए उस के पते पर फिर भेज दूं !

भावनाएं जीतीं और मैं ने अपनी मूर्खता फिर दोहराई !

दिन हवा होते गए. उस का संक्षिप्त सा पत्र आता जिस में 4 लाइनें होतीं !

2 मेरे लिए, एक अपनी पढ़ाई पर और एक मिनी के लिए, जिसे वह अपनी बहन बोलता था !

मैं अपनी मूर्खता दोहराता और उसे भूल जाता. मैं ने कभी चेष्टा भी नहीं की कि उस के पास जा क र अपने पैसे का उपयोग देखूं, न कभी वह मेरे घर आया !

कुछ साल तक यही क्रम चलता रहा. एक दिन उस का पत्र आया कि वह उच्च शिक्षा के लिए आस्ट्रेलिया जा रहा है !
छात्रवृत्तियों के बारे में भी बताया था और एक लाइन मिनी के लिए लिखना वह अब भी नहीं भूला !

मुझे अपनी उस मूर्खता पर दूसरी बार फख्र हुआ, बिना उस पत्र की सचाई जाने !

समय पंख लगा कर उड़ता रहा. अमर ने अपनी शादी का कार्ड भेजा. वह शायद आस्ट्रेलिया में ही बसने के विचार में था !

मिनी भी अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी थी. एक बड़े परिवार में उस का रिश्ता तय हुआ था !

अब मुझे मिनी की शादी लड़के वालों की हैसियत के हिसाब से करनी थी !

एक सरकारी उपक्रम का बड़ा अफसर कागजी शेर ही होता है. शादी के प्रबंध के लिए ढेर सारे पैसे का इंतजाम…उधेड़बुन…और अब वह चेक ?

मैं वापस अपनी दुनिया में लौट आया. मैं ने अमर को एक बार फिर याद किया और मिनी की शादी का एक कार्ड अमर को भी भेज दिया !

शादी की गहमागहमी चल रही थी. मैं और मेरी पत्नी व्यवस्थाओं में व्यस्त थे और मिनी अपनी सहेलियों में !

एक बड़ी सी गाड़ी पोर्च में आ कर रुकी !

एक संभ्रांत से शख्स के लिए ड्राइवर ने गाड़ी का गेट खोला तो उस शख्स के साथ उस की पत्नी जिस की गोद में एक बच्चा था, भी गाड़ी से बाहर निकले !

मैं अपने दरवाजे पर जा कर खड़ा हुआ तो लगा कि इस व्यक्ति को पहले भी कहीं देखा है. उस ने आ कर मेरी पत्नी और मेरे पैर छुए !

‘‘सर, मैं अमर…’’ – वह बड़ी श्रद्धा से बोला !

मेरी पत्नी अचंभित सी खड़ी थी. मैं ने बड़े गर्व से उसे सीने से लगा लिया !

उस का बेटा मेरी पत्नी की गोद में घर सा अनुभव कर रहा था. मिनी अब भी संशय में थी !

अमर अपने साथ ढेर सारे उपहार ले कर आया था. मिनी को उस ने बड़ी आत्मीयता से गले लगाया. मिनी भाई पा कर बड़ी खुश थी !

अमर शादी में एक बड़े भाई की रस्म हर तरह से निभाने में लगा रहा !

उस ने न तो कोई बड़ी जिम्मेदारी मुझ पर डाली और न ही मेरे चाहते हुए मुझे एक भी पैसा खर्च करने दिया !

उस के भारत प्रवास के दिन जैसे पंख लगा कर उड़ गए !

इस बार अमर जब आस्ट्रेलिया वापस लौटा तो हवाई अड्डे पर उस को विदा करते हुए न केवल मेरी बल्कि मेरी पत्नी, मिनी सभी की आंखें नम थीं !

हवाई जहाज ऊंचा और ऊंचा आकाश को छूने चल दिया और उसी के साथसाथ मेरा विश्वास भी आसमान छू रहा था !

मैं अपनी मूर्खता पर एक बार फिर गर्वित था और सोच रहा था कि इस नश्वर संसार को चलाने वाला कोई भगवान नहीं हमारा विश्वास है



My daughter was getting married and I was looking after all the arrangements for the wedding after taking a few days leave.

That day, when I came home after traveling, my wife came and handed me an envelope.

The envelope was unknown but seeing the name of the sender, I got a mixed curiosity!

‘Amar Vishwas’ is such a name that I got after years!

When I opened the envelope, it contained a check for $100,000 and a letter. Such a huge amount, that too in my name!

I quickly opened the letter and read the entire letter in one breath. The letter surprised me like a fairy tale. wrote –

Respected Sir, I am giving you a small gift, I do not think that I will ever be able to repay the debt of your favors!

This gift is for my unseen sister. Greetings to everyone at home!

Yours, Immortal!

Years old days suddenly floated in my eyes like a movie!

One day while strolling in Chandigarh, I was flipping through my favorite magazines at a bookstore!

That my eyes fell on a boy standing outside near a small pile of books!

He used to do some persuasion with every elite person entering the book shop and on getting no response, he would go back to his place and stand!

I kept watching this scene like a mute spectator for a long time!

At first glance, it seemed like a normal arrangement by the vendors on the pavement, but the disappointment on the boy’s face was not normal!

He tries his best every time with new hope, then the same disappointment!

I couldn’t suppress my curiosity after seeing him for a long time and went and stood near that boy!

That boy was selling some simple science books!

Seeing me, there was hope in him again and with great energy he started showing me the books.

I looked at that boy carefully. Neat, confident on face but very simple in dress!

It was cold weather and he was only wearing a light sweater!

The books were of no use to me, yet I asked him as if bound by some hypnosis – ‘Child, how much are all these books?’

‘How much can you give, sir?’

Hey, you must have thought of something! ‘What you will give,’ – the boy said a little disappointed!

‘How much do you want?’

That boy has now started to understand that I am spending my time with him!

‘5 thousand rupees,’ the boy said somewhat bitterly.

‘Even if someone gives 500 of these books, it is enough,’ – I did not want to hurt him, yet it came out of my mouth involuntarily!

Now that boy’s face was worth seeing. As if someone has poured a lot of disappointment on his face!

I regret my words now. I put my one hand on his shoulder.

And again asked him in consoling words – ‘Look son, I don’t see you as a book seller, what’s the matter. Tell me clearly what is needed?

That boy burst into tears. Perhaps the ups and downs of despair for a long time was beyond his tolerance!

Sir, I have done 10+2. My father works in a small restaurant.

I have been selected in medical. Now I need money to enter it!

Some my father is ready to give, some he cannot arrange right now,’ the boy said in a single breath in very good English!

‘What is your name?’ I asked mesmerized! , ‘Amar Vishwas!’

‘You are confident and you make the heart small. How much money is required?

‘5 thousand,’ – this time there was humility in his voice.

‘If I give you this money, will you be able to return it? Don’t these books cost so much,’ this time I asked with a little laugh!

Sir, you only said that I am a believer. you can believe me !

I come here since last 4 days, you are the first person who asked so much!

If the money is not arranged, I will also find you washing the cups and plates in a hotel,’ – there was a possibility of drowning in his voice!

Don’t know what was in his voice that the feeling of cooperation for him started floating in my mind!

The brain was not ready to accept him as anything more than a fraud, while the voice of accepting his words started rising in the heart!

In the end the heart won. I took out 5 thousand rupees from my purse, caught the person whom I was thinking of investing in the share market!

By the way, this much money was supposed to be for me also, but don’t know which fascination made me withdraw that money!

Look son! I don’t know how much strength is there in your words, your willpower, but my heart says that you should be helped, that’s why I am doing it!

My daughter Mini is also 4-5 years younger than you. Will think buy a toy for him only,’ – I said while extending the money towards Amar!

Amar was bewildered. Maybe he couldn’t believe it. Tears welled up in his eyes!

When he touched my feet, two drops came out of his eyes and kissed my feet.

‘Shall I put these books in your car?’

‘No need. Keep them with you. This is my card, whenever you need anything just let me know!

He stood like a statue and I patted his shoulder, started the car and took it forward.

While driving the car, the incident was playing in my mind and I was thinking about the gamble I had played, which was full of uncertainty!

If someone else listens, he will consider me nothing more than a sentimental fool. So I decided not to tell this incident to anyone.

Days passed by. Amar informed me about his medical admission through a letter.

I could see some humanity in my stupidity. An unknown power or rather the human sitting inside my heart inspired me to send 1000 to 2000 rupees to his address again!

Emotions won and I repeated my stupidity again!

The days got windy. His short letter would come in which there would be 4 lines!

2 for me, one for his studies and one for Mini, whom he used to call his sister!

I would repeat my folly and forget it. I never even tried to go to him to see the use of my money, nor did he ever come to my house!

This went on for a few years. One day his letter came that he is going to Australia for higher education. Told about the scholarships too and he still didn’t forget to write a line for Mini!

I was proud of my stupidity for the second time, without knowing the truth of that letter!

Time kept flying with wings. Amar sent his wedding card. He was probably thinking of settling in Australia.

Mini had also completed her studies. His relationship was fixed in a big family.

Now I had to marry Mini according to the status of the boys.

The big officer of a government undertaking is only a paper tiger. Arrangement of lots of money for the arrangement of marriage… Udhedbun… and now that cheque?

I returned back to my world. I remembered Amar once again and sent a card of Mini’s wedding to Amar too!

The heat of marriage was going on. My wife and I were busy with the arrangements and Mini with her friends.

A big car stopped at the porch!

When the driver opened the car gate for an elite person, his wife who had a child in her lap also got out of the car along with that person.

When I went to my door and stood, I felt that I have seen this person somewhere before. He came and touched my wife and my feet!

“Sir, I am immortal…” – he said with great devotion!

My wife was standing in astonishment. I proudly hugged him!

His son was feeling at home in my wife’s lap. Mini was still in doubt!

Amar had brought many gifts with him. He hugged Mini very intimately. Mini was very happy to have a brother!

Amar was engaged in performing the rituals of an elder brother in marriage in every way.

He neither put any big responsibility on me nor allowed me to spend even a single penny as per my wish.

The days of his stay in India flew like wings!

This time when Amar returned to Australia, seeing him off at the airport, not only mine but also my wife, Mini’s eyes were moist!

The airplane went higher and higher touching the sky and along with that my faith was also touching the sky!

I was once again proud of my foolishness and thinking that there is no god to run this mortal world we believe

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