प्रभु का रंग

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यह प्रसंग एक राजा की जिन्दगी का है, उसका नाम था राजा पीपा। उसने दुनिया में जो कुछ इन्सान पाना चाहता है, वो सब कुछ पाया था, महल, हीरे-जवाहरात, नौकर-चाकर, सब उसका आदेश मानते थे।

इतना सब कुछ पाने के बावजूद अचानक एक दिन उसे लगा कि कुछ कमी है, कुछ ऐसा है जो नहीं है।

अंदर एक तलब-सी जग गई प्रभु को पाने की। अब राजा कभी एक महापुरुष के पास जाएं, कभी दूसरे के पास, पर प्रभु को पाने का रास्ता मिले ही नहीं।

राजा बड़ा निराश था तब किसी ने बताया कि एक संत हैं रविदास जी महाराज! आप उनके पास जाएं।
राजा पीपा संत रविदास जी के पास पहुँचे।

वहाँ देखा कि वो एक बहुत छोटी-सी झोपड़ी में रहते थे-भयानक गरीबी, उस झोपड़ी में तो कुछ था ही नहीं।
राजा को लगा, ये तो खुद ही झोपड़ी में जी रहे हैं,

यहाँ से मुझे क्या मिलेगा।
लेकिन वहाँ पहुँच ही गए थे तो अन्दर भी गए और राजा ने संत रविदास जी को प्रणाम किया।

संत रविदास जी ने पूछा, किस लिए आए हो ?
राजा ने इच्छा बता दी, प्रभु को पाना चाहता हूँ।

उस समय संत रविदास महाराज एक कटोरे में चमड़ा भिगो रहे थे-मुलायम करने के लिए, तो उन्होंने कहा, ठीक है, अभी बाहर से आए हो थके होगे, प्यास लगी होगी लो तब तक यह जल पियो।

कह कर वही चमड़े वाला कटोरा राजा की ओर बढ़ा दिया।

राजा ने सोचा, ये क्या कर दिया कटोरे में पानी है, उसमें चमड़ा डला हुआ है, वो गन्दगी से भरा हुआ है, उसको कैसे पी लूँ ?

फिर लगा कि अब यहाँ आ गया हूँ, सामने बैठा हूँ तो करूँ क्या ?

इन संत जी का आग्रह कैसे ठुकराऊँ ?

उस समय बिजली होती नहीं थी, झोपड़ी में अन्धेरा था, सो राजा ने मुँह से लगाकर सारा पानी अपने कपडो के अन्दर उडेल दिया और पीये बगैर वहाँ से चला आया।

वापस घर आ कर उसने कपडे उतारे धोबी को बुलाया और कहा कि इसको धो दो।

धोबी ने राजा का वो कपडा अपनी लड़की को दे दिया धोने के लिए। लड़की उसे ज्यों-ज्यों धोने लगी, उस पर प्रभु का रंग चढ़ना शुरू हो गया। उसमें मस्ती आनी शुरू हो गई और इतनी मस्ती आनी शुरू हो गई कि आस-पास के दूसरे लोग भी उसके साथ आ कर प्रभु के भजन मे गाने-नाचने लगे।

धोबी की लड़की बड़ी मशहूर भक्तिन हो गई। अब धीरे-धीरे खबर राजा के पास भी पहुँची। राजा उससे भी मिलने पहुँचा, बोला कि कुछ मेरी भी मदद कर दो।

धोबी की लड़की ने बताया कि जो कपडा आपने भेजा था, मैं तो उसी को साफ कर रही थी, तभी से लौ लग गई है, मेरी रूह अन्दर की ओर उड़ान कर रही है।

राजा को सारी बात याद आ गई और राजा भागा- भागा फिर संत रविदास जी महाराज के पास गया और उनके पैरों में पड़ गया। फिर रविदास महाराज ने उसको नाम की देन दी।

जब तक इन्सान अकिंचन न बन जाए, छोटे से भी छोटा, तुच्छ से भी तुच्छ न हो जाये, तब तक नम्रता नहीं आती। और जब तक विनम्र न हो जायें, प्रभु नहीं मिल सकते।

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