भगवान ने हमें दो कान दिए हैं। हमे ग्रथ पढते हुए दोनों कान को सतर्क रखने होते है। एक कान को हम कथा सुनने पर टिका देते हैं दुसरा कान हम अपने अन्तर्मन मे टिका कर रखे। जब हम ग्रंथ की व्याख्या करे तब अन्तर्मन मे टिकाए कान की सुनकर व्याख्या करे। अन्तर्मन के कान का सम्बन्ध जगत से न होकर परमतत्व परमात्मा से जुड़ा हुआ है। जो परम से जुड़ा हुआ है वही परमतत्व मे डुबकी लगाता है। बाहर का कान सधा हुआ नहीं है अन्दर का कान सधा हुआ है अन्तर्मन सत्य शुद्धता प्रेम का प्रतीक है।
जय श्री राम
अनीता गर्ग
प्रभु संकीर्तन 28
- Tags: कान
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