प्रभु संकीर्तन 51

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गोपीयां तो चाहती यहीं है कि इस दिल को कन्हैया चुरा ले वे उपरी तौर से मेरे प्रभु प्राण नाथ से झगड़ती है ।वे दिन रात कान्हा के ध्यान में रहती है। दिल की तङफ कान्हा तक पहुंच जाती है। कन्हैया चोरी छुपके आते हैं। गोपी को अपना बनाते हैं। कान्हा के जाते ही गोपी फिर दर्शन भाव में कन्हैया से मिलने माता यशोदा के पास आती है। अपने आप को भुलाए हुए समझ नहीं पाती है क्या कहु कैसे कान्हा से मिलन हो। कान्हा के ऊपर झुठ मुठ में माखन चोरी का बहाना बनाती है। जिस से मात यशोदा कान्हा से मिलन करवा दे। कन्हैया कहते हैं दिल तो मेरा ही था मै तुझमे बैठा हूँ ।तु अन्दर झांक कर देख ।गोपियाँ के दिल में आन्नद छा जाता है।

वो आसुं मोती बन जाते हैं जिस दिल में भगवान समा जाते हैं
जय श्री राम आंसू मोती ऐसे बन जाते हैं जो आंसू नैनो से छलकते है उन आसुओं को भक्त पढना सीख जाता है। ऊपर से दिखने वाले आंसू में जिन्दगी की कितनी बड़ी सच्चाई छुपी हुई है जय श्री राम अनीता गर्ग

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