|| संशय निवारण ||
निज जननी के एक कुमारा –
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मानस का प्रसंग -मानस प्रेमी
ॐ हिरण्यगर्भ:समवत्तरताग्रे,
भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् ।।
सदाचार पृथिवीं धामुतेमाम्,
कस्मैदेवाय हविषा विधेम्।।
ॐ हिरण्यगर्भ से आदिनारायण और शेषनारायण दोनों एक साथ प्रकट होते हैं इसलिए लक्ष्मणजी शेषनारायण के रूप में भगवान् के सहोदर हैं, इसलिए-लिखा है –
निज जननी के एक कुमारा
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यह जो बोला गया,यहाँ पर शंका हुई कि लक्ष्मण
जी दो भाई हैं फिर सहोदर भाई एक कैसे?
परशुरामजी वाली कथा याद होगी, धरती के एकमेव पुत्र थे शेषनाग, प्रकृति के एकमेव पुत्र है शेषजी तो तुम माँ के अकेले पुत्र हो इसलिए भी जाग जाओ और सहोदर हो क्योंकि प्रकृति से मेरा प्राकट्य है और प्रकृति से ही तुम्हारा प्राकट्य है, इस नाते से भी तुम मेरे सहोदर हो।
जिस प्रसाद से भरतजी का जन्म हुआ है
उसी प्रसाद से हनुमानजी का जन्म हुआ है ।
तुम मम प्रिय भरतहिं सम भाई
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यह देह के नाते और अगर उपासना के नाते देखे तो जिस उपासना के भाव में श्री भरतजी रहते हैं हमेशा श्री भरतजी की आँखो में आँसू मिलेंगे। उनकी झांकी का दर्शन करोगे तो डबडबाते मिलेंगे,कंपकंपाते होंठ, झुका हुआ सिर व्यग्रता,विनम्रता की मूर्ति बिल्कुल रोते हुए उनकी कभी आंखे देखो सूखी नही मिलेगी जैसे मीरा के नेत्र भी कभी सूखे नही मिलेंगे, चैतन्य महाप्रभु के नेत्र भी कभी सूखे नही मिलेंगे, ऐसे ही श्रीभरतजी के भी नेत्र कभी सूखे नही मिलेंगे।
पुलकगात हिय सिय रघुवीरू,नाम जीह जपि लोचन नीरू।।
ह्रदय में श्रीराम और जानकीजी हैं
और लक्ष्मण के ह्रदय में –
जासु ह्रदय आगार बसहिं,राम सर चाप धर
दैन्यता के उपासक हनुमानजी और भरतजी जिनको अपने अन्दर कोई गुण दिखाई ही नही देता,दास भाव के उपासक हनुमानजी साधु हैं,भरतजी भी साधु हैं।भरतजी तो केवल साधु हैं मगर हनुमानजी साधु-संत के रखवाले हैं ।
“तात भरत तुम सब विधि साधु”
और हनुमानजी साधु-संत के रक्षक हैं।
और यह दो ही महापुरुष ऐसे हैं,
जिनकी चर्चा भगवान् करते हैं।
भरत सरिस को राम सनेही।
जगु जप राम रामु जप जेही।।
चौबीस घंटे प्रतिपल,प्रतिक्षण यदि भगवान् किसी का सुमिरन करते हैं तो भरतजी का और जब भगवान् किसी की चर्चा करते हैं तो हनुमानजी की।
“तुम मम प्रिय भरतहिं सम भाई”
भगवान् ने कहा देखो हनुमान सारा जगत तो मुझे प्रभु पुकारेगा लेकिन आज मेरी घोषणा है कि सारा जगत तुम को महाप्रभु कहकर पुकारेगा,भगवान् श्रीराम प्रभु हैं और हनुमानजी महाप्रभु है।
काज किये बड देवन के तुम।वीर महाप्रभु देखि बिचारौ।।कौन सो संकट मोर गरीब को,जो तुमसे नहिं जात है टारो।।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु।जो कछु संकट होय हमारो।।
को नहिं जानत है जगमें कपि।संकटमोचन नाम तिहारो।।
इतना बड़ा स्थान इतनी बडाई हनुमानजी को मिली कि सब लोग गदगद हो गए, भगवान् जिसकी प्रशंसा करे उसकी तो बात ही कुछ और है,लेकिन श्रीहनुमानजी प्रशंसा से फूलते नही हैं, हमारी तो कोई यदि ईष्या में भी प्रशंसा कर दे या हमको मूर्ख बनाने के लिए भी प्रशंसा कर दे तो हम फूल कर कूप्पा हो जाते हैं।
भगवान् जिनकी प्रशंसा कर रहे है तो हनुमानजी को प्रसन्न होना चाहिए था लेकिन हनुमानजी एकदम भगवान् के चरणों में गिर पडे, प्रभु रक्षा करो, भगवान् ने कहा क्या बात है, मैं प्रशंसा कर रहा हूँ तुम कहते हो मेरी रक्षा करो।क्या बात है राक्षसों से अकेले भिड रहे थे लंका में तब तो तुमने नही पुकारा मेरी रक्षा करो और मेरे चरणों में कहते हो कि मेरी रक्षा करो, हनुमानजी ने कहा बडे-बडे राक्षसों से अकेला भिड सकता हूँ मुझे बिल्कुल भय नही लगता लेकिन प्रशंसा के राक्षस से बहुत भय लगता है।
क्योंकि इसी मुख से आपने एक बार नारदजी की प्रशंसा की थी,नारदजी की प्रशंसा की तो वह बन्दर बन गए और मैं तो पहले से ही बन्दर हूँ, मुझे आप अब और क्या बनाना चाहते हो? यह हनुमानजी की दैन्यता है। || जय सियाराम जय हनुमान ||