प्याऊ….

आसमान से आग बरस रही थी ऐसे में अधिकांश लोग घरों में रहने को मजबूर थे सुबह तकरीबन ग्यारह बजे जब रमेश ने दरवाजा खोला तो फिर से उसके घर के बाहर वहीं बुजुर्ग महिला अपनी रेहड़ी लगाएं खड़ी थी तू फिर यहां …. मना किया था ना पता नहीं कब सुधरेंगे ये लोग चल सका यहां से अपना बोरिया बिस्तर
रमेश गुस्से में आकर बोला
लगाने दो ना बाबूजी आपका कोने का मकान है कालोनी में आनेजाने वाला इस मोड़ पर जरुर आता है दो पैसे कमा लूंगी इस उम्र में घर में कोई कमाने वाला नहीं है में ही बची हूं घरवाला तो पहले ही और इस महामारी में बेटा बहु दोनों …. बच्चे हैं उनकी परवरिश को इस बुढ़िया को कमाने दो भगवान तुम्हारा भला करेंगे
देखो तुम …अच्छे से समझता हूं तुम जैसे की नौटंकी छायादार पेड़ है और पीने का प्याऊं लगाकर गलती मोल ली मैंने …
ऐसा ना कहो बाबूजी ये तो नेक काम है किसी प्यासे को पानी पिलाना दो मिनट छाया में रुकने के लिए इतना छायादार पेड़ लगाकर आपने तो ….
मुझे नहीं पता ये मक्खन बाजी नहीं चलेगी हटा यहां से वरना पुलिस को बुलवाऊंगा समझी अभी रमेश बुजुर्ग पर बिलख रहा था की उसके बेटे ने आकर कहा … पापा पापा किसी राजू अंकलजी का फोन है
राजू ….ओह … चल चल जल्दी …. कहते हुए रमेश तेजी से अंदर की और भागा और फोन उठाकर हांजी अच्छा जी …जी जरुर …. पक्का शाम को जी नमस्ते
किसका फोन था पत्नी ने रमेश से पूछा
अरे वो राजूभाई …. बहुत बड़े बिजनेसमैन हैं और लाखों का बिजनेस करते हैं यही पास ही में एक बड़ा सा घर लिया है उन्होंने … अपने बिरजू भैया है ना उन्होंने ही मिलवाया था एकबार थोड़ी दोस्ती बढ़ाई है उनसे अगर वो हमारे यहां से कच्चा माल लेने लग जाएंगे ना तो बल्ले बल्ले हो जाएगी में भी लाखों में खेलूंगा लाखों में
सच …
हां शाम को घरपर बुलाया है कह रहे थे कि पूजा रखवाई थी प्रसाद लेते जाइएगा और घर भी देख लीजिएगा
अरे भाग्यवान में तो बहाना ढूंढ रहा था वहां जाने का बिरजू भैया बता रहे थे आलीशान बंगला बनाया है
अच्छा … ठीक है तो चलते हैं आज शाम को
शाम को दोनों पति पत्नी अपने बेटे के साथ उस पते पर पहुंच गए देखा तो वहां तकरीबन सभी घर बढ़िया आलीशान बने हुए थे दोनों की आंखें फटी हुई थी तभी वह ठीक पते पर पहुंच गए वहां के मकान बंगले देखकर दोनों मन ही मन मुस्कुरा रहे थे मगर उस गली और राजूभाई के शानदार बंगले के बाहर सब्जी बेचने वालों का हूजूम देखकर दोनों का मुंह बन गया बंगले के एक कोने मे उसके दरवाजे पर खड़ी होनेवाली वहीं बुजुर्ग महिला भी अपनी रेहड़ी लगाएं बैठी थीं
रमेश ने नेमप्लेट पर नज़र डाली और बुदबुदाया घर तो यही है घंटी बजाते ही एक नौकर आकर उन्हें आदरपूर्वक अंदर ले गया घर जितना बाहर से सुंदर था उससे भी अधिक अंदर से तरह तरह के कीमती पेंटिंग्स सजावट महंगे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स मुंह से बस वाओ ही निकल रहा था
नमस्कार… रमेश जी…भाभी जी
राजूभाई ने आते ही अभिवादन किया और पूछा मकान ढूंढने में कोई मुश्किल तो नहीं हुई दरअसल हफ्ते भर पहले ही इस मे आए हैं कहिए कैसा है
नहीं भाईसाहब… मुश्किल तो नहीं हुई…. सबकुछ बहुत अच्छा है पर हां एक बात अच्छी नहीं लगी
क्या …. राजूभाई ने हैरानी से पूछा
यही की इतने सुंदर घर के बाहर….ये गांव का बाज़ार…रमेश का स्वर अटका तो राजूभाई ठठाकर हँस पड़े अरे भाई.. ये गांव का बाज़ार नहीं… यहीं के गरीबों की रोज़ी-रोटी का बन्दोबस्त है मुझे ईश्वर ने घर के बाहर इतनी खुली ज़मीन दी है तो क्यों ना पुण्य कमाऊ …
मेेरा भी कुछ जाता नहीं और इन लोगों का पेट भर जाता है दुआएं मिलती हैं सो अलग ….
रमेश और उसकी पत्नी राजूभाई को बड़ी हैरतअंगेज नजरों से देख रहे थे
अरे भाई ऐसे क्या देख रहे हो लोग प्यासे लोगों के लिए प्याऊं बनवाते हैं ताकि उनकी प्यास बुझ सकें पुण्य कमाने के लिए अच्छा है मगर वो बस गर्मी में ही काम आता है ये लोग गरीब जरुर है मगर मेहनती हैं दो वक्त की रोटी कमाने के लिए पहले सुबह मंडी जाओ सब्जियां लाओ फिर बेचों मेरे भाई ऐसे में ये हमारे घरों के बाहर कुछ वक्त रुककर बेचते हैं तो बुराई क्या है और अच्छी बात बताऊं सबकी तरह हमें भी अच्छी और ताजी सब्जियां मिल जाती है और मेरे दोस्त कर भला तो हो भला कहकर पत्नी द्वारा बनाकर लाई चाय सर्व करने लगे
वहीं रमेश और उनकी पत्नी दोनों शर्मिंदगी से एक दूसरे की और देखकर सोच रहे थे खाली मटके रखने से प्याऊं नहीं बनता प्याऊं तो बनता है निस्वार्थ भाव से सेवा करने से …अबसे वो भी प्याऊ का दिखावा नहीं करेंगे बल्कि राजूभाई की तरह निस्वार्थ भाव से सेवा करेंगे और किसी को अपने मकान के मोड़ पर रुककर सब्जी बेचने से नहीं रोकेंगे सोचते हुए वह भी मुस्कुरा उठे



आसमान से आग बरस रही थी ऐसे में अधिकांश लोग घरों में रहने को मजबूर थे सुबह तकरीबन ग्यारह बजे जब रमेश ने दरवाजा खोला तो फिर से उसके घर के बाहर वहीं बुजुर्ग महिला अपनी रेहड़ी लगाएं खड़ी थी तू फिर यहां …. मना किया था ना पता नहीं कब सुधरेंगे ये लोग चल सका यहां से अपना बोरिया बिस्तर रमेश गुस्से में आकर बोला लगाने दो ना बाबूजी आपका कोने का मकान है कालोनी में आनेजाने वाला इस मोड़ पर जरुर आता है दो पैसे कमा लूंगी इस उम्र में घर में कोई कमाने वाला नहीं है में ही बची हूं घरवाला तो पहले ही और इस महामारी में बेटा बहु दोनों …. बच्चे हैं उनकी परवरिश को इस बुढ़िया को कमाने दो भगवान तुम्हारा भला करेंगे देखो तुम …अच्छे से समझता हूं तुम जैसे की नौटंकी छायादार पेड़ है और पीने का प्याऊं लगाकर गलती मोल ली मैंने … ऐसा ना कहो बाबूजी ये तो नेक काम है किसी प्यासे को पानी पिलाना दो मिनट छाया में रुकने के लिए इतना छायादार पेड़ लगाकर आपने तो …. मुझे नहीं पता ये मक्खन बाजी नहीं चलेगी हटा यहां से वरना पुलिस को बुलवाऊंगा समझी अभी रमेश बुजुर्ग पर बिलख रहा था की उसके बेटे ने आकर कहा … पापा पापा किसी राजू अंकलजी का फोन है राजू ….ओह … चल चल जल्दी …. कहते हुए रमेश तेजी से अंदर की और भागा और फोन उठाकर हांजी अच्छा जी …जी जरुर …. पक्का शाम को जी नमस्ते किसका फोन था पत्नी ने रमेश से पूछा अरे वो राजूभाई …. बहुत बड़े बिजनेसमैन हैं और लाखों का बिजनेस करते हैं यही पास ही में एक बड़ा सा घर लिया है उन्होंने … अपने बिरजू भैया है ना उन्होंने ही मिलवाया था एकबार थोड़ी दोस्ती बढ़ाई है उनसे अगर वो हमारे यहां से कच्चा माल लेने लग जाएंगे ना तो बल्ले बल्ले हो जाएगी में भी लाखों में खेलूंगा लाखों में सच … हां शाम को घरपर बुलाया है कह रहे थे कि पूजा रखवाई थी प्रसाद लेते जाइएगा और घर भी देख लीजिएगा अरे भाग्यवान में तो बहाना ढूंढ रहा था वहां जाने का बिरजू भैया बता रहे थे आलीशान बंगला बनाया है अच्छा … ठीक है तो चलते हैं आज शाम को शाम को दोनों पति पत्नी अपने बेटे के साथ उस पते पर पहुंच गए देखा तो वहां तकरीबन सभी घर बढ़िया आलीशान बने हुए थे दोनों की आंखें फटी हुई थी तभी वह ठीक पते पर पहुंच गए वहां के मकान बंगले देखकर दोनों मन ही मन मुस्कुरा रहे थे मगर उस गली और राजूभाई के शानदार बंगले के बाहर सब्जी बेचने वालों का हूजूम देखकर दोनों का मुंह बन गया बंगले के एक कोने मे उसके दरवाजे पर खड़ी होनेवाली वहीं बुजुर्ग महिला भी अपनी रेहड़ी लगाएं बैठी थीं रमेश ने नेमप्लेट पर नज़र डाली और बुदबुदाया घर तो यही है घंटी बजाते ही एक नौकर आकर उन्हें आदरपूर्वक अंदर ले गया घर जितना बाहर से सुंदर था उससे भी अधिक अंदर से तरह तरह के कीमती पेंटिंग्स सजावट महंगे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स मुंह से बस वाओ ही निकल रहा था नमस्कार… रमेश जी…भाभी जी राजूभाई ने आते ही अभिवादन किया और पूछा मकान ढूंढने में कोई मुश्किल तो नहीं हुई दरअसल हफ्ते भर पहले ही इस मे आए हैं कहिए कैसा है नहीं भाईसाहब… मुश्किल तो नहीं हुई…. सबकुछ बहुत अच्छा है पर हां एक बात अच्छी नहीं लगी क्या …. राजूभाई ने हैरानी से पूछा यही की इतने सुंदर घर के बाहर….ये गांव का बाज़ार…रमेश का स्वर अटका तो राजूभाई ठठाकर हँस पड़े अरे भाई.. ये गांव का बाज़ार नहीं… यहीं के गरीबों की रोज़ी-रोटी का बन्दोबस्त है मुझे ईश्वर ने घर के बाहर इतनी खुली ज़मीन दी है तो क्यों ना पुण्य कमाऊ … मेेरा भी कुछ जाता नहीं और इन लोगों का पेट भर जाता है दुआएं मिलती हैं सो अलग …. रमेश और उसकी पत्नी राजूभाई को बड़ी हैरतअंगेज नजरों से देख रहे थे अरे भाई ऐसे क्या देख रहे हो लोग प्यासे लोगों के लिए प्याऊं बनवाते हैं ताकि उनकी प्यास बुझ सकें पुण्य कमाने के लिए अच्छा है मगर वो बस गर्मी में ही काम आता है ये लोग गरीब जरुर है मगर मेहनती हैं दो वक्त की रोटी कमाने के लिए पहले सुबह मंडी जाओ सब्जियां लाओ फिर बेचों मेरे भाई ऐसे में ये हमारे घरों के बाहर कुछ वक्त रुककर बेचते हैं तो बुराई क्या है और अच्छी बात बताऊं सबकी तरह हमें भी अच्छी और ताजी सब्जियां मिल जाती है और मेरे दोस्त कर भला तो हो भला कहकर पत्नी द्वारा बनाकर लाई चाय सर्व करने लगे वहीं रमेश और उनकी पत्नी दोनों शर्मिंदगी से एक दूसरे की और देखकर सोच रहे थे खाली मटके रखने से प्याऊं नहीं बनता प्याऊं तो बनता है निस्वार्थ भाव से सेवा करने से …अबसे वो भी प्याऊ का दिखावा नहीं करेंगे बल्कि राजूभाई की तरह निस्वार्थ भाव से सेवा करेंगे और किसी को अपने मकान के मोड़ पर रुककर सब्जी बेचने से नहीं रोकेंगे सोचते हुए वह भी मुस्कुरा उठे

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