भोजराज की अंतर्वेदना और अंतर्द्वंद्व ….
डेरे पर आकर वे कटे वृक्ष की भाँति पलंग पर जा गिरे। पर वहाँ भी चैन न मिला, लगा पलंग पर अंगारे बिछे हों। वे धरती पर जा पड़े। कमर में बँधी कटार चुभी। खींचकर दूर फेंकने लगे कि कुछ सोचकर ठहर गये-उठ बैठे। कटार को म्यान से निकाला, एक बार अँगूठा फेरकर धार देखी और दाहिना हाथ ऊपर उठाकर उसे छाती पर तान लिया… । एक क्षण…. जैसे बिजली चमकी हो, अंतर में मीरा आ खड़ी हुई। उदास मुख,कमल-पत्र पर ठहरे ओस-कण से आँसू गालों पर चमक रहे हैं। जलहीन मत्स्या-सी आकुल-व्याकुल दृष्टि मानो कह रही हो–‘मेरा क्या होगा?’ उन्होंने तड़पकर कटार फेंक दी। मरते पशु-सा धीमा आर्तनाद उनके गले से निकला और वे पुनः भूमि पर लोटने लगे।
मेदपाट का स्वामी, हिन्दुआ सूर्य का ज्येष्ठ कुमार और लाखों वीरों का अग्रणी, जिसका नाम सुनकर ही दुष्टों के प्राण सूख जाते हैं और दीन-दुःखी श्रद्धा से जय-जय कर उठते हैं। रनिवास में प्रवेश करते ही दासियाँ राई-नौन उतारने लगती हैं और दुलार करती माताओं की आँखों में सौ-सौ सपने तैर उठते हैं। जिसे देखकर एकलिंगनाथ के दीवान की छाती गौरव से फूलकर दुगुनी हो जाती है, और उमराव अपने भावी नायक को देखकर संतोष की साँस लेते हैं। वही…. वही…. वही नरसिंह आज घायल शूर की भाँति धरा पर पड़ा तड़फ रहा है। आशा-अभिलाषा और यौवन की अर्थी उठ गयी। उनका धीर-वीर हृदय प्रेम-पीड़ा से कराह उठा। एकलिंगनाथ के लाड़ले का कलेजा, जो सहस्रों बैरियों को देखकर उत्साह से उछल पड़ता था, आज पानी हो नेत्रों की राह बह गया। चित्तौड़ का युवराज आज दीन-हीन हो धूल में लोट रहा हैं। जिसके पसीने के स्थान पर हजारों वीर रक्त बहाने को तैयार रहते हैं, जिसकी एक हाँक पर वन-व्याघ्र तक सहम उठते हैं, उसकी आँखों में अँधेरा छा गया, महँगे राजसी वस्त्र और केश धूलि-धूसरित हो गये। इस दुःख में भाग बँटाने वाला, धीरज देने वाला उन्हें कोई दिखायी नहीं दिया। तब…. तब…. कहाँ जाकर ठंडे हों? यह धीमा दाह… कैसे…. शांत हो ? पर शांत हो कैसे? यही तो वे नहीं चाहते। यह व्याकुलता पीड़ा चरम सीमा तक बढ़े, पर प्राण न जायँ….!
‘थे ही म्हारा सेठ बोहरा ब्याज मूल कॉई जोड़ो।
गिरधर लाल प्रीत मति तोड़ो।
भोजराज के बहरे कान सुन रहे हैं-
‘मीराके प्रभु गिरधर नागर, रस में विष काँई घोलो।’
‘बावजी हुकम! बावजी हुकम!’- बाहर से पुरुष कंठ का स्वर आया। वे चौंककर उठ बैठे-‘आह भोज! तेरे भाग्य में एकान्त का सुख ही कहाँ लिखा है? उठ; उठ जा।’
‘खट…, खट…, खट…- द्वार पर फिर खटका हुआ और भोजराज का गम्भीर कंठ पुकार उठा- ‘कौन है?’
‘यह तो मैं हूँ हुकम ! पूरणमल’
‘क्या है?’— जैसे घन गरज उठे हों।
‘आखेट पर पधारने के सभी प्रबन्ध हो गये। मैं शस्त्र धारण कराने हाजिर हुआ हूँ।’–पूरणमल ने विनम्रता से उत्तर दिया।
मन में आया, कह दूँ कि सिर में दर्द है, किन्तु नहीं। अभी भुवासा, फूफोसा और सब लोग इकट्ठे हो जायँगे। खुशी पूछने का जो सिलसिला आरम्भ हुआ तो दो-तीन दिन तक समाप्त ही न होगा। निश्वास छोड़कर बोले- ‘थोड़ा ठहर! अभी खोलता हूँ।’
उन्होंने खड़े होकर वस्त्र झड़काये। मुहँ धोया, पानी पिया, गीले हाथ केशों पर फेरकर साफा बाँधा, कटार उठाकर कमरबंध में लगायी और आरसी में मुँह देखा। आश्चर्य और दुःख से उनका मुँह खुल गया। अपना ही चेहरा अनजाना लगा उन्हें। आँखें सूज गयी हैं, होंठ सूखे और मुँह उतरा हुआ। उन्होंने होठों पर जीभ फेरकर मुस्कराने का प्रयत्न किया, किन्तु मुस्कान के बदले होठों पर एक करुण रेखा खिंचकर रह गयी।वे हारकर पलंग पर बैठ गये—’क्यों आ गया मैं यहाँ? बाई हुकम (माँ) ने तो ना फरमाया था; मैंने ही जिद्द की। हाय, कैसा दुर्भाग्य है इस अभागे मन का? कहाँ जा लगा यह, जहाँ इसकी रत्तीभर परवाह नहीं, चाह नहीं। पाँव तले रुँदने का भाग्य लिखाकर आया बदनसीब। ‘मीरा!’ कितना मीठा नाम है यह, जैसे अमृत से बना हो – सींचा गया हो। अच्छा, इस नामका अर्थ क्या है भला? नहीं जानता न तू? पर पूछूं किससे? पूरणमल जानता होगा? हिस्स! किसी से नहीं पूछा जा सकता। अब तो…. अब तो…. उन्हीं से पूछना होगा। चित्तौड़ आनेपर…. ।’ उनके होठों पर मुस्कान, हृदय में विद्युत् तरंग थिरक गयी। वे मीरा से मानो प्रत्यक्ष बात करने लगे- ‘मुझे केवल तुम्हारे दर्शन का अधिकार चाहिये…. तुम प्रसन्न रहो, तुम्हारी सेवा का सुख पाकर यह भोज निहाल हो जाय, मुझे और कुछ नही चाहिए..कुछ नही।’
‘बावूजी हुकम!’
भोजराज जैसे स्वप्न से जगे– ‘एकलिंगनाथ! मेरी लज्जा रखना प्रभु! मन में कहते हुए उन्होंने उठकर द्वार खोल दिया।
‘शीघ्रता कीजिये बावजी हुकम! फूफोसा हुकम और भाणेज बना भी पधार गये हैं।’– पूरणमल जल्दी-जल्दी हथियार बाँधते हुए बोला- ‘ये वस्त्र तो मैले हो गये हैं। दूसरे धारण करा दूँ? ऐसी धूल कहाँ लगी?’
‘कहाँ लगी और कहाँ न लगी, सो सब कैफियत अभी देनी होगी? समय तो शस्त्र बाँधने का भी नहीं है और तू वस्त्र बदलने की बात कर रहा है।’
‘बाहर सब लोग हैं इसीसे…. ।’
‘सो क्या तेरी सगाई करनी है कि लोग सोचेंगे मालिक इतना गंदा है तो सेवक कैसा होगा और सगाई टूट जायगी? यह बात हो तो वस्त्र बदल लूँ।’— भोजराज ने हँसकर कहा। पूछा- ‘घोड़ी तैयार है?’
‘हुकम! तैयार है।’– पूरणमल ने लजाते हुए कहा।
‘अब भुवासा पधारें तो शीघ्र विदा कराकर घर चल चलें। मुझे तो घर की, चित्तौड़ की याद आती है।’
‘सुना है….।’– पूरणमल कहते-कहते ठहर गया। मन में सोचा कि कौन जाने बावजी हुकम को बात अच्छी न लगे, सुनकर कहीं अप्रसन्न न हों।
‘क्या सुना है?’– भोजराज ने पूछा।
‘सरकार नाराज तो नहीं होंगे?”
‘क्यों, नाराज होने जैसी बात है? यदि ऐसा है तो कहने को उतावला ही क्यों हुआ?’
‘बात तो पुरस्कार पाने जैसी है, पर बड़े लोगों के मन की कैसे जान सकते हैं।’
‘पुरस्कार भले न मिले, पर रुष्टता का दण्ड भी न मिलेगा। अब आफरा झाड़ले अपना, कह दे!’ -भोजराज ने हँसकर कहा।
‘सुना है अपने साथ यहाँ के पुरोहितजी महाराज भी चलेंगे।’
‘क्यों?”
क्रमशः
Bhojraj’s intuition and conflict….
After coming to the camp, he fell on the bed like a cut tree. But there was no peace there either, felt like coals were lying on the bed. They went down to earth. The dagger tied in the waist pierced. Pulled and started throwing away, thinking something, stopped and sat up. He took out the dagger from the scabbard, turned his thumb once to see the edge and raised his right hand and stretched it on his chest…. one moment…. Meera stood in the distance like a flash of lightning. Sad face, tears are shining on the cheeks from the dew-particles standing on the lotus-leaf. A restless look like a waterless fish, as if saying – ‘What will happen to me?’ He threw away the dagger in agony. A slow moan like a dying animal came out of his throat and he again started rolling on the ground. The lord of Medpat, the eldest son of the Hindu Sun and the leader of millions of heroes, on hearing whose name the lives of the wicked dry up and the poor and sad wake up with reverence. As soon as they enter the Ranivas, the maids start removing mustard seeds and hundreds of dreams float in the eyes of the caressing mothers. Seeing which Eklingnath’s Diwan’s chest doubles with pride, and Umrao breathes satisfaction seeing his future hero. Same…. Same…. The same Narasimha is suffering like a wounded warrior lying on the ground today. The bier of hope-desire and youth got up. His brave heart groaned with love-pain. The heart of the beloved of Eklingnath, which used to jump with enthusiasm on seeing thousands of enemies, today tears flowed down the path of eyes. The crown prince of Chittor is rolling in the dust today. Thousands of heroes are ready to shed blood in place of whose sweat, on whose one hawk even forest-tiger get scared, his eyes got dark, expensive royal clothes and hair turned dusty. They didn’t see anyone who could share their sorrows and give them patience. Then…. Then…. Where to go to cool off? This slow dah… how…. Calm down ? But how to calm down? That’s what they don’t want. May this distraction and pain increase to the extreme extent, but life should not be lost….!
‘Thee Hi Mhara Seth Bohra Interest Mool Koi Jodo. Break the mind of Girdhar Lal Preet.
Bhojraj’s deaf ears are listening- ‘Lord Girdhar Nagar of Meera, mix some poison in the juice.’
‘Bavji Hukam! Bavji Hukam!’- came the voice of a male voice from outside. They got up startled – ‘Ah Bhoj! Where is the happiness of solitude written in your fate? get up; Get up.’
‘Khat…, Khat…, Khat… – there was another knock at the door and Bhojraj’s grave voice called out – ‘Who is it?’ ‘This is me Hukam! Poornamal’ ‘What is it?’— as if thunder had risen. All arrangements have been made to go hunting. I have appeared to get armed.’-Pooranmal replied politely. I thought I should say that I have a headache, but no. Now Bhuvasa, Fufosa and everyone will assemble. If the process of asking for happiness starts, it will not end for two-three days. Breathing out, he said – ‘ Wait a while! I’ll open it now.
He stood up and shook his clothes. He washed his face, drank water, wrapped his wet hand over his hair and tied a turban, picked up a dagger and put it around his waist, and looked at the RC. His mouth dropped open with surprise and sorrow. His own face seemed unknown to him. The eyes are swollen, the lips dry and the mouth down. He tried to smile by turning his tongue on his lips, but instead of a smile, a sad line was drawn on his lips. He sat down on the bed in defeat – ‘Why did I come here? Bai Hukam (mother) had said no; I insisted Hi, what is the misfortune of this unfortunate mind? Where did it go, where it has no care, no desire. Unfortunate came by writing the fate of being trampled under the feet. ‘Meera!’ How sweet is this name, as if made of nectar – has been watered. Well, what is the meaning of this name? Don’t you know? But whom should I ask? Pooranmal must have known? Hiss! No one can be asked. now…. now…. You have to ask them only. On coming to Chittor…. , A smile on his lips, an electric wave throbbed in his heart. As if he started talking to Meera directly – ‘I only want the right to see you…. You be happy, after getting the pleasure of your service, this feast becomes pleasant, I do not want anything else… nothing.’
‘Bavuji Hukam!’
Woke up from a dream like Bhojraj – ‘Eklingnath! Keep my shame Lord! Saying in his mind, he got up and opened the door. ‘Hurry up Bavji Hukam! Fufosa has also come here dressed as Hukam and Bhanej.’ Puranmal hurriedly tied his arms and said – ‘These clothes have become dirty. Should I get someone else to wear it? Where did such dust come from? ‘Where did it hit and where didn’t hit, so all the condition will have to be given now? There is no time even to tie weapons and you are talking about changing clothes.’ Everyone is outside because of this…. , ‘So do you want to get engaged that people will think that the master is so dirty then how will the servant be and the engagement will be broken? If this is the case, I will change my clothes.’— Bhojraj said with a smile. Asked- ‘Is the mare ready?’ ‘Hukam! Ready.’- Puranmal said shyly. ‘Now if Bhuvasa comes, let’s bid him farewell and go home. I miss home, Chittor.’
‘Heard…..’- Puranmal paused while saying. I thought in my mind that who knows, Bavji Hukam may not like it, may not be unhappy after hearing it. ‘What have you heard?’- asked Bhojraj. ‘Won’t the government be angry?’ ‘Why, is there such a thing as being angry? If so, then why was he in a hurry to say it?’ ‘It is like getting an award, but how can you know the mind of big people.’ You may not get the award, but you will not get the punishment for being angry. Now Afra sweeps his own, say it!’ Bhojraj said with a smile. ‘I have heard that Purohitji Maharaj will also go with you.’ ‘Why?” respectively