रस ब्रह्म” के दर्शन रसोपासना – भाग-6


“रसब्रह्म” की उपासना हमारे श्रीधाम वृन्दावन के रसिक सन्तों ने खूब छक कर किया है… आज भी अगर आप अपने हृदय को निष्काम बना लें… तो नाचता रसब्रह्म प्रकट हो जाएगा… वो कैसे होगा ? इसका अनुमान लगाया जा सकता है… पर वैसा ही वर्णन नही किया जा सकता… इसका स्वाद दिव्य प्रेममय आत्मा में लिया जाता है… और वर्णन होता है “परा पश्यन्ति” में । पर उस “परा पश्यन्ती” को बैखरी का विषय बनाने मेरे जैसा सांसारिक कामनाओं में लिप्त व्यक्ति चला है… अपराध तो नही होगा ? नही… तुम लिखो… और तुम कहाँ लिख रहे हो… स्वयं “रसब्रह्म” तुमसे लिखवा रहा है ।

पागलबाबा की वाणी ने मुझे फिर उत्साहित किया ।

“तुम लिख ही नही सकते”… बाबा ने मेरी पीठ ठोकी… “उसकी प्रेरणा बिना” ।

साधकों ! अब आगे जो मैं वर्णन करने जा रहा हूँ… या आपको दर्शन कराने का प्रयास कर रहा हूँ… हृदय काँपता है… लेखनी रुक जाती है… आनन्दाश्रु से मेरा कण्ठ भर जाता है… शून्य में आँखें तांकती रह जाती हैं… लगता है… वे खड़े हैं गलवैयाँ दिए… और मुस्कुरा रहे हैं… इससे आगे कुछ कहूँगा नहीं ।

ब्रह्म अव्यक्त है… तो रस भी अव्यक्त है… ब्रह्म एक होने के बाद भी अनन्त है… तो रस भी एक होकर भी सब में व्याप्त है… ।

इसलिये पूरे रस का वर्णन करूँगा ऐसा प्रयास कितना भी करूँ… पर “रस” शेष रह ही जायेगा है… ये है ही ऐसा तत्व ।

रस यानि प्रेम… उफ़ ! उस प्रेम का वर्णन… जो सब से परे है… मन वाणी बुद्धि सबसे ।

चलिये – प्रातः का समय है, ध्यान में बैठते हैं… और उस रस की अनुभूति करते हैं ।

और एक विलक्षणता – इस रस की अनुभूति हम सबको कराने वाली हैं सखियाँ… वो सखियाँ जिनके चरण रज को ब्रह्मादि भी पाना चाहते हैं… पर नही मिलता उन्हें ।


“रंग भवन की झाँकी” –

सो रहे हैं “प्रियालाल”… बड़ी गहरी नींद में सो रहे हैं… रंग भवन का परदा खोलती हैं सखियाँ ।

सखियों ने जैसे ही दर्शन किये… आहा ! ऐसा लग रहा है… जैसे कनकवेल तमाल वृक्ष से लिपटी हुयी हैं… मुख से मुख जुरे हुए हैं दोनों के… ऐसा लग रहा है जैसे ये दो नही एक ही हैं… श्याम घन में मानो बिजली जैसे कौंधी हो… उफ़ !

जगाएं ? ललिता सखी ने मुग्ध होते हुए रंगदेवी से पूछा ।

न जगाओ… कैसी गहरी नींद है… और लगता है ये रात भर सोये भी नही हैं… रंगदेवी सखी ने कहा ।

ध्यान से देखो… श्याम सुन्दर के आँखों में लाली लगी है… और श्रीराधा जु के अधरों में काजल लगा है… दोनों एक दूसरे से कैसे लिपटे हुए हैं… इनको ऐसे ही रहने दो… और हमें इन्हें निहारने दो… सुदेवी ने कहा ।

देखो सखी ! जहाँ प्रेम होता है वहाँ दो होते ही नही हैं… ये प्रेम देवता का चमत्कार है कि प्रेम “दो” को “एक” बनाकर ही मानता है… प्रेम में कोई भेदभाव नही है… प्रेम में कोई छोटा बड़ा नही है… हमारे श्याम सुन्दर और श्रीराधारानी ये दोनों युगल – प्रेम ही तो हैं ।

और ये जिसे छू दें… नहीं नहीं इनके दर्शन मात्र से सामने वाला भी प्रेम स्वरूप हो जाता है… देखो तो कितने सुन्दर लग रहे हैं ।

सखियाँ आपस में बतिया रही हैं… तभी ललिता सखी आगे आईँ… अरे ! इनको जगा दो… ललिता सखी ने कहा ।

न जगाओ… रंगदेवी सखी ने कहा… कितने सुखपूर्वक सो रहे हैं ।

पर इन्हें भूख भी तो लग रही होगी… रात भर के थके हैं… और मंगला भोग का समय भी तो हो रहा है… इसलिये इन युगलों को जगाना आवश्यक है… कुछ खा लेंगें तो अच्छा होगा ।

ललिता सखी की बातें सबको ठीक लगीं…

पर कैसे जगाएं ?

देखो ! तो श्याम सुन्दर का मुख श्रीजी की ओर ही है…

चलो ! परदा बन्द कर दो… ज्यादा मत निहारो… हम सबकी नजर लग जायेगी… और बाहर बैठकर कुछ गाती हैं कुछ बजाती हैं… मधुर मधुर संगीत… हमारे युगलवर को अच्छा लगेगा और जाग जायेंगें ।

ललिता सखी ने कहा… और फिर परदा लगा दिया ।

वीणा लिया ललिता सखी ने और मुग्ध होकर वीणा के तारों को झंकृत करने लगीं ।

कोई सारंगी तो कोई मृदंग बजाने लगी थीं ।


चुप ! चुप ! रंगदेवी सखी ने एकाएक सबको चुप कराया ।

सब शान्त हो गयीं… परदा को हल्का हटाया… तो क्या देखती हैं श्याम सुन्दर जाग गए हैं… पर लेटे ही हैं… श्री जी को देखते हैं… सोई जानकर फिर लेट जाते हैं… फिर कुछ ही देर में उचक कर देखते हैं… पर अभी भी सोई हुयी हैं प्रिया जु ।

नींद में है श्रीजी… फूँक मारते हैं प्रिया जी के मुख पर ।

ओढे हुए वस्त्रों को हटाने की कोशिश करते हैं…

हे प्यारे ! सोने दो ना… पूरी रात जागकर बीती है… आप भी नही सोये और न मुझे सोने दिया… पूरी रात बातें करते ही रहे हो… चसका लगा है बातें बनाने का आपको… ये कहते हुए मुस्कुराईं श्री जी… और नयनों से थोड़ा लाल जी को निहार कर फिर आँखें मूंद लीं… ।

हाँ… चसका तो लगा है बातों का… अब आप ही बताओ प्यारी ! आपकी मधुर बोली का चसका लगा है… आपके रूप सुधा के पान का चसका लगा है… अब इसमें मैं क्या करूँ ? ये किया तो है नही, हो गया है… अच्छा ! अच्छा ! अगर ये अपराध है तो बांध लो ना अपने बाहु पाश में मुझे ।

हूँ… पर मुझे नींद आरही है… श्रीराधा रानी इतना कहकर फिर सो जाती हैं…

सखियाँ सुन रही हैं ये बतियाँ… और गदगद् हैं ।

अच्छा तो आप नही जागोगी… तो मैं भी सो रहा हूँ… इतना कहकर प्रिया जी के चादर के भीतर ही सो गए… लाल जी ।

रंगदेवी सखी बाहर से देख रही हैं… और उन्होंने गायन शुरू किया ।

जाग री बड़ी बेर भई ।
अलबेली खेली पिय के संग, अलकलड़ैती लाल री !!


हे युगलवर ! आप उठिये ! देखिये भोर हो गयी है… बडा विचित्र स्वभाव है आपका… जैसे-जैसे प्रभात हो रहा है आपकी नींद उतनी ही गहरी होती जा रही है… हे रसिक रसिकनी ! आलस त्यागिये और उठिये… आप ही हमारे जीवन धन हैं… ।

रंगदेवी सखी ने प्रार्थना की…

तभी… सखियाँ जयजयकार कर उठीं… “जय जय” की गूँज पूरे श्रीधाम में गुँजित हो गया ।

युगलसरकार जाग गए… रंगदेवी और ललिता सखी ने हाथ देकर उठाया, शैया में ही विराजमान कराया… पीछे सुदेवी ने तकिया लगा दिया ।

सखियाँ निरन्तर जयजयकार कर रही हैं ।

पर उसी समय सेज से नीचे ललिता रंगदेवी और सुदेवी आगयीं ।

क्यों कि दर्शन के लिये कुछ दूरी भी चाहिये… ज्यादा ही पास से अच्छे दर्शन नही होते ।

सखियाँ मुग्ध होकर दर्शन कर रही हैं…

उठकर बैठते ही श्याम सुन्दर ने श्री जी के मुखारविन्द को अपलक निहारना फिर शुरू कर दिया था… श्रीजी जम्हाई लेती हैं… तो श्याम सुन्दर चुटकी बजाते हैं… वस्त्र और आभूषण सब अस्त व्यस्त हैं ।

रंगदेवी सखी दर्शन करते हुए कह रही हैं… पीले वस्त्र तो हमने श्याम सुन्दर को पहनाये थे… और नीले वस्त्र श्रीजी को… पर ये अदल बदल कैसे गए ? रंगदेवी हँसती हैं ।

देखो ! सखी… श्री जी के चरण के महावर लाल जी के पलकों में लगे हैं… ये दिव्य दर्शन करो… ऐसे दर्शन बहुत दुर्लभ हैं ।

तभी – मेरी नकबेसर में लट उलझ गयी हैं… सुलझा दो ना !

“मोती की लर नक बेसर” में लट उलझ गयी थी श्रीजी की…

श्याम सुन्दर सुलझा रहे हैं… पर सुलझ नही रही…

आप खींच क्यों रहे हो… मैंने तो सुलझाने के लिये कहा है…

देखो ! विनोद मत करो, सखियाँ देख रही हैं… जल्दी सुलझा दो ।
श्री जी ने श्याम सुन्दर से फिर कहा ।

रंगदेवी सखी हंस के कहती हैं ये सुलझा नही रहे… हे स्वामिनी ! ये तो हम सब को अपने रस जाल में उलझा रहे हैं…

रंगदेवी सखी की बात सुनकर श्री जी शरमा गयीं ।

आहा ! क्या दर्शन हैं… युगलवर दोनों विराजमान हैं ।

सखियाँ दर्शन करती हैं… और मधुर-मधुर स्वर में गा रही हैं –

🙏”जय जय श्री प्रीतम की प्यारी, जय जय सरस सरूप उजियारी !!

🙏जय जय श्री आल्हादिनी देवी, जय जय श्यामा सब सुख सेवी !! “

🙏”सब बोलिये युगल सरकार की”… सब सखियाँ एक स्वर में बोलीं –

🙏जय जय जय जय ! !

शेष “रस चर्चा” कल –

🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩



“Rasbrahma” has been worshiped by the passionate saints of our Shridham Vrindavan with great enthusiasm… even today if you make your heart selfless… then the dancing Rasbrahma will appear… how will that happen? It can be estimated… but cannot be described in the same way… It is tasted in the divine loving soul… and described in “para pashyanti”. But a person indulged in worldly desires like me has gone on to make that “Para Pashyanti” a subject of blasphemy… wouldn’t it be a crime? No… you write… and where are you writing… “Rasbrahma” himself is making you write.

Pagalbaba’s voice got me excited again.

“You cannot write at all”… Baba patted me on the back… “Without his inspiration”.

Seekers! Now what I am going to describe next… or try to make you see… heart trembles… pen stops… tears of joy fill my throat… eyes keep staring into the void… it seems… they stand They have given galwais… and are smiling… I will not say anything beyond this.

Brahma is unmanifest… then rasa is also unmanifest… Brahman is infinite even after being one… So rasa is also pervaded in all even after being one….

That’s why I will describe the whole juice, no matter how much I try… but the “juice” will be left… This is such an element.

Ras means love… Oops! Description of that love… which is beyond all… mind, speech and intellect.

Let’s go – it’s morning time, let’s sit in meditation… and feel that juice.

And one more peculiarity – the friends who make us all experience this juice… those friends whose feet even Brahmadi wants to get… but they don’t get it.

“Tableaux of Rang Bhavan” –

“Priyalal” is sleeping… sleeping in a deep sleep… Friends open the curtains of Rang Bhawan.

As soon as the friends had darshan… Aha! It looks like… as if Kanakvel is wrapped around the Tamal tree… both of them are face to face… It looks as if these two are not one and the same… As if there is lightning in Shyam Ghan… Oops!

wake up? Lalita Sakhi being mesmerized asked Rangadevi.

Don’t wake me up… What a deep sleep… And it seems he hasn’t even slept the whole night… Rangdevi Sakhi said.

Look carefully… Shyam Sundar has redness in his eyes… and Shriradha Ju has kajal on her lips… how both are wrapped around each other… let them be like this… and let us watch them… Sudevi said.

Look friend! Where there is love, there are no two… It is a miracle of God of love that love considers “two” as “one”… There is no discrimination in love… No one is small or big in love… Our Shyam Sundar and Shriradharani, these two couples are love only.

And whomever he touches… No no, even the person in front of him becomes an embodiment of love just by seeing him… Look how beautiful he is looking.

The friends are telling among themselves… That’s why Lalita Sakhi came forward… Hey! Wake them up… Lalita Sakhi said.

Don’t wake me up… Rangadevi’s friend said… He is sleeping so soundly.

But they must be feeling hungry too… they are tired after the whole night… and it is time for Mangala bhog… That is why it is necessary to wake up these couples… It would be good if they eat something.

Everyone liked the words of Lalita Sakhi…

But how to wake up?

See ! So Shyam Sundar’s face is only towards Shreeji…

Let us go ! Close the curtain… don’t stare too much… we all will be noticed… and sitting outside some sing, some play… sweet melodious music… our couple will like it and will wake up.

Lalita Sakhi said… and then put the curtain.

Lalita’s friend took the veena and being mesmerized started tinkling the strings of the veena.

Some started playing Sarangi and some Mridang.

Silent ! Silent ! Rangdevi Sakhi made everyone silent all of a sudden.

Everyone became quiet… The curtain was removed lightly… So what do you see, Shyam Sundar has woken up… But he is still lying down… He looks at Shriji… He lies down after thinking that he is asleep… Then in a short while he looks up… But now Priya Ju is also asleep.

Shreeji is in sleep… He blows on Priyaji’s face.

Let’s try to remove the cloths…

Hey dear! Let me sleep… The whole night has been spent awake… You didn’t even sleep and neither let me sleep… You have been talking all night… You are in awe of making things… Mr.ji smiled while saying this… and a little bit from the eyes to Lalji Staring and then closed my eyes….

Yes… I have got hooked on the talks… Now you tell me dear! I am hooked to your sweet speech… I am hooked to your face Sudha’s betel leaf… Now what should I do in this? This has not been done, it is done… OK! Good ! If this is a crime, then tie me in your arms.

Am… but I am sleepy… Shriradha Rani falls asleep after saying this…

Friends are listening to these lights… and are giddy.

Ok, you will not wake up… so I am also sleeping… Having said this he fell asleep inside Priya ji’s bed sheet… Lal ji.

Rangadevi Sakhi is watching from outside… and she started singing.

Wake up very late brother. Albeli played with drink, Alkaldaiti Lal Ri!!

Hey couple! You wake up! Look, it’s dawn… You have a very strange nature… As the morning progresses, your sleep is getting deeper… Hey Rasik Rasikni! Leave laziness and get up… You are our life wealth….

Rangdevi Sakhi prayed…

That’s why… the friends got up cheering… The echoes of “Jai Jai” echoed in the entire Shridham.

Ugalsarkar woke up… Rangdevi and Lalita sakhi raised them by hand, made them sit on the bed… Sudevi put a pillow behind them.

The friends are constantly cheering.

But at the same time Lalita Rangadevi and Sudevi came down from the SEZ.

Because some distance is also needed for darshan… good darshan does not happen from too close.

The friends are seeing mesmerized…

As soon as he got up and sat down, Shyam Sundar started gazing at Shreeji’s facial expression again… Shreeji yawns… then Shyam Sundar pinches… all the clothes and jewelery are in disarray.

Rangadevi Sakhi is saying while having darshan… we had worn yellow clothes to Shyam Sundar… and blue clothes to Shreeji… but how did these exchanges get changed? Rangdevi laughs.

See ! Friend… Mahavar of Shriji’s feet is attached to Lalji’s eyelids… Have this divine darshan… Such darshans are very rare.

That’s why – the braids are tangled in my neck… Please solve it!

Shreeji’s hair was entangled in “Moti ki Lark Nak Besar”.

Shyam Sundar is solving… but it is not being solved…

Why are you pulling… I have asked you to solve it…

See ! Don’t joke, friends are watching… solve it quickly. Shri ji again said to Shyam Sundar.

Rangdevi’s friend laughs and says that this is not being solved… O Mistress! They are entangling us all in their own web…

Shri ji was ashamed after listening to Rangadevi’s friend.

Ouch! What a sight… both the married couple are seated.

Friends visit… and are singing in sweet voice –

🙏” Jai Jai Shri Pritam’s beloved, Jai Jai Saras Sarup Ujiyari!!

🙏 Jai Jai Shri Alhadini Devi, Jai Jai Shyama, everyone is happy!! ,

🙏 “Sab bilaye yugal sarkar ki”… all the friends spoke in one voice –

🙏 Hail Hail Hail Hail! ,

The rest of “Juice Discussion” tomorrow –

🚩Jai Shri Radhe Krishna🚩

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *