रसोपासना – भाग-11 रहस्य निकुञ्ज

“सखी भाव” के बारे में, मैं स्पष्ट कर चुका हूँ…

स्वसुख का नितान्त अभाव… और दूसरे के सुख में अपने आपको सुखी मानना… ये भाव सखीभाव है ।

मेरा प्रियतम सुखी रहे…

अपना सुख खोजना… ये तो आसुरी स्वभाव है… किसी भी दान, व्रत , पुण्य इत्यादि में भी अगर आप स्वसुख खोज रहे हो तो वो आसुरी स्वभाव के अंतर्गत आता है, ये याद रहे…

भक्ति मार्ग में हम जो करते हैं… वो भगवान को समर्पित करने के लिये कर रहे हैं…ये बात कही जाती है…

पर साधकों ! मैं जिस “रसोपासना” की चर्चा यहाँ कर रहा हूँ… ये भक्ति मार्ग से भी ऊँचा मार्ग है… इसमें तो स्वसुख की कामना अगर आगयी तो आपका पतन है… आप इस “रसोपासना” को साधारण न समझें… जिसका वर्णन इन दिनों हो रहा है ।

सखीभाव में “अपने सुख” की होली जलाई जाती है… तभी इस सखीभाव में साधक प्रवेश कर पाता है… क्यों कि कोई है ही नही है “युगल” के सिवा… “मैं” भी तो नही है… बस “वे” ही हैं…

फिर स्वसुख जैसी कोई वस्तु कहाँ रही ?

क्या जगत है ? क्या शरीर है ? क्या नाते रिश्तेदार हैं ?

विचार करके देखो… ये सब कुछ भी नही है… सब सपना है ।

फिर किसका सुख ? इस रहस्य को सखी भाव वाला साधक समझ चुका होता है…”है” जैसी सत्ता मात्र “युगल” की है… .ब्रह्म और उनकी आल्हादिनी शक्ति की… हमें भी जो उन्होंने प्रकट किया है… वो मात्र उनकी, अपने लीला विलास के लिये ।

फिर स्वसुख कहाँ ?

चलिये रस सिंधु में डूबीये… .अपने “मैं” भाव को मिटाइये…

आँखें बन्द कीजिये… दिव्य निकुञ्ज है… आहा ।


बसन्त का रस “युगलसरकार” ने छक कर लिया… किन्तु श्याम सुन्दर के मन में एक बात आयी… उस बात को सखियाँ समझ गयीं थीं… क्यों कि सखियों का अपना मन तो है ही नही… युगल का मन ही सखियों का मन है…

धीरे-धीरे सखियाँ एक-एक करके दूर होती चली गयीं युगल के पास से… तब श्याम सुन्दर ने श्रीराधारानी के कान में धीरे से कहा –

प्यारी ! सखियाँ तो चली गयीं… पता नही कहाँ गयीं !

श्रीराधा जी ने चारों ओर देखना शुरू किया… पर सखियाँ वहाँ नही थीं…

हाँ प्रियतम ! बसन्त के सुख में हम दोनों इतने लीन हो गए… कि सखियों का हमें ध्यान ही नही रहा… पर कहाँ गयीं ये सब सखियाँ ?

श्याम सुन्दर कुछ नही बोले… पर कुछ देर ही में अपना मौन तोड़ते हुये श्याम सुन्दर ने कहा… हे राधे ! मैं कुछ कहना चाहता हूँ अगर आप कहें तो ?

हाँ हाँ… कहो ना ! क्या बात है ?

चल री ! भीर ते न्यारेई खेलैं !!
कुञ्ज निकुञ्ज मन्जू में झेलैं !!

🙏हे राधे ! इच्छा पूरी नही हुयी है बसन्त के खेल की… इसलिये मैं तो कह रहा हूँ… कि आप और मैं, मात्र हम दोनों ही… किसी सघन कुञ्ज में चलें… जहाँ कोई नही हो… न सखी… न पक्षी… कोई आवाज भी न हो… ऐसे एकान्त कुञ्ज में बैठकर हम बसन्त का उत्सव मनाएं… कितना आनन्द आएगा ।

श्याम सुन्दर ने इतना ही कहा था… और सोचा था कि श्रीजी तुरन्त मान जायेंगीं… पर श्रीजी ने न हाँ कहा… न ना !

रसिक शिरोमणि चरणों में गिर गए… श्रीजी के…और हाथ जोड़ने लगे… आप को मेरी बात माननी ही पड़ेगी ।

श्रीजी का कोमल हृदय !… तुरन्त उठाया अपने प्रियतम को और बोलीं… आप ऐसा क्यों करते हो… आपकी जो अभिलाषा है वो मुझ से अलग तो नही है… और मैं ये भी जानती हूँ कि… आप मुझे सुख देने के लिये ही ये सब लीला रचते हो… मुस्कुराते हुये बोलीं थीं श्रीजी ।

अतिआनन्दित होते हुये उठ गए श्याम सुन्दर… श्रीजी का हाथ पकड़ कर धीरे-धीरे चलने लगे ।

“रहस्य कुञ्ज” खोज रहे हैं… सघन कुञ्ज कोई मिले… इसकी खोज में दोनों चल रहे हैं… चाल बड़ी मदमाती है… गलवैयाँ दिए… श्रृंगार रस में छके… दोनों युगल वर कुञ्ज खोजने के लिये चल पड़े हैं…।


चलते-चलते देर हो गयी… पर कोई ऐसा मन भाव वाला कुञ्ज दिखाई नही दिया…

प्यारे ! इधर तो कोई कुञ्ज दिखाई नही दे रहा… क्यों न हम फिर यमुना के तट की ओर ही चलें… शायद उधर ही कोई घना कुञ्ज मिल जाए… मुस्कुराते हुए श्रीजी ने कहा था ।

हाँ… आप ठीक कह रही हो… हमें यमुना के किनारे ही चलके देखना चाहिये…

श्याम सुन्दर ने प्रिया जु की बात का समर्थन किया और यमुना की ओर ही मुड़ गए ।

तभी –

एक फल फूलों से आच्छादित दिव्य सघन कुञ्ज दिखाई दिया… कदली खम्भ के दिव्य द्वार बने थे… वहाँ कोई सखियाँ नही थीं… न पक्षी… और वो कुञ्ज इतना सघन था कि प्रकाश भी वहाँ नही पहुँच पा रहा था… पुष्पों से लदे वृक्ष थे… लताएँ तो फूलों के भार से झुक-झुक जा रही थीं… हाँ हवा शीतल थी… बड़ी सुहावनी हवा चल रही थी ।

प्यारी जु ! देखो ! वो कुञ्ज… उसका द्वार भी कितना सुन्दर है… और सघन है… वृक्षावलियां भी घनी हैं… लताएँ फूलों से लदी हैं… प्यारी ! चलो… उस ओर चलो… वहीं बसन्त का उत्सव मनाते हैं… बहुत आनन्द आएगा ।

श्याम सुन्दर की उमंगता उत्साह देखकर प्रिया श्रीराधा जी बहुत प्रसन्न हुयीं… चलो प्यारे ! आप की जिसमें प्रसन्नता हो ।

युगलवर उस द्वार को देखते हैं… कदली के द्वार को छूते हैं… फिर आगे कुञ्ज में जैसे ही प्रवेश करते हैं…

आइये ! आइये युगलवर ! आपका स्वागत है इस “रहस्य निकुञ्ज” में ।

आवाज गूँजी… पर वो दिखाई नही दी जिसकी आवाज आरही थी ।

कौन हो आप ? और जब आप बोल रही हो… तो दिखाई क्यों नही देतीं ? श्याम सुन्दर ने पूछा ।

मेरा नाम “फूल सखी” है… ये सब मैंने ही सजाया है… हे युगलवर ! आपकी अभिलाषा थी कि किसी सघन कुञ्ज में एकान्त में बसन्त उत्सव आप दोनों खेलें… तो मैंने ये आपकी सेवा में प्रस्तुत कर दिया है… अब आप इस कुञ्ज में विलसें ।

फूल सखी ? श्याम सुन्दर ने मन ही मन उसका नाम लिया ।

जी… मेरा नाम फूल सखी ही है… मैं धन्य हो गयी कि आपने अपने हृदय में मेरा नामोच्चारण किया… फूल सखी ने कहा ।

धीरे से श्याम सुन्दर ने श्रीजी के कान में कहा… हम तो सखियों से बचने के लिये भागे थे… पर ये सखी तो यहाँ भी आगयी…

और श्याम सुन्दर हँसे ।

पर फूल सखी ! तुम सामने तो आओ… प्रिया जु ने कहा ।

नही… श्याम सुन्दर की अभिलाषा थी कि कोई सखी उनके साथ न रहे… इसलिये मैं सामने नही आ सकती… हे स्वामिनी जु ! मेरी आपसे प्रार्थना है कि दस चरण आगे चलिये… दक्षिण की ओर ही एक दिव्य सिंहासन है… सघन कुञ्ज में ही है… वहाँ आप दोनों विराजें… मुझे बड़ा सुख मिलेगा… फूल सखी ने कहा ।

श्याम सुन्दर बड़े प्रसन्न हुए… और अपनी प्रिया के साथ दस चरण आगे बढ़कर सिंहासन दिखाई दिया… दिव्य सिंहासन था… फूलों से सजा हुआ… उसमें जाकर युगलवर विराजमान हो गए ।


पर ये क्या !

श्रीजी में कोई उत्साह नही है… वो अनमनी-सी बैठी हैं ।

श्याम सुन्दर ने श्रीजी से पूछा… क्या हुआ ? आप अभी तो बहुत प्रसन्न थीं… पर एकाएक आप उदास क्यों हो गयीं ?

प्यारी ! क्या मुझ से कोई अपराध हो गया ?

श्याम सुन्दर ने विनीत भाव से पूछा था ।

नही नही… प्यारे ! ऐसा मत बोलो… मैं ठीक हूँ ।

नही… मैं आपको समझता हूँ… अच्छे से समझता हूँ… आपको बताना ही पड़ेगा कि आप उदास क्यों हो गयीं ?

जिद्द करने लगे थे श्याम सुन्दर ।

श्री जी ने कहा… ..मुझे सखियों की याद आरही है ।

प्यारे ! अन्यथा मत लेना… पर सखियों के बिना इस कुञ्ज में कोई रस नही है… वो कहाँ होंगी ? हम ही तो उनके प्राणधन हैं… हम ही तो उनके जीवन सर्वस्व हैं… वो हमारे बिना एक पल नही रह सकतीं तो हम कैसे रह सकते हैं ? ये कहते हुए श्रीजी के नेत्रों से अश्रु बहने लगे थे… श्याम सुन्दर पुकार उठे… ओ फूल सखी !

आवाज आयी… ओह ! ये क्या हमारी स्वामिनी रो रही हैं ?

नही नही… आप क्यों रो रही हैं ? मुझे अच्छा नही लग रहा ।

हिलकियों से रोते हुए श्रीजी ने कहा… फूल सखी ! मेरी अन्य सखियाँ कहाँ हैं ? मेरी रंगदेवी ! मेरी सुदेवी ! मेरी ललिता ! मेरी इन्दु !

कहाँ हैं ये सब ?

तभी –

कदम्ब का वृक्ष उस “रहस्य निकुञ्ज” से गायब हुआ और उसकी जगह खड़ी थीं… रंगदेवी… …रंगदेवी सखी के नेत्रों से भी अश्रु बह रहे थे… वो दौड़ीं… मेरी स्वामिनी ! और चरणों में गिर गयीं ।

तमाल वृक्ष हटा… उसमें से प्रकट हुयीं ललिता सखी…

हे मेरी श्री किशोरी जु… वो भी उन गोरे चरणों में गिर गयीं ।

मोरछली से सुदेवी प्रकटीं… पाकर से इन्दुलेखा…

इस तरह से सब सखियाँ तो यहीं थीं… हर्षित हो श्री किशोरी जी ने सबको अपने हृदय से लगाया…।

तब ललिता सखी ने श्याम सुन्दर की ओर देखते हुए कहा… क्यों प्यारे ! क्या लगा था आपको… कि हमें छोड़कर आप अकेले आ जाओगे… अपने हृदय में हाथ रखके बोलो… क्या हम आपसे अलग हैं ? रंगदेवी ने आगे बढ़कर श्याम सुन्दर से कहा… आप युगल की हम सखियाँ अभिन्न हैं… सच बात ये है कि आप भी चाहो तो भी हमें अपने से भिन्न नही कर सकते ।

हम ही कुञ्ज के रूप में बनकर आपकी अभिलाषा को पूरी करने के लिये यहाँ वृक्ष लताओं के रूप में खड़ी हो गयीं थीं ।

तभी… फूल सखी प्रकट हो गयीं… ये वृन्दा सखी थीं… यानि श्रीधाम वृन्दावन ।

ललिता सखी ने कहा… हमारी स्वामिनी तो किशोरी जु हैं… आप नही हो… विनोद करते हुए बोलीं…।

हाँ… सखी ! मैं ही हूँ आप सबका अपराधी… लो ये मुकुट आपके सामने झुका देता हूँ… श्याम सुन्दर ने जैसे ही ये कहा…

सारी सखियाँ बिलख उठीं… नही श्याम सुन्दर ! ऐसा मत करो… हम तो आपके सुख के लिये ही हैं…

तब “हित सखी” ने एक पद गाया… श्री किशोरी जु के चरणों में ।

🙏”सहज स्वभाव पर्यो नवल किशोरी जु को,
मृदुता दयालुता कृपालुता की राशि हैं ।

🙏नेक हूँ न रिस कहूँ भूली हूँ न होत सखी,
रहत प्रसन्न सदा हिय मुख हाँसी हैं ।

🙏ऐसी सुकुमारी प्यारे लाल जु की प्राण प्यारी,
धन्य धन्य धन्य तेहि, जे इनके उपासी हैं !!”

🙏जय जय श्री राधे ! जय जय श्री राधे ! जय जय श्री राधे !!

🙏पूरा निकुञ्ज श्रीराधा नाम से गूँज उठा था ।

शेष “रसचर्चा” कल –

🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩

🌷🌻🌷🌻🌷🌻🌷



About “Sakhi Bhav”, I have clarified…

Absolute lack of self-happiness… and considering yourself happy in the happiness of others… this feeling is friendship.

Be happy my dear…

Searching for your own happiness… this is demonic nature… if you are searching for self happiness in any charity, fast, virtue etc. then it comes under demonic nature, remember this…

Whatever we do in the path of devotion…we are doing it to dedicate ourselves to God…it is said…

But the seekers! The “rasopasana” I am talking about here… it is a higher path than the path of devotion… if the desire for self-satisfaction comes in it then it is your downfall… you should not consider this “rasopasana” as ordinary… which is being described these days .

Holi of “own happiness” is lit in friendship… only then the seeker can enter in this friendship… because there is no one except “couple”… there is no “I”… there is only “they”…

Then where is there such a thing as self-happiness?

what is the world what a body ? Are relatives relatives?

Think about it… all this is nothing… it is all a dream.

Whose happiness then? A seeker with a friendly attitude has understood this secret… “Hai” like power is only of “couple”….of Brahma and his divine power…what he has revealed to us too…that is only for his own enjoyment.

Then where is self happiness?

Come let’s drown in the Ras Indus….Erase your “I” feeling…

Close your eyes… there is a divine nikunj… aha.

The “couple government” has spoiled the juice of spring… but one thing came in the mind of Shyam Sundar… the friends had understood that thing… because the friends do not have their own mind… the mind of the couple is the mind of the friends…

Gradually the friends went away from the couple one by one… Then Shyam Sundar said softly in the ear of Shriradharani –

Dear ! The friends have gone… don’t know where they have gone!

Shriradha ji started looking around… but the friends were not there…

Yes dear! We both got so engrossed in the happiness of spring… that we didn’t care about our friends… But where did all these friends go?

Shyam Sundar didn’t say anything… But breaking his silence in no time, Shyam Sundar said… Hey Radhe! I want to say something if you can?

Yes yes… say no! What is the matter ?

Come on! Let’s play Bhir Te Nyarei!! Let’s bear in Kunj Nikunj Manju!!

🙏 Hey Radhe! The wish of spring play has not been fulfilled… That is why I am saying… that you and I, just both of us… let us walk in some dense forest… where there is no one… no friend… no bird… no sound… Let us celebrate the festival of spring by sitting in such a secluded corner… what a joy it would be.

Shyam Sundar had only said this much… and thought that Shreeji would immediately agree… but Shreeji said no yes… no no!

Rasik Shiromani fell at the feet of… Shreeji… and started folding hands… You will have to obey me.

Shreeji’s soft heart!… Immediately picked up his beloved and said… Why do you do this… Your desire is not different from mine… And I also know that… You are doing all this leela just to give me happiness. You create… Shreeji had said smilingly.

Being overjoyed, Shyam Sundar got up… held Shreeji’s hand and started walking slowly.

Searching for the “mysterious key”… someone finds the key… both are searching for it… the trick is very intoxicating… the garlands are given… the makeup is soaked in… both the couple are on their way to find the key….

It was getting late while walking… But no such mind-bhav key was visible…

Dear! No key is visible here… why don’t we go towards the banks of Yamuna… maybe there will be a dense key… Shreeji had said with a smile.

Yes… you are right… we should see by walking on the banks of Yamuna…

Shyam Sundar supported Priya Ju’s point and turned towards Yamuna.

Only then –

There appeared a divine dense grove covered with fruits and flowers… Kadali pillar had divine doors… There were no friends… nor birds… And that jungle was so dense that even light could not reach there… There were trees laden with flowers… The vines were bending under the weight of the flowers… yes the air was cool… a very pleasant breeze was blowing.

Sweetheart! See ! That Kunj… its door is also so beautiful… and it is dense… the trees are also dense… the vines are full of flowers… Beloved! Let’s go to that side… let’s celebrate the festival of spring there… there will be a lot of fun.

Priya Shriradha ji was very happy to see the enthusiasm of Shyam Sundar… come on dear! The one in whom you are happy.

The couples look at that door… touch the door of Kadali… then as soon as they enter the front door…

Come on! Come on, couple! Welcome to this “Mystery Park”

The voice echoed… but she could not be seen whose voice was coming.

Who are you ? And when you are speaking… then why are you not visible? Shyam Sundar asked.

My name is “Phool Sakhi”… I have decorated all this… Hey couple! It was your wish that both of you should play the spring festival in solitude in a dense forest… So I have presented it at your service… Now you go to this jungle.

flower friend Shyam Sundar took his name in his mind.

Yes… my name is Phool Sakhi… I am blessed that you have chanted my name in your heart… Phool Sakhi said.

Slowly, Shyam Sundar said in Shreeji’s ear… We had run away to escape from our friends… But this friend came here too…

And Shyam Sundar laughed.

But flower friend! You come in front… Priya Ju said.

No… Shyam Sundar’s wish was that no friend should stay with him… That’s why I cannot come in front of him… O Mistress! I request you to go ten steps ahead… there is a divine throne towards the south… it is in the dense arch itself… both of you sit there… I will get great happiness… said the flower friend.

Shyam Sundar was overjoyed… and went ten steps ahead with his beloved and saw the throne… It was a divine throne… decorated with flowers… The couple went and sat in it.

But what is this !

There is no enthusiasm in Shreeji… She is sitting like a man.

Shyam Sundar asked Shreeji… what happened? You were very happy now… but why did you suddenly become sad?

Dear ! Have I committed any crime?

Shyam Sundar had asked politely.

No no… dear! Don’t say like that… I’m fine.

No… I understand you… I understand well… You have to tell why you became sad?

Shyam Sundar had started insisting.

Shri ji said…..I am missing my friends.

Dear! Otherwise don’t take it… but there is no juice in this key without friends… where will they be? We are her life and wealth… we are her life and everything… she cannot live without us for a moment, so how can we live? While saying this, tears started flowing from Shreeji’s eyes… Shyam Sundar cried out… O flower friend!

A voice came… Oh! Is this our mistress crying?

no no… why are you crying? I am not feeling well

Crying bitterly, Shreeji said… Flower friend! Where are my other friends? My Rangdevi! My Sudevi! My Lalita! My Indu!

Where are all these?

Only then –

The Kadamba tree disappeared from that “Mystery Nikunj” and was standing in its place… Rangadevi… … Tears were flowing from the eyes of Rangadevi Sakhi too… She ran… my mistress! And fell at his feet.

Tamal tree removed… Lalita Sakhi appeared from it…

Hey my Mr. Kishori Ju… she also fell at those fair feet.

Sudevi appeared from Morchli… Indulekha from Pakar…

In this way, all the friends were here… be happy, Mr. Kishori ji touched everyone with his heart….

Then Lalita Sakhi looked at Shyam Sundar and said… why dear! What did you think… that you would leave us and come alone… Speak with your hand on your heart… Are we different from you? Rangdevi went ahead and said to Shyam Sundar… We friends of you couple are inseparable… The truth is that even if you want, you cannot separate us from yourself.

We were standing here in the form of trees and vines to fulfill your desire by becoming like a key.

Then… Flower Sakhis appeared… These were Vrinda Sakhis… That is, Sridham Vrindavan.

Lalita Sakhi said… our mistress is a teenager… you are not… she spoke jokingly….

Yes… friend! I am the culprit of all of you… Here, I bow this crown in front of you… As soon as Shyam Sundar said this…

All the friends cried out… No Shyam Sundar! Do not do this… We are only for your happiness…

Then “Hit Sakhi” sang a verse… at the feet of Shri Kishori Ju.

🙏” Naval Kishori Ju’s natural nature, Softness is the sign of kindness.

🙏 I am righteous, neither should I say anger, I have forgotten nor become a friend, Stay happy, always have a smile on your face.

Dear Lal Ju’s life is dear to such a sukumari, Blessed blessed blessed Tehi, who is his worshipper!!

🙏 Jai Jai Shri Radhe! Hail Hail Lord Radhe ! Hail Hail Lord Radhe !!

🙏 The whole Nikunj was resounding with the name of Shriradha.

The rest of the “Ruscharcha” tomorrow –

🚩Jai Shri Radhe Krishna🚩

🌷🌻🌷🌻🌷🌻🌷

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