108 ॥ का गुप्त रहस्य

💝🚩॥ ….👉……….🚩💝 एक बार अवश्य पढ़िए

ॐ का जप करते समय 108 प्रकार की विशेष भेदक ध्वनि तरंगे उत्पन्न होती है जो किसी भी प्रकार के शारीरिक व मानसिक घातक रोगों के कारण का समूल विनाश व शारीरिक व मानसिक विकास का मूल कारण है। बौद्धिक विकास व स्मरण शक्ति के विकास में अत्यन्त प्रबल कारण है ।
.
॥ 108 ॥ ………….
.
यह अद्भुत व चमत्कारी अंक बहुत समय ( काल ) से हमारे ऋषि -मुनियों के नाम के साथ प्रयोग होता रहा है।
.
स्वरमाला का परिचय………………..
.
अ→ 1 … आ→ 2… इ→ 3 … ई→ 4 … उ→ 5… ऊ→ 6 … ए→ 7 … ऐ→ 8 ओ→ 9 … औ→ 10 … ऋ→ 11 … लृ→ 12
अं→ 13 … अ:→ 14.. ऋॄ → 15.. लॄ → 16

.
व्यंजनमाला का परिचय …………………
.
क→ 1 … ख→ 2 … ग→ 3 … घ→ 4 … ङ→ 5 … च→ 6… छ→ 7 … ज→ 8 …
झ→ 9… ञ→ 10 … ट→ 11 … ठ→ 12 …
ड→ 13 … ढ→ 14 … ण→ 15 … त→ 16 …
थ→ 17… द→ 18 … ध→ 19 … न→ 20 …
प→ 21 … फ→ 22 … ब→ 23 … भ→ 24 …
म→ 25 … य→ 26 … र→ 27 … ल→ 28 …
व→ 29 … श→ 30 … ष→ 31 … स→ 32 …
ह→ 33 … क्ष→ 34 … त्र→ 35 … ज्ञ→ 36 …
ड़ → 37 … ढ़ → 38
.
–~ओ अहं = ब्रह्म ~–
.
ब्रह्म = ब + र + ह + म = 23 + 27 + 33 + 25 = 108
.
यह मात्रिकाएँ (16 स्वर + 38 व्यंजन = 54 ) नाभि से आरम्भ होकर ओष्टों तक आती है, इनका एक बार चढ़ाव, दूसरी बार उतार होता है, दोनों बार में वे 108 की संख्या बन जाती हैं। इस प्रकार 108 मंत्र जप से नाभि चक्र से लेकर जिव्हाग्र तक की 108 सूक्ष्म तन्मात्राओं का प्रस्फुरण हो जाता है। अधिक जितना हो सके उतना उत्तम है पर नित्य कम से कम 108 मंत्रों का जप तो करना ही चाहिए ।।
.

मनुष्य शरीर की ऊँचाई………………
.
यज्ञोपवीत (जनेउ) की परिधि = (4 अँगुलियों) का 27 गुणा होती है।
अर्थात् 4 × 27 = 108
.
नक्षत्रों की कुल संख्या = 27
प्रत्येक नक्षत्र के चरण = 4
जप की विशिष्ट संख्या = 108
.
अर्थात् ॐ मंत्र जप कम से कम 108 बार करना चाहिये ।

एक अद्भुत अनुपातिक रहस्य…………….
.
पृथ्वी से सूर्य की दूरी/ सूर्य का व्यास = 108
पृथ्वी से चन्द्र की दूरी/ चन्द्र का व्यास = 108
अर्थात् मन्त्र जप 108 से कम नहीं करना चाहिये।
.
हिंसात्मक पापों की संख्या 36 मानी गई है जो मन, वचन व कर्म 3 प्रकार से होते है। अर्थात् 36×3=108। अत: पाप कर्म संस्कार निवृत्ति हेतु किये गये मंत्र जप को कम से कम 108 अवश्य ही करना चाहिये।
.
सामान्यत: 24 घंटे में एक व्यक्ति 21600 बार सांस लेता है। दिन-रात के 24 घंटों में से 12 घंटे सोने व गृहस्थ कर्तव्य में व्यतीत हो जाते हैं और शेष 12 घंटों में व्यक्ति जो सांस लेता है वह है 10800 बार। इस समय में ईश्वर का ध्यान करना चाहिए । शास्त्रों के अनुसार व्यक्ति को हर सांस पर ईश्वर का ध्यान करना चाहिये । इसीलिए 10800 की इसी संख्या के आधार पर जप के लिये 108 की संख्या निर्धारित करते हैं।
.

एक वर्ष में सूर्य 216000 कलाएं बदलता है। सूर्य वर्ष में दो बार अपनी स्थिति भी बदलता है। छःमाह उत्तरायण में रहता है, और छः माह दक्षिणायन में…………
.
अत: सूर्य छः माह की एक स्थिति में 108000 बार कलाएं बदलता है।
.
ब्रह्मांड को 12 भागों में विभाजित किया गया है। इन 12 भागों के नाम – मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन हैं। इन 12 राशियों में नौ ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु विचरण करते हैं। अत: ग्रहों की संख्या 9 में राशियों की संख्या को 12 से गुणा करें तो संख्या 108 प्राप्त हो जाती है।
.
108 में तीन अंक हैं, 1, 0 , 8. इनमें एक “1″ ईश्वर का प्रतीक है। ईश्वर का एक सत्ता है अर्थात ईश्वर १ है और मन भी एक है, शून्य “0″ प्रकृति को दर्शाता है। आठ “8″ जीवात्मा को दर्शाता है क्योंकि योग के अष्टांग नियमों से ही जीव प्रभु से मिल सकता है । जो व्यक्ति अष्टांग योग द्वारा प्रकृति के आठो मूल से विरक्त हो कर ईश्वर का साक्षात्कार कर लेता है उसे सिद्ध पुरुष कहते हैं। जीव “8″ को परमपिता परमात्मा से मिलने के लिए प्रकृति “0″ का सहारा लेना पड़ता है। ईश्वर और जीव के बीच में प्रकृति है। आत्मा जब प्रकृति को शून्य समझता है तभी ईश्वर “1″ का साक्षात्कार कर सकता है। प्रकृति “0″ में क्षणिक सुख है और परमात्मा में अनंत और असीम। जब तक जीव प्रकृति “0″ को जो कि जड़ है उसका त्याग नहीं करेगा , अर्थात शून्य नही करेगा, मोह माया को नहीं त्यागेगा तब तक जीव “8″ ईश्वर “1″ से नहीं मिल पायेगा, पूर्णता ( 1 + 8 = 9 ) को नहीं प्राप्त कर पायेगा ।

.
9 पूर्णता (पूर्णांक) का सूचक है………….
.
1- ईश्वर और मन
2- द्वैत, दुनिया, संसार
3- गुण प्रकृति (माया)
4- अवस्था भेद (वर्ण)
5- इन्द्रियाँ
6- विकार
7- सप्तऋषि, सप्तसोपान
8- आष्टांग योग
9- नवधा भक्ति (पूर्णता)

वैदिक विचार धारा में मनुस्मृति के अनुसार …………………..
.
अहंकार के गुण = 2
बुद्धि के गुण = 3
मन के गुण = 4
आकाश के गुण = 5
वायु के गुण = 6
अग्नि के गुण = 7
जल के गुण = 8
पॄथ्वी के गुण = 9
= 2+3+4+5+6+7+8+9 = 44
.
अत: प्रकृति के कुल गुण = 44
.
जीव के गुण = 10
इस प्रकार संख्या का योग = 54
अत: सृष्टि उत्पत्ति की संख्या = 54
एवं सृष्टि प्रलय की संख्या = 54
दोंनों संख्याओं का योग = 108
.
संख्या “1″ एक ईश्वर का संकेत है।
संख्या “0″ जड़ प्रकृति का संकेत है।
संख्या “8″ बहुआयामी जीवात्मा का संकेत है।
(यह तीन अनादि परम वैदिक सत्य हैं)
(यही पवित्र त्रेतवाद है)
.
संख्या “2″ से “9″ तक एक बात सत्य है कि इन्हीं आठ अंकों में “0″ रूपी स्थान पर जीवन है। इसलिये यदि “0″ न हो तो कोई क्रम गणना आदि नहीं हो सकती। “1″ की चेतना से “8″ का खेल । “8″ यानी “2″ से “9″।
.
यह “8″ क्या है ? मन के “8″ वर्ग या भाव।
.
ये आठ भाव ये हैं ……………….
.

  1. काम ( विभिन्न इच्छायें / वासनायें ) ।
  2. क्रोध ।
  3. लोभ ।
  4. मोह ।
  5. मद ( घमण्ड ) ।
  6. मत्सर ( जलन ) ।
  7. ज्ञान ।
  8. वैराग ।
    .
    एक सामान्य आत्मा से महानात्मा तक की यात्रा का प्रतीक है ।
    ——॥ 108 ॥ ——
    .
    इन आठ भावों में जीवन का ये खेल चल रहा है ।

सौर परिवार के प्रमुख सूर्य के एक ओर से नौ रश्मियां निकलती हैं, और ये चारो ओर से अलग-अलग निकलती है। इस तरह कुल 36 रश्मियां हो गई। इन 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बनें ।
.
इस तरह सूर्य की जब नौ रश्मियां पृथ्वी पर आती हैं, तो उनका पृथ्वी के आठ वसुओं से टक्कर होती हैं। सूर्य की नौ रश्मियां और पृथ्वी के आठ वसुओं के आपस में टकराने से जो 72 प्रकार की ध्वनियां उत्पन्न हुई वे संस्कृत के 72 व्यंजन बन गई। इस प्रकार ब्रह्मांड में निकलने वाली कुल 108 ध्वनियाँ पर संस्कृत की वर्ण माला आधारित है।
.
रहस्यमय संख्या ॥ 108 ॥ का हिन्दू-वैदिक संस्कृति के साथ हजारों सम्बन्ध हैं, जिनमें से कुछ का संग्रह है



. ….👉……….🚩💝 must read once

While chanting Om, 108 types of special penetrating sound waves are generated, which is the root cause of physical and mental development and complete destruction of any kind of physical and mental fatal diseases. There is a very strong reason for intellectual development and development of memory power. , , 108 ॥ , , This wonderful and miraculous number has been used with the names of our sages for a long time. , Introduction to Swaramala….. , A→ 1 … A→ 2… E→ 3 … E→ 4 … U→ 5… O→ 6 … A→ 7 … A→ 8 O→ 9 … Au→ 10 … R→ 11 … L→ 12 An → 13 … A : → 14.. R R → 15.. L R → 16

, Introduction to cuisine…… , a→ 1 … b→ 2 … c→ 3 … d→ 4 … e→ 5 … f→ 6… g→ 7 … h→ 8 … Z→ 9… J→ 10 … T→ 11 … T→ 12 … E→ 13 … N→ 14 … N→ 15 … T→ 16 … Th→ 17… D→ 18 … Th→ 19 … N→ 20 … P→ 21 … F→ 22 … B→ 23 … B→ 24 … M → 25 … Y → 26 … R → 27 … L → 28 … W→ 29 … S→ 30 … S→ 31 … S→ 32 … H → 33 … K → 34 … T → 35 … G → 36 … E → 37 … D → 38 , –~O ego = Brahman ~– , Brahma = B + R + H + M = 23 + 27 + 33 + 25 = 108 , These units (16 vowels + 38 consonants = 54) start from the navel and come to the lips, once they rise, the second time they fall, in both times they become the number of 108. In this way, by chanting 108 mantras, 108 subtle tanmatras from the navel chakra to the jawline get activated. As much as possible is the best, but at least 108 mantras should be chanted daily. ,

Height of human body , The circumference of Yajnopaveet (Janeu) = (4 fingers) is 27 times. That is, 4 × 27 = 108 , Total number of Nakshatras = 27 Charan of each Nakshatra = 4 Specific number of chanting = 108 , That is, Om mantra should be chanted at least 108 times.

A wonderful proportional mystery. , Distance of Sun from Earth/Diameter of Sun = 108 Distance of Moon from Earth/Diameter of Moon = 108 Means mantra chanting should not be less than 108. , The number of violent sins has been considered as 36, which are of three types, mind, speech and action. That is, 36×3=108. Therefore, chanting of mantras done for the removal of sins and rituals must be done at least 108 times. , Normally a person breathes 21600 times in 24 hours. Out of 24 hours day and night, 12 hours are spent in sleeping and household duties and in the remaining 12 hours the person breathes 10800 times. In this time one should meditate on God. According to the scriptures, a person should meditate on God with every breath. That’s why on the basis of this number of 10800, we determine the number of 108 for chanting. ,

The Sun changes 216000 degrees in a year. The Sun also changes its position twice a year. Stays for six months in Uttarayan and six months in Dakshinayan. , Therefore, the Sun changes its phases 108,000 times in a period of six months. , The universe is divided into 12 parts. The names of these 12 parts are – Aries, Taurus, Gemini, Cancer, Leo, Virgo, Libra, Scorpio, Sagittarius, Capricorn, Aquarius and Pisces. Nine planets Sun, Moon, Mars, Mercury, Jupiter, Venus, Saturn, Rahu and Ketu move in these 12 zodiac signs. Therefore, multiply the number of zodiac signs in the number of planets by 12, then the number is 108. , There are three numbers in 108, 1, 0 , 8. One “1” is the symbol of God. God has one existence, that is, God is 1 and mind is also one, zero “0” represents nature. The eight “8” represents the soul because the soul can meet the Lord only by following the eight-fold rules of yoga. ” One has to take the support of Prakriti “0” to meet the Supreme Father Supreme Soul. There is Prakriti between God and the soul. When the soul considers Prakriti to be zero then only God can interview “1”. There is momentary happiness in Prakriti “0” and infinite and limitless in God. 1″, will not be able to achieve perfection (1 + 8 = 9).

, 9 is an indicator of completeness (integer). , 1- God and mind 2- duality, world, world 3- Guna Prakriti (Maya) 4- Stage difference (Varna) 5- Senses 6- Disorder 7- Saptarishi, Saptasopan 8- Ashtanga Yoga 9- Navadha Bhakti (Perfection)

According to Manusmriti in the Vedic school of thought….. , Qualities of Ego = 2 Qualities of intelligence = 3 qualities of mind = 4 qualities of sky = 5 Properties of air = 6 qualities of fire = 7 Properties of water = 8 qualities of earth = 9 = 2+3+4+5+6+7+8+9 = 44 , Therefore, total qualities of nature = 44 , Attributes of the creature = 10 Thus sum of number = 54 Hence number of creation = 54 And the number of creation holocaust = 54 Sum of both the numbers = 108 , The number “1” is a sign of a god. The number “0” is indicative of inert nature. The number “8” is a sign of the multidimensional soul. (These are the three eternal ultimate Vedic truths) (This is sacred Tretism) , One thing is true from the numbers “2” to “9” that there is life in the place of “0” in these eight numbers only. Therefore, if “0” is not there, then there cannot be any serial counting etc. The game of “8” with the consciousness of “1”. “8” means “2” to “9”. , What is this “8”? The “8” classes or expressions of the mind. , These are the eight expressions…. , Kama (various desires/lusts). Anger . Lust Enchantment . Mada (pride). Matsar (jealousy). Knowledge . Vairag , Symbolizes the journey from an ordinary soul to a great soul. , 108 ॥ , , This game of life is going on in these eight houses.

Nine rays emanate from one side of the Sun, the head of the solar family, and they emanate differently from all four sides. In this way there were 36 rays in total. 36 vowels of Sanskrit should be made on the sounds of these 36 rays. , In this way, when the nine rays of the sun come on the earth, they collide with the eight vasus of the earth. The 72 types of sounds produced by the collision of the nine rays of the sun and the eight vasus of the earth became the 72 consonants of Sanskrit. In this way, the alphabet of Sanskrit is based on the total 108 sounds emanating from the universe. , Mysterious number 108 ॥ has thousands of links with Hindu-Vedic culture, some of which have a collection

Share on whatsapp
Share on facebook
Share on twitter
Share on pinterest
Share on telegram
Share on email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *