(तू मेरी “हरिप्रिया” है – गवाक्ष से…)
( साधकों ! मैं पूर्ण स्वस्थ हूँ… कुटिया में आगया हूँ )
अरी सखियों ! तुम यहाँ उदास बैठी हो… क्या हुआ ?
उन सांवले किशोर महात्मा ने आकर सखियों से पूछा था ।
सखियाँ बैठी थीं… मण्डली बनाकर…उस मण्डली में रंगदेवी सुदेवी ललिता विशाखा चित्रा तुंगविद्या और “हरिप्रिया” सब थीं ।
पहले तो सखियों ने आश्चर्य किया…उन किशोर महात्मा को बड़े ध्यान से देखा… सखियों को लगा कि ये तो निकुञ्ज है… यहाँ किसी महात्मा वहात्मा का तो कोई दूर दूर तक प्रवेश भी नही…फिर ये कैसे आगये यहाँ ? फिर विचार किया… युगल की इच्छा सर्वोपरि है…चलो ! होंगे कोई कृपा साध्य महात्मा ।
आगे बढ़कर सब सखियों ने महात्मा जी को प्रणाम किया… विशेष – “हरिप्रिया” सखी ने ।
अच्छा तो बताओ… तुम सब उदास क्यों हो ? महात्मा जी ने फिर पूछ लिया ।
आगे बढ़कर हरिप्रिया सखी ने हाथ जोड़कर कहा – हमारे युगल सरकार कहीं अंतर्ध्यान हो गए हैं…हे महात्मा जी ! बताओ ना ! वे कहाँ गए होंगे ? किस कुञ्ज में चले गए ?
ऐसा आज तक नही हुआ… दो घड़ी बीत चुकी है… अब तो मिलने चाहिये थे…पर ? अश्रु प्रवाह चल पड़े थे सखियों के ।
हँसे वह महात्मा… अरी सखियों ! तुम भी !
युगलसरकार कोई ऐसे मिलते हैं ?
तो कैसे मिलते हैं ? सखियों ने ऐसे तत्क्षण पूछा जैसे… अगर प्राणों की आहुति भी देनी पड़े तो तैयार हैं मानो ।
सुनो सुनो !… महात्मा जी वहीं बैठ गए सखियों के मध्य ही ।
पहले इन केशों को काटो… क्योंकि बिना वैराग्य के युगल सरकार भला आज तक किसी को मिले हैं ?
फिर सखियों !…धूनी रमाओ… ये लहंगा चूनरी सब उतारो और गैरिक वस्त्र धारण करो…
तुरन्त हरिप्रिया सखी खड़ी हुयी… ए बाबा महाराज ! तुम किस युगल सरकार की बातें कर रहे हो… पगला गए हो क्या ?
देखो ! हमारे युगल सरकार को तो हमारे ये केश बहुत प्रिय हैं…वो हमें कहते हैं…सखी ! तुमने आज अपनी वेणी बहुत अच्छी बनाई है…और तुम कहते हो… हम इन्हें काट दें…ना ! बाबा ! ना ! और तुम कह रहे हो… धूनी रमाओ…और लहंगा फरिया उतार कर गैरिक वस्त्र पहनो… बाबा ! सच बताओ… तुम किस युगल सरकार की बातें कर रहे हो ? हमें तो लगता है… तुम किसी और की बात करते हो… और हम किसी और की… इसलिए… हमारी लम्बी राम राम लो…और पधारो यहाँ से… हरिप्रिया सखी ने कुछ कड़े शब्दों में ही बाबा को समझा दिया था ।
अरे ! तुम तो नाराज हो गयीं सखियों !…नाराज मत हो… सुनो ! सुनो मेरी बात… वो महात्मा जी फिर सुनाने लगे ।
सखियों ! तुम जिस मार्ग पर चल रही हो…ये तो प्रेम का मार्ग है… इसमें तो दुःख है… बहुत दुःख है… प्रियतम परीक्षा लेता है ।
आँखें मटकाते हुए महात्मा जी बोल रहे थे ।
सखियाँ कुछ देर तक बोलीं ही नहीं ।
कुछ तो बोलो… जबाब तो दो सखियों ! महात्मा जी बार बार कहने लगे थे…तब सखियाँ बोलीं🙏
श्रीजी हमसे अपने हृदय की बात बता रही थीं…हमारी स्वामिनी हमसे बारबार कह रही थीं…
🙏”तोसों कहा दुराव है री, तो बिनु कछु न केलि !
तू मेरी हरिप्रिया है, मन अनुसार सहेली !!
नयन जल उमड़ पड़े थे सखियों के…
बाबा महाराज ! हमारी स्वामिनी हमसे अपने हृदय की बात बता रही थीं… कह रही थीं…तुम ही तो हो, जिसे मैं कुछ कह सकती हूँ…अपनी बात बता सकती हूँ…
रंगदेवी जु आगे आईँ और आकर बोलीं… हमारी स्वामिनी हमसे कह रही थीं…”मैं सुख पूर्वक अपने प्राण प्रियतम के साथ सो रही थी…तभी… मेरा बायाँ हाथ हृदय पर था… पर उसी समय मैं चिल्ला उठी… कौन है ? कौन है ?
सजनी ! मेरे “प्राण” ने मुझ से पूछा… क्या हुआ प्रिया जु !
मैं उठी…और मैं सीधे अपने “प्राण सर्वस” के हृदय से लग गयी… कुछ नही बोली… फिर बाद में हँसनें लगी ।
मेरे प्रियतम ने मुझ से पूछा… क्या हुआ ? श्रीजी ! आप को ऐसा क्या लगा कि आप “कौन है ? कौन है ?” कहकर पुकार रही थीं ?
तब मैंने हृदय से लगे लगे ही अपने प्रियतम को बताया…
🙏हे प्रियतम ! मैंने सपना देखा… कि मैं गहबर वन में अकेली रात्रि में घूम रही हूँ…मेरे साथ कोई नही है… न आप… न कोई सखियाँ… तभी किसी के कोमल हाथों ने मेरे नयन बन्द कर दिए… तभी मैं पुकार उठी… कौन है ? कौन है ?
सखी ! तब मेरे प्रियतम ने मुझे अपने हृदय से कसकर लगाते हुये कहा… प्यारी ! मैं ही तो था… मेरे हाथों को आपने पहचाना नही ?
तब बाबा महाराज ! मेरी स्वामिनी बहुत हँसी थीं… उस घटना को बताते हुये… हम सब बलैया ले रही थीं अपने युगल सरकार की… पर… कुछ ही देर में… पता नही…युगल कहाँ चले गए ..? सखियों ने फिर गंगा यमुना बहाने शुरू कर दिए थे ।🙏
प्रेम दुःख देता है…
बाबा महाराज गम्भीर होकर बोलने लगे ।
परीक्षा लेता है प्रियतम अपने प्रेमियों की… दुःख, ये परीक्षा है…
बाबा महाराज मानो प्रवचन के मूड में आगये थे ।
अजी ! जाओ बाबा !…बेकार की बातें कर रहे हो… हमारे युगल सरकार कभी दुःख नही देते… अब किसी के देह में फोड़ा हो गया हो… तो उसे निचोड़कर उसका मवाद निकालना…इसे दुःख देना कहोगे ? मैल ज्यादा ही जम जाए… तो रगड़ रगड़ कर स्नान कराना…इसे दुःख देना कहोगे ? नही बाबा ! नही…हमारे युगलवर…दुःख देना जानते ही नही हैं…उनसे कभी दुःख मिलेगा ही नही… सखियों ने उन बाबा से स्पष्ट कह दिया था ।
पर बाबा ! तुम को देखने पर ऐसा लगता है कि – कहीं देखा है ?
सखियाँ पास में जाने लगीं उस बाबा के… बाबा दूर होने लगे… पर सखियों को कुछ कुछ लगा कि… इन बाबा की आँखें ?
रंगदेवी ने आगे बढ़कर बाबा की दाढ़ी जैसे ही पकड़ी… दाढ़ी ही रंगदेवी सखी जु के हाथ में आगयी…
ओह ! लाल जु ! आप ही बनें हो… आज बाबा महाराज !
पर हमारी श्री किशोरी जी कहाँ हैं ?
तभी वामांग से श्री जी प्रकट हो गयीं…सखियों ! मैं यहाँ हूँ ।
मैं तुम सबसे दूर जा कैसे सकती हूँ…
अब तो सखियों के सामने युगल सरकार खड़े थे…
सखियाँ आनन्दित हो नाच उठीं थीं…
🙏जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे !
जय कृष्ण जय कृष्ण कृष्ण, जय कृष्ण जय श्री कृष्ण !!
( साधकों ! ये सच है…युगल सरकार कभी दुःख नही देते… सखियों ने सच कहा है… अब मैल जम जाए शरीर में तो स्क्रब लगाकर साफ़ करना ही पड़ता है शरीर को… अब कोई इसे दुःख कहे तो वास्तव में दुःख तो नही हैं…मेरे साथ भी कुछ ऐसी ही कृपा हुयी युगलसरकार की… मुझे यही रहस्य समझाने के लिये 5 दिन हॉस्पिटल में रखा मेरे सरकार ने )
शेष “रस चर्चा” कल…
🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩