बहुत-से लोग कहा करते हैं कि यथाशक्ति चेष्टा करने पर भी भगवान् हमें दर्शन नहीं देते……!
वे लोग भगवान् को ‘निष्ठुर, कठोर आदि शब्दों से सम्बोधित किया करते हैं……!
तथा ऐसा मान बैठे हैं, कि उनका हृदय व्रजका-सा है और वे कभी पिघलते ही नहीं……!
उन्हें क्या पड़ी है, कि वे हमारी सुध लें, हमें दर्शन दें और हमे अपनावें – ऐसी ही शिकायत बहुत-से लोगों की रहती है……!
परन्तु बात है बिलकुल उलटी ! हमारे ऊपर प्रभु की अपार दया है, वे देखते रहते हैं कि जरा भी गुंजाइश हो तो मैं प्रकट होऊँ, थोड़ा भी मौका मिले तो भक्त को दर्शन दूँ…..!
साधना के पथ में वे पद-पद पर हमारी सहायता करते रहते हैं……!
लोक में भी यह देखा जाता है, कि जहाँ विशेष लगाव होता है, जिस पुरुष का हमारे प्रति विशेष आकर्षण होता है उनके पास सब काम छोड़कर भी हमें जाना पड़ता है…..!
जहाँ नहीं जाना होता वहाँ प्राय: यही मानना चाहिये कि प्रेम की कमी है…..!
जब हम साधारण मनुष्य की भी यह हालत है, तब भगवान्, जो प्रेम और दया के अथाह सागर हैं…..!
यदि थोड़ा प्रेम होने पर भी हमें दर्शन देने के लिये तैयार रहें तो इसमे आश्चर्य ही क्या है……?